“कर्ज़ चुकाने के लिए पैसा नहीं”, अफ्रीका ने चीन के कर्ज़ जाल का फंदा बनाकर उसमें चीन को ही फंसा दिया

ना खाता-ना बही, जो अफ्रीका वाले कहें वो ही सही!

अफ्रीका

अफ्रीका में चीन की “debt diplomacy” उसी सांप की तरह चीन को डसने जा रही है, जिसे खुद चीन ने ही दूध पिलाकर बड़ा किया है! अफ्रीका को अपने debt-trap में फंसाने के लिए पिछले एक दशक में चीन ने भरसक प्रयास किया है। आज अफ्रीकी देशों पर अकेले चीन का ही करीब 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह अफ्रीकी देश चीन के इस कर्ज़ को वापस चुका पाएंगे? इन देशों की मौजूदा आर्थिक हालत पर नज़र डाली जाये, तो शायद बिलकुल नहीं! इसके अलावा कोरोना की मार के कारण भी कुछ देश दिवालिया होने की स्थिति में पहुँच चुके हैं। यही चीन के लिए अब सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है और अब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दबाव में चीन पर इन देशों को दिये गए कर्ज़ को माफ़ करने का दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव में अब चीन ने अफ्रीकी देशों को दिये गए ब्याज-रहित कर्ज को माफ करने की घोषणा की है, जो आगे चलकर खुद चीन के लिए बड़ी वित्तीय समस्या खड़ी कर सकती है।

बता दें कि कोरोना के बाद जी20 देशों द्वारा विकासशील और गरीब देशों को कर्ज़ के भुगतान संबन्धित राहत प्रदान करने के लिए Debt Service Suspension Initiative यानि DSSI स्कीम शुरू की गयी थी। इस स्कीम के शुरू करने के बाद World Bank के अलावा अमेरिका, UK और फ्रांस जैसे देशों ने चीन पर अफ्रीकी देशों को राहत नहीं प्रदान करने का आरोप भी लगाया था। फ्रांस ने कहा था “हम अफ्रीकी देशों को राहत प्रदान करने का आश्वासन देते हैं। इसी के साथ हम चीन से भी ऐसा करने का अनुरोध करते हैं, जो अफ्रीकी देशों की कोरोना-विरोधी लड़ाई को मजबूती प्रदान करेगा।” शुरू में चीन ने अपना दिया कर्ज़ माफ़ करने में आनाकानी ज़रूर दिखाई थी लेकिन अब लगता है अफ्रीकी देशों के दबाव में चीन ने अपने हाथ खड़े करने का फैसला कर लिया है।

चीन के Exim Bank ने अब ऐलान करते हुए कहा है कि वह करीब 11 अफ्रीकी देशों को दिये गए उस Interest-free loan को माफ़ कर देगा, जिसका भुगतान इस वर्ष के आखिर तक किया जाना था। माना जा रहा है कि चीन के इस ऐलान का ज़ाम्बिया, एंगोला, यूथोपिया, कोंगों, जिबूती, मोज़ाम्बिक और केन्या जैसे देशों को सीधे तौर पर फायदा मिल सकता है। बता दें कि अफ्रीका पर चीन का Interest-free कर्ज़ उसके कुल कर्ज़ का सिर्फ 5 प्रतिशत ही है, लेकिन माना जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण चीन इसी तरह के ऐलान भविष्य में भी कर सकता है।

कोरोना के कारण दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को तगड़ा झटका पहुंचा है। इस वर्ष भारत की GDP में 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ होने का अनुमान है। IMF के अनुमान के अनुसार दुनिया की GDP में इस वर्ष 4.4 प्रतिशत की नेगेटिव विकास दर दर्ज़ की जा सकती है। चीन की GDP इस वर्ष 1.9 प्रतिशत की दर से विकास कर सकती है, लेकिन चीन के आंकड़ों पर विश्वास करना मूर्खता ही कहलाई जाएगी। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कोरोना के कारण खुद चीन के सामने भी बड़ी वित्तीय समस्या खड़ी हो गयी है। इसी कारण हाल ही में चीनी बैंकों में पाकिस्तान में जारी CPEC (China Pakistan Economic Corridor) के लिए कर्ज़ देने से मना कर दिया था, क्योंकि उन्हें इस कर्ज़ का bad debt में तब्दील होने का खतरा था। ऐसे में अगर चीन को इन देशों को दिया गया सारा कर्ज़ माफ़ करना पड़ता है, तो चीन पर वित्तीय समस्याओं का पहाड़ टूटना तय है।

वित्तीय समस्याओं के साथ-साथ चीन द्वारा कर्ज़ माफी करना उसकी debt diplomacy के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है। अगर debt ही नहीं रहेगा, तो चीन की debt-diplomacy कहाँ से चीन के हितों को बढ़ावा दे पाएगी? चीन अपने कर्ज़ का कूटनीतिक इस्तेमाल करने में माहिर है। उदाहरण के लिए श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को कौन भूल सकता है। वर्ष 2017 में चीन ने श्रीलंका के पोर्ट पर तब कब्जा कर लिया जब श्रीलंका 1.5 बिलियन के चीनी कर्ज़ को चुकाने में नाकाम सिद्ध हुआ। यह चीन की बड़ी कूटनीतिक जीत थी। इतना ही नहीं, वर्ष 2018 में चीन ने यूथोपिया को BRI के तहत दिये कर्ज़ को लेकर थोड़ी राहत प्रदान करने का फैसला लिया था, लेकिन उसके साथ ही चीन ने यूथोपिया की national power company में लगभग 1.8 बिलियन का रणनीतिक निवेश कर डाला था। यानि कर्ज़ के सहारे चीन के लिए एक और कूटनीतिक लाभ! चीन ने इसी मंशा से अफ्रीका में BRI के तहत बड़े-बड़े कर्ज़ दिये थे, वो भी गरीब देशों को! चीन को पता था कि भविष्य में ये देश जैसे ही कर्ज़ चुकाने में अपनी अक्षमता दिखाएंगे, उसे रणनीतिक कदम आगे बढ़ाने का मौका मिल जाएगा। हालांकि, यह चीन ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि कभी उसपर इस कर्ज़ को पूरी तरह माफ करने का भी दबाव बनाया जा सकता है।

कुल मिलाकर चीन ने पिछले एक दशक में अफ्रीका को अपने चंगुल में फँसाने के लिए जो कर्ज़-जाल बुना था, वह अब चीन के गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है। wolf warrior diplomacy के बाद अब चीन की debt-diplomacy भी दम तोड़ती नज़र आ रही है।

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