नीतीश जी, बिहार का समुद्र किनारे न होना उद्योगों के न आने का कारण नहीं है, लेकिन ये जरुर है

समझे की नाही!

बिहार नीतीश कुमार

भारत में कई मुख्यमंत्री हुए लेकिन नीतीश कुमार जैसा कोई नहीं हुआ है। अगर लालू यादव ने 15 वर्षों में बिहार को दो दशक पिछे धकेला तो नीतीश कुमार अपने कार्यकाल में इसे दो दशक से अधिक पीछे ले गए हैं। अब बिहार चुनाव में कैम्पेन के दौरान उनका कहना है कि बिहार समुद्र से नहीं घिरा है, इसलिए यहां उद्योग नहीं हैं। उन्होंने कहा कि, “ज्यादा बड़ा उद्योग कहां लगता, समुद्र के किनारे जो राज्य पड़ते हैं, उन्हीं जगहों पर ज्यादा लगता है। हम लोगों ने तो बहुत कोशिश की।”

यही मानसिकता तो आज बिहार के भारत में सबसे पिछड़े राज्य होने का कारण है। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था और यह देश विश्व के सबसे अमीर देशों में से एक था, लेकिन 19वीं और 20वीं शताब्दी आते-आते भारत एक गरीब देश बन चुका था। भारत के लंबे इतिहास में, किसी भी अल्पकालिक घटना को एक संरचनात्मक समस्या के बजाय एक नीतिगत मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, 19 वीं और 20 वीं सदी में गरीब हो होना तत्कालीन नीतियों में समस्या को दर्शाता है। बिहार की भी यही हालत हुई है और इसके जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि नीतीश की नीतियाँ हैं।

कम्युनिस्टों और समाजवादियों के बारे में आकर्षक बात यह है कि वे परिणाम देने में असमर्थता को छिपाने के लिए लोगों को अक्सर इन दोनों मुद्दों पर भ्रमित करते हैं। यही कारण हैं कि मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों ने उदारीकरण से पूर्व की अवधि के दौरान भारत की कम आर्थिक वृद्धि के लिए हिन्दू धर्म को दोषी ठहराया और इसे हिंदू विकास दर कहा। ऐसा लगता है कि उन्हीं मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों से प्रेरित होकर नीतीश कुमार बिहार की गरीबी के लिए समुद्र तट की अनुपलब्धता को दोषी ठहरा रहे हैं।

अगर कोई बिहार के आर्थिक इतिहास को पलट कर देखेगा तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार ऐतिहासिक रूप से देश के कुछ सबसे समृद्ध क्षेत्रों में आता था। ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन, जिन्होंने ऐतिहासिक देशों की जीडीपी की गणना की, उनके शोध के अनुसार भारत मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास के लिए सबसे प्रमुख अर्थव्यवस्था था और भारत के भीतर, उपजाऊ गंगा का मैदान, जहाँ बिहार आधुनिक राज्य है और देश का सबसे समृद्ध क्षेत्र भी है।

आज जिसे पटना कहा जाता है वह पाटलिपुत्र के नाम से लंबे समय तक देश की राजनीतिक और आर्थिक राजधानी थी। उस दौरान जब देश की राजनीतिक केंद्र अन्य क्षेत्र में स्थानांतरित हुई उसके बाद भी इस शहर की आर्थिक प्रगति के सामने अन्य शहर फेल थे।

ऐसे समृद्ध बिहार को लेकर अब नीतीश कुमार रोना रो रहे हैं कि बिहार में समुद्र तट नहीं है, लेकिन उन्होंने गंगा नदी पर बने व्यापार मॉडल से सबक भी नहीं लिया और ना ही इतिहास से कोई प्रेरणा ली। यह मॉडल ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र की समृद्धि के पीछे एक प्रमुख कारण था।

आज दिल्ली और कोलकाता के बीच अधिकांश इनलैंड ट्रेड सड़कों के माध्यम से होता है। आज राष्ट्रीय और राज्य के राजमार्ग अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं, लेकिन खर्च अधिक है। देश के आकार को देखते हुए, सड़क परिवहन के अन्य विकल्प से किसी भी क्षेत्र की उत्पादकता में सुधार हो सकता है।

बिहार में गंगा सहित 200 से अधिक छोटी और बड़ी नदियाँ हैं जो पूरे राज्य से होकर बंगाल तक पहुँचती हैं। अगर राज्य सरकार ने गंगा और उसकी सहायक नदियों के माध्यम से जलमार्ग विकसित करने के प्रयास किए होते, तो आज बिहार एक प्रमुख व्यापार और वाणिज्य का केंद्र होता!

इसके अलावा, वोट बैंक के लिए राज्य में चार साल पहले शराब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। नीतीश कुमार उन महिलाओं के बीच एक नया वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रहे थे, जिनके पति शराब का सेवन करते हैं। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो पटना भारत का लास वेगास रहा है और यहां देश के कुछ बेहतरीन बार मौजूद हैं। बिहार की आर्थिक गिरावट के बावजूद, वर्ष 2016 में शराब पर excise duty से सरकारी खजाने में लगभग 4,000 करोड़ रुपये जमा हुए थे और उसी वर्ष नीतीश कुमार ने शराब पर प्रतिबंध लगा दिया। यह बिहार की विडम्बना ही कहेंगे।

नीतीश कुमार बिहार के लैंडलॉक होने पर रोना रो रहे हैं, लेकिन अमेरिका का राज्य Nevada एक लैंडलॉक राज्य है जहां लास वेगास स्थित है। इसके बावजूद इस राज्य ने अपने आप को अमेरिका की पर्यटन और आतिथ्य राजधानी के रूप में स्थापित किया है।

बिहार में पर्यटन की अपार संभावनाओं और पटना के ऐतिहासिक समृद्धि को देखते हुए, इस शहर को आसानी से भारत के पर्यटन और आतिथ्य केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकता था। लेकिन ऐसे विकास के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है, जो सीएम की कुर्सी के लिए प्यासे नीतीश कुमार के पास नहीं है।

बिहार में अरबों डॉलर के राजस्व और बड़ी संख्या में रोजगार पर्यटन और आतिथ्य उद्योग से उत्पन्न हो सकते थे लेकिन अब ये सभी अवसर उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों में स्थानांतरित हो गए हैं।

पर्यटन और आतिथ्य के अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी, आईटी-सक्षम सेवाएं, शिक्षा, अनुसंधान, और मीडिया जैसे कई सर्विस क्षेत्र के उद्योग हैं जिनका समुद्री तट के साथ कोई लेना देना नहीं हैं।

लेकिन नीतीश कुमार अपनी समाजवादी नीतियों को बचाने के लिए और बिहार की गरीबी के लिए समुद्र की अनुपलब्धता का बहाना बना रहे हैं। उनके तथा उनके पूर्ववर्ती लालू यादव के तीन दशकों तक गुंडाराज, समाजवाद और भ्रष्टाचार को राज्य की गरीबी के कारणों में नहीं गिनाया जाता है। समाजवाद की बेड़ियों में जकड़े इस राज्य के सत्ता में बैठे इन समाजवादी नेताओं ने न तो राज्य में किसी तरह का इंडस्ट्रियल विकास होने दिया और न ही किसी प्रकार का निजी निवेश होने दिया। जिसका परिणाम आज सामने है।

एक अच्छे नेता या policy maker को किसी राज्य को विकसित करने के लिए कम से कम 10-15 वर्ष काफी होता है। बिहार में भी लगातार पहले लालू यादव का शासन रहा फिर अब नितीश कुमार का, दोनों ने ही लगभग 15 वर्षों तक शासन किया लेकिन बिहार आज भी पिछड़ा राज्य है। आज बिहार socio-economic indicator के निचले पायदान पर है और इसका कारण समुद्र तट न होना नहीं है बल्कि नीतीश कुमार की नीतियाँ हैं।

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