मध्य एशिया के देश किर्गिस्तान में इन दिनों राजनीतिक उठापठक जारी है, जिसके दूरगामी भू-राजनीतिक प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं। हाल ही में इस देश में चुनाव हुए थे जहां राष्ट्रपति Sooronbay Jeenbekov दोबारा राष्ट्रपति चुनकर आए, लेकिन नतीजे आने के तुरंत बाद बड़ी संख्या में उनके विरोधी सड़क पर उतर आए, और Jeenbekov पर चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए देश में दोबारा चुनाव कराने की मांग करने लगे।
Jeenbekov के विपक्षी गुट ने देश में इतना हँगामा खड़ा कर दिया कि विद्रोहियों ने जेल में बंद किए गए देश के पूर्व राष्ट्रपति Sadyr Japarov को जबरन रिहा करा दिया। Sadyr Japarov को kidnapping के आरोपों के तहत वर्ष 2017 में गिरफ्तार किया गया था, और उन्हें 11 वर्षों के लिए जेल में रहने की सज़ा सुनाई गयी थी, लेकिन देश में Jeenbekov के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के कारण अब Jeenbekov को अपने राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देना पड़ा है, जिसके बाद Japarov ही देश के प्रधानमंत्री और अन्तरिम राष्ट्रपति बन गए हैं। अगले साल देश में दोबारा राष्ट्रपति के चुनाव होंगे जहां दोबारा लोकप्रिय नेता Japarov के ही राष्ट्रपति चुने जाने के आसार हैं।
हालांकि, यहाँ कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है, बल्कि किसी अन्य मध्य एशिया के देश की तरह ही यहाँ के चुनावों को लेकर भी मॉस्को और बीजिंग के बीच तनाव देखने को मिलता ही है। वैसे तो Jeenbekov और Japarov, दोनों ही रूस के करीबी माने जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से Jeenbekov ने चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना शुरू कर दिया था, जो मॉस्को को पसंद नहीं आ रहा था। Jeenbekov ने शिंजियांग में चीन द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी चुप्पी साध ली थी। उइगर के मुद्दे पर उन्होंने साफ-साफ कह दिया था “वे दूसरे देश के नागरिक है, हमें चीन के अंदरूनी मामले में टांग नहीं अड़ानी चाहिए।” ये कुछ ऐसा ही था अगर भारत कल को पाकिस्तानी हिंदुओं को दूसरे देश के नागरिक बताकर उनके हक में आवाज़ उठाना बंद कर दे। उनके इस रवैये के कारण ही देश में उनकी लोकप्रियता में भारी कमी देखने को मिल रही थी।
दूसरी ओर Japarov राष्ट्रपति पुतिन के बेहद करीबी दोस्त माने जाते हैं। Experts के मुताबिक Japarov ने रूस के उप-प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के बाद ही Jeenbekov से इस्तीफ़े की अपनी मांग को और तेज कर दिया था। किर्गिस्तान के पूर्व सांसद Beshimov यह भी दावा करते हैं कि विरोध प्रदर्शनों के सामने हार मानकर Jeenbekov का राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना दिखाता है कि पुतिन उनके नेतृत्व से खुश नहीं थे। ऐसा भी हो सकता है कि जिस प्रकार Jeenbekov लगातार चीन के साथ नज़दीकियाँ बढ़ा रहे थे, उसके कारण रूस में असुरक्षा की भावना बढ़ गयी हो, क्योंकि रूस मध्य एशियाई देशों को “अपने प्रभुत्व का इलाका” मानता है, जहां पर किसी तीसरे देश के हस्तक्षेप का मॉस्को पर सीधा असर पड़ता है।
साफ़ है कि फ़िलहाल Japarov के चयन से रूस के लिए तो सभी समस्याओं का हल निकल चुका है, क्योंकि वे पुतिन के करीबी माने जाते हैं और वे देश में चीनी प्रभाव को बढ़ाने वाला कोई काम नहीं करेंगे। हालांकि, चीन के लिए यहाँ समस्या बेशक खड़ी हो सकती है क्योंकि अब किर्गिस्तान के नए नेता शायद उइगर के मुद्दे पर बोलने में आनाकानी ना करें। इस मध्य एशिया देश में चीन पहले जो बाज़ी जीतता हुआ दिखाई दे रहा था, अब पुतिन ने बिना कोई हल्ला मचाये सारा खेल अपनी मुट्ठी में कर लिया है।