रक्षा क्षेत्र में भारत का दायरा धीरे-धीरे ही सही लेकिन ठोस रूप से बढ़ रहा है। भारतीय डीआरडीओ द्वारा डिजाइन किए गए घातक ड्रोन की सफलता इस बात का सबसे सटीक उदाहरण है, इसके अगले जेनरेशन की डिजाइन का काम शुरू कर दिया गया है। भविष्य में ड्रोन कहीं भी हमला करने के लिए कारगर साबित हो सकते हैं जिनकी मदद से दुश्मन के इलाकों में आसानी से बम गिराए जा सकते हैं। हाल की अज़रबैजान और अर्मेनिया की जंग में भी इन ड्रोन का इस्तेमाल बड़ी संख्या में हुआ है। ऐसे में भारत रक्षा क्षेत्र में ड्रोन की तकनीक पर तेजी से काम कर रहा है जिससे वो वैश्विक स्तर पर ड्रोन की एक सशक्त ताकत के साथ सामने आ सके।
दरअसल, भारत की गुप्त रक्षा परियोजनाओं में डीआरडीओ द्वारा बनाया जा रहा “घातक” ड्रोन है जिसे पहले ‘औरा’ भी कहा जाता था जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना के लिए ऐसे ड्रोन बनाना है जो दुश्मनों के इलाकों में इंसानी मौजूदगी के बिना बमों की बारिश कर उनके परखच्चे उड़ा दें। इससे अपने लिए दुर्घटनाओं की संभावनाएं बेहद कम हो जाएंगी। इसका डिजाइन आईआईटी कानपुर द्वारा रिलीज एक वीडियो में सामने आया है। इसका डिजाइन एक फ्लाइंग विंग के कॉन्सेप्ट पर है जो कि टेल लेस है।
खबरों के मुताबिक इस डिजाइन को SWIFT (Stealth Wing Flying Testbed) के नाम से जाना जाता है। वहीं इसका मुख्य नाम “घातक यूएवी” रखा गया है। रिलीज हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि इस SWIFT के एक से अधिक मॉडल तैयार किए गए हैं और इसमें निचले रडार क्रास सेक्शन के साथ ही विंड टनल से जुड़े टेस्ट किए गए हैं जो कि इसकी क्षमता को बढ़ाने में सहायक होगा।
ये संभावनाएं जताई जा रही है कि जब तक घातक उड़ान भरने को तैयार हो जाएगा तब तक भारत अपने विमान इंजन “कावेरी” तैयार कर लेगा और इसकी तकनीकों को अधिक विकसित कर लेगा। गौरतलब है कि इस काम में फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन भारत का साथ देगी जिसको लेकर राफेल सौदे के दौरान ऑफसेट का करार तय किया गया था। “घातक” ड्रोन भारत की एक राष्ट्रीय रक्षा परियोजना है। संभावनाएं हैं कि भारत सरकार भविष्य में निजी क्षेत्र की कंपनियों के जरिए इसकी 5वीं जेनरेशन पर काम करने को तैयार होगी जो कि भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण फैसला होगा। इससे भविष्य में भारतीय सेना को बालाकोट जैसी एयर स्ट्राइक करने के लिए मानवरहित इन ड्रोन्स की मदद मिलेगी और सेना के जवानों के जान की हानि का खतरा नामुमकिन होगा। वहीं जब हमारे पास खुद इतने बेहतरीन ड्रोन होंगे तो हमारा रक्षा क्षेत्र में आयात नहीं निर्यात बढ़ेगा।
गौरतलब है कि हाल ही में अज़रबैजान और अर्मेनिया की जंग में इजराइल के ड्रोन तबाही मचा रहे हैं। अज़रबैजान की सेना अर्मेनिया के टैंकों को निशाना बनाने के लिए इजराइल के Harop kamikez drone का इस्तेमाल कर रही है जिसने तबाही मचा दी है। अमेरिका पहले ही ईरान के कमांडर कासिम सुलेमानी को ड्रोन के जरिए मारकर इसका उपयोग दिखा चुका था। ऐसे में ये खतरनाक ड्रोन युद्ध, उदाहरण हैं कि भविष्य में इनका युद्ध क्षेत्र में सबसे अधिक प्रयोग होगा।
वर्तमान में विश्व के कई देश मानवरहित विमानों से बमबारी के लिए शोध कर रहे हैं। रूस का सुखोई एस-70 भी इसी काम के लिए 2019 में तैयार किया गया था। वहीं इसी तरह की योजनाओं में ब्रिटिश बीएई सिस्टम्स तारनीश, जर्मन / स्पैनिश ईएडीएस बाराकुडा, अमेरिकन बोइंग एक्स -45 और नॉर्थ रो ग्रुम मेन एक्स -47 बी, फ्रेंच डसाल्ट नैयर, लॉकहीड मार्टिन के आरक्यू -170 और रूसी मिकोयान स्कॉट शामिल हैं और ये इस रक्षा क्षेत्र में ड्रोन इंडस्ट्री के काम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहें हैं।
युद्धक ड्रोन को लेकर अमेरिका, इजराइल, कनाडा लगातार काम कर रहें हैं। इन सभी ने इस तरह के ड्रोन तैयार किए हैं जिससे दुश्मनों को घर में घुसकर मारा जा सके। ये सभी अन्य देशों में भी रक्षा सौदे कर इन ड्रोन से आर्थिक लाभ लेते हैं। चीन तो इस सूची में भी सबसे ऊपर आता है जो कि इस पूरे मार्केट पर भी अपना कब्जा कर के बैठा है। ऐसे में भारत के सामने ड्रोन और यूएवी के क्षेत्र में सुपर पावर बनने का सुनहरा मौका है जिससे न केवल रक्षा क्षेत्र बल्कि व्यापारिक और आर्थिक दृष्टि से भी उसे लाभ हो सकेगा।