चीन की कार्रवाई से पूर्व ही भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त की रात को ब्लैकटॉप हिल तथा अन्य चोटियों पर कब्जा कर लिया। मई महीने से चल रहे स्टैंड ऑफ के दौरान यह पहली बार हुआ था कि भारत ने अपनी ओर से आक्रामक कार्रवाई करते हुए कोई कदम उठाया। यही कारण रहा कि चीन को संभलने का मौका ही नहीं मिल पाया। किंतु सेना द्वारा की गई इस कार्रवाई की तैयारी भारत ने एक महीने पहले ही शुरू कर दी थी।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सामरिक महत्व की चोटियों पर कब्जा करने के अभियान की तैयारी भारतीय सेना ने बहुत पहले ही शुरू कर दी थी। जून में गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत और चीन के बीच डिसएंगेजमेंट को लेकर बातचीत शुरू हुई थी। किंतु चीन का रवैया बता रहा था कि वह इस कार्य में बाधाएं उत्पन्न करेगा। इसलिए भारत सरकार ने सेना को ऐसा कदम उठाने की छूट दे दी जिससे चीन को बैकफुट पर धकेला जा सके।
बातचीत की शुरुआत में ही चीन ने गोगरा पोस्ट और हॉट स्प्रिंग के इलाके से पीछे हटने से इंकार कर दिया था। 2 अगस्त को चीन ने यह मानने से इंकार कर दिया कि पैंगोंग इलाके में उसने LAC का उल्लंघन किया है। इस प्रकार चीन ने फिंगर चार तक के एरिया पर अपना दावा कर दिया। चीन द्वारा पैंगोंग इलाके पर बातचीत से इनकार के बाद भारतीय सेना ने यह तय किया कि अब वह इस पूरे क्षेत्र के सामरिक समीकरण को बदलने के लिए आक्रामक कार्रवाई करेगी। इसके लिए पहले से तैयार योजना के अनुसार आसपास की ऊंची चोटियों पर कब्जा करने का निश्चय किया गया।
इंडियन एक्सप्रेस को एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया “योजना हमेशा से तैयार थी, लेकिन कुछ ही लोगों के साथ इसे साझा किया गया था। बातचीत की असफलता के बाद प्लानिंग नहीं शुरू हुई, सेना के पास कई योजना होती है प्रश्न यह होता है कि उन्हें लागू कब करना है। इस कार्य को अंजाम देने के दो सप्ताह पहले, इस योजना पर पूरी गंभीरता से कार्य शुरू हुआ। उसके बाद ग्राउंड कमांडर ने यहाँ आकर पूरी योजना पर प्रेजेंटेशन दिया। उच्च अधिकारी और ग्राउंड कमांडर ने ड्राइंग बोर्ड पर पूरी योजना का मुआयना किया। चीनी सेना और हमारी क्षमताओं की तुलना की गई। सामरिक महत्व की जगहों पर चर्चा हुई। उनको जीतने की योजना पर चर्चा हुई। हर एक कदम पर अंत तक विस्तृत चर्चा हुई। ऑपरेशन के थोड़ी देर पहले पूरे इलाके की रेकी की गई। इन सब कामों को गुप्त रूप से अंजाम देने में लगभग एक महीना लगा। भाग्य का थोड़ा साथ मिलने के कारण हमने बिना किसी बड़ी गड़बड़ के अपना लक्ष्य पा लिया।”
यह ऑपरेशन इस लिहाज से महत्वपूर्ण था कि सितंबर महीने के अंत तक लद्दाख में भीषण ठंड पड़ने लगती है। ठंड में होने वाली भारी बर्फबारी के कारण, चीन और भारत, दोनों सेनाओं के लिए किसी प्रकार का सैन्य अभियान चलाना बेहद चुनौतीपूर्ण होता। यही कारण था कि ठंड की शुरुआत से पहले ही भारत ने अपनी सामरिक स्थिति मजबूत कर ली जिससे ठंड के दौरान उसे चीन की सेना पर बढ़त हासिल रहे।
सामरिक स्थिति मजबूत कर लेने के कारण ठंड के महीनों में भारत चीन के ऊपर पूर्णतः प्रभावी रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय सेनाओं के पास पर्याप्त संसाधन तो है ही साथ ही सियाचिन ग्लेशियर में तैनात रहने के कारण ठंड से जूझने का अच्छा तजुर्बा भी हासिल है। गौरतलब है कि नई सड़कों के निर्माण के बाद भारतीय सेना को बर्फबारी के बावजूद, आवश्यक होने पर LAC तक सैन्य साजोसामान और रसद पहुँचाने में दिक्कत नहीं होगी।
आने वाले 4 महीने दोनों सेनाओं के लिए बहुत कठिन होने वाले हैं। लद्दाख में तापमान -30 डिग्री तक गिर जाता है। लेकिन माउंटेन वार फेयर में सक्षम सैन्य टुकड़ियों के पहाड़ों की ऊंचाइयों पर काबिज होने के कारण चीन की अपेक्षा भारतीय सेना की स्थिति अधिक मजबूत है।