पूर्वी लद्दाख की तनातनी चीन के लिए काफी महंगी सिद्ध हो रही है। भारत के हाथों कूटे जाने के अलावा चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है, और भारत के सख्त रुख के कारण उन देशों को भी चीन के विरुद्ध मोर्चा खोलने में सहायता मिली है, जो चीन के विरुद्ध किन्हीं कारणों से भिड़ नहीं पाते थे, चाहे वो वियतनाम हो, जापान हो, चेक गणराज्य हो, या फिर ताइवान ही क्यों न हो।
भारत के रुख के कारण चीन अब किस तरह से बैकफुट पर आ चुका है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि चीनी मानवाधिकार के कार्यकर्त्ता और तियानमेन छात्र नेता Zhou Fengsuo ने कहा है कि दुनिया को चीन से मोर्चा लेने के लिए भारत के कदमों का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने ये बातें “Emperor Has No Clothes – China Under Xi Jingping” नामक वेबिनार में कही।
Zhou Fengsuo ने गलत बात भी नहीं कही है। भारत ने चीन के वर्षों के बनाए प्रोपगैंडे को बुरी तरह ध्वस्त करते हुए उसके अपराजेय छवि को बहुत तगड़ा नुकसान पहुँचाया है। पूर्वी लद्दाख में जब से चीन ने अपनी कुदृष्टि गड़ाई है, तब से भारत ने रक्षात्मक मोर्चे और आर्थिक मोर्चे दोनों पर ही चीन को धूल चटाई है। गलवान में निस्संदेह भारतीय सेना को 20 सैनिकों के बलिदान से जूझना पड़ा, परंतु जिस प्रकार से चीन के सैनिकों ने अपने वास्तविक हताहतों की संख्या को बताने से मना किया है, उससे ये स्पष्ट है कि भारतीय सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया, उन्होंने न केवल चीनी सैनिकों का डटकर मुक़ाबला किया, अपितु उन्हे पटक पटक के धोया भी।
आर्थिक मोर्चे पर भी भारत ने एक आदर्श स्थापित करते हुए हर अहम चीनी एप पर प्रतिबंध लगाया। इसके अलावा चाहे कस्टम चेक लगाने हो, या फिर सरकारी अनुबंधों में चीन के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने हो, या फिर जल परिवहन एवं तेल के क्षेत्रों में चीन का प्रभाव रोकना हो, भारत ने हर जगह चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है। भारत ने दूसरे देशों को ये संदेश भी दिया है कि ड्रैगन अजेय नहीं है, और उसे कभी भी, कैसे भी हराया जा सकता है।
इसके अलावा भारत ने अपने अनुसार चीन से निपटने की नीतियों को सशक्त करना शुरू किया है। उदाहरण के लिए दक्षिण चीन सागर में चीन की हेकड़ी को रोकने के लिए जहां भारत ने अपने नौसैनिक एस्सेट भेजे हैं, तो वहीं पूर्वी लद्दाख में चीन की दादागिरी को रोकने के लिए भारत ने अपनी स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स को तैनात किया है। भारत की इस अनोखी चीन नीति ने अन्य देशों को भी चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालने के लिए प्रेरित किया है। उदाहरण के लिए फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में चीन को सबक सिखाने के लिए भारत और अमेरिका को निमंत्रित किया है। इसी भांति वियतनाम और जापान भी चीन को उसी के क्षेत्र में खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।
जिस हिन्द प्रशांत क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने के लिए चीन एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा है, वो उसके हाथ से फिसलता ही चला जा रहा है, और ताइवान जैसे राज्य भी अब चीन को आँखें दिखाने लगे हैं। चीन की कथित अजेय छवि को ध्वस्त कर भारत ने विश्व को चीन से न डरने का एक विश्वसनीय कारण दिया है। यही बात अभी हाल ही में साबित हुई, जब चेक गणराज्य के संसद के अध्यक्ष एवं प्राग के मेयर ने ताइवान का दौरा किया। ताइवान स्वयं बीजिंग के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुका है, और चाहता है कि किसी भी स्थिति में वह चीन से स्वतंत्र हो।
यदि किसी देश ने चीन को खुलेआम चुनौती दी है, तो वो भारत ही है। ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड स्टेट्स, जापान और ASEAN समूह के देशों ने जहां चीन पर कूटनीतिक तरह से दबाव डाला, वहाँ भारतीय सेना ने स्पष्ट रूप से चीन के पीएलए सैनिकों से मोर्चा लेते हुए उसे उसकी औकात दिखाई। भारत ने विश्व को यह जताया है कि चीन की भावनाओं के बारे में आहत हुए बगैर भी आगे बढ़ा जा सकता है। चीन के लिए दुनिया के मन में जो डर था, उसे भारत ने पूरी तरह से मिटा दिया है। यदि चीन के विरुद्ध विश्वव्यापी अभियान चल रहा है, तो ये भारत के कारण ही चल रहा है।