जहां एक तरफ पूर्वी लद्दाख की आड़ में भारत को डराने धमकाने की चीनी नीति सुपर फ्लॉप सिद्ध हुई, तो वहीं शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीनी प्रशासन ने अपनी लाज बचाने के लिए एक नई युक्ति खोज निकाली है – ताइवान के साथ गुंडागर्दी करो। अगर साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के एक रिपोर्ट की माने, तो चीन जल्द ही ताइवान पर आक्रमण कर सकता है।
लेकिन सच्चाई काफी अलग है। SCMP की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि चीन भले हिए ताइवान के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां करता हुआ दिखाई दे, परंतु वह वास्तव में ताइवान के विरुद्ध युद्ध नहीं करना चाहता। इससे एक बार फिर ये स्पष्ट होता है कि चीन सिर्फ बातों का शेर है, वास्तव में उसकी ताकत नाममात्र की भी नहीं है।
इस समय चीन ने अपने दक्षिण पूर्व के तटीय क्षेत्र में डीएफ़-17 जैसे हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात किए हैं। SCMP की रिपोर्ट के अनुसार, “जल्द ही DF-17 [DF-11 और DF-15] जैसे पुराने मिसाइल्स का स्थान लेगा, जो इस क्षेत्र में दशकों से तैनात थे। इस मिसाइल की मारक क्षमता काफी अच्छी है और इसका निशाना भी बेहद सटीक है।”
कनाडा स्थित कानवा डिफेंस रिव्यू के प्रमुख संपादक आन्द्रे चेंग के अनुसार चीन ने ताइवान की वायुसेना के किसी भी हमले का मुक़ाबला करने के लिए अपने पास मौजूद रूस के एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को इन्स्टाल किया है। ताइवान ने अभी तक चीन के विरुद्ध कोई आक्रामक कदम नहीं उठाया है, ऐसे में चीन द्वारा इन शस्त्रों की तैनाती का अर्थ स्पष्ट है – वह अपने शक्ति प्रदर्शन पर इस समय अधिक ज़ोर दे रहा है।
इस निर्णय से अब शी जिनपिंग ने देश का ध्यान ताइवान से हो रही तनातनी पर केन्द्रित कर दिया है। जून में कुछ इसी प्रकार की हरकत चीन ने भारत के साथ करने की कोशिश की थी, जिसपे गलवान घाटी में उसकी तबीयत से धुलाई की गई थी। अगस्त और सितंबर में भी चीन के हर हमले का भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। अब मरता क्या न करता, चीन को अपने छवि की लाज तो रखनी ही थी, इसलिए अब उसने ताइवान के साथ गुंडई करना शुरू कर दिया।
इसके संकेत शी जिनपिंग ने पहले ही दे दिये, जब चीन के दक्षिणी राज्य गुयांगडोंग के दौरे पर उन्होंने एक सैन्य बेस का दौरा किया। वहाँ उपस्थित पीएलए के नौसैनिकों को जिनपिंग ने कहा, “आपको अपने संयम और ऊर्जा को युद्ध के हिसाब से तैयार करना होगा, और सतर्क भी रहना होगा। नौसैनिकों के अनेक मिशन होते हैं, और अब आपको आने वाले समय के अनुसार अपने आप को ढालना होगा। शायद आपको युद्ध में भी हिस्सा लेना पड़े, इसलिए अपनी ट्रेनिंग पर आप उसी प्रकार से ध्यान दीजिये।”
अब चीन ताइवान जैसे द्वीपीय देश को डरा धमकाकर रखना चाहता है, ताकि एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में उसकी छवि एशिया में बनी रहे। इसीलिए इन दिनों ताइवान की हवाई सीमा में चीनी फाइटर जेट्स द्वारा घुसपैठ अब बहुत आम बात हो चुकी है। चीन का मूल उद्देश्य यही है कि युद्ध का माहौल बना रहना चाहिए, भले ताइवान के साथ वो वास्तव में युद्ध न करे, क्योंकि यदि वाकई में युद्ध हुआ, तो सबको ज्ञात है कि किसका कीमा पहले बनेगा।
अगर देखा जाये, तो सैन्य बल के आधार पर ताइवान को कुचलना चीन के लिए बिलकुल भी आसान नहीं होगा, क्योंकि ताइवान के साथ अमेरिका मजबूती से खड़ा है। इसलिए वह ताइवान को निरंतर मोर्चे पर लगाए रख के उसे थकाना चाहता है, ताकि चीन का पलड़ा भारी रहे। लेकिन यही नीति एलएसी पर उसके लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है, क्योंकि भारत भी इसी नीति से भारत-तिब्बत बॉर्डर पर डेरा डाले हुए है।
चीन भली-भांति जानता है कि वह भारत को न दबा सकता है, और न ही युद्ध में हरा सकता है, इसलिए वह सोच रहा है कि किसी भी तरह ताइवान को डरा धमकाकर वह अपने आप को बाहुबली सिद्ध कर सके। लेकिन चीन शायद यह भूल रहा है कि ताइवान भी इस नीति को भली-भांति जानता है, और जिनपिंग की यह कोशिश कम्युनिस्ट चीन का सर्वनाश भी करा सकती है।