हाल ही में एक अहम निर्णय में भारत के वर्तमान सैन्य प्रमुख, Manoj Mukund Naravane (मनोज मुकुंद नरवणे) एवं भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने म्यांमार का दौरा करने का निर्णय किया है। इस निर्णय के पीछे एक बहुत ही सधी हुई सोच है, जिसका प्रमुख निशाना है चीन।
8 नवंबर को म्यांमार में प्रस्तावित आम चुनाव से पहले भारत के उच्चाधिकारी म्यांमार के सैन्य बलों के कमांडर इन चीफ वरिष्ठ जनरल मिन आंग हलैंग और Myanmar की राज्य सलाहकार औंग सान सू की के साथ मुलाक़ात करेंगे। इस मुलाक़ात के जरिये म्यांमार के साथ कई शिपिंग समझौतों, कालादान मल्टी मॉडल प्रोजेक्ट एवं आतंकी गुटों के विरुद्ध दोनों देशों की रणनीति पर प्रमुख तौर से बातचीत किए जाने का अंदेशा है। इससे पहले दोनों देशों के विदेश सचिवालय ने वर्चुअल संबोधनों के जरिये पूरब का चाबहार माने जाने Sittwe बंदरगाह को 2021 के प्रारम्भ तक सक्रिय कराने की योजना पर हामी भरी है।
इन बातों पर प्रकाश डालते हुए हर्षवर्धन श्रृंगला ने अपने सम्बोधन में कहा, “भारत द्वारा Myanmar को दी जाने वाली सहायता करीब 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। COVID 19 की महामारी के बावजूद हम अगले वर्ष के प्रथम तिमाही तक Sittwe बन्दरगाह को सक्रिय बनाना चाहते हैं”।
इसके अलावा उन्होंने आगे कहा, “महत्वाकांक्षी भारत-म्यांमा-थाईलैंड राजमार्ग परियोजना के तहत प्रस्तावित 69 पुलों की निविदा प्रक्रिया का काम भी जल्दी शुरू होगा। मुझे यह बताते हुए हर्ष महसूस हो रहा है कि तामू पर आधुनिक इंटेग्रेटेड चेकपोस्ट, 50 प्राथमिक विद्यालयों के लिए MOU और कृषि आधुनिकीकरण सबस्टेशन के लिए प्रोजेक्ट एग्रीमेंट पर जल्द ही हम दोनों हस्ताक्षर करेंगे। हम Bwaynu पुल के लिए भी हरसंभव सहायता देने को तैयार हैं”।
यह समझौते न केवल कूटनीतिक रूप से, बल्कि रणनीतिक रूप से भारत और Myanmar के लिए बहुत अहम है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन म्यांमार में अलगाववादी गुटों को काफी बढ़ावा देता है, और वहीं दूसरी ओर भारत उन अलगाववादियों से लड़ने के लिए म्यांमार की हरसंभव सहायता करता है। इसके अलावा अफगानिस्तान की भांति भारत म्यांमार के विकास परियोजनाओं में भी हर प्रकार की मदद करता है।
पिछले कुछ वर्षों में म्यांमार और चीन के सम्बन्धों में काफी बदलाव आया है। Myanmar ने इस बात पर चीन की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि कैसे चीन म्यांमार को अस्थिर करने के लिए अलगाववादियों और आतंकवादियों को बढ़ावा देता आया है। चीन की अराकान आर्मी जैसे आतंकी संगठन के साथ काफी गहरे नाते हैं, और उन्हें वित्तीय रूप से पोषित करने में चीन ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि दोनों का प्रमुख निशाना म्यांमार में निर्मित हो रहे भारतीय प्रोजेक्ट्स हैं, ताकि चीन का प्रभाव Myanmar पर बना रहे।
CPEC aur BRI की भांति चीन चीन-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर को भी बढ़ावा दे रहा है, ताकि बंगाल की खाड़ी पर चीन अपना वर्चस्व जमा सके। प्रारम्भ में म्यांमार भी चीन के साथ इस परियोजना पर काम कर रहा था, लेकिन अब वह इतना इच्छुक नहीं है, क्योंकि उसे भली भांति पता है कि चीन किस तरह उसे अपने क़र्ज़े के जाल में फंसाना चाहता है।
इसीलिए भारत अब खुलकर Myanmar के समर्थन में सामने आया है, और वह अपने पड़ोसी देश को आतंकियों एवं अलगाववादियों को मुंहतोड़ जवाब देने में पूरी सहायता कर रहा है। इसके अलावा वह अफगानिस्तान की भांति म्यांमार को आंतरिक सुरक्षा एवं विकास से संबन्धित मामलों में भी हरसंभव सहायता प्रदान करने को तैयार है। ऐसे में जिस तरह चीन के चंगुल से श्रीलंका और मालदीव को भारत ने छुड़ाया, उसी तरह अब भारत ने चीन के विरुद्ध म्यांमार का हाथ थामा है।