चीन के लिए इस समय मुसीबतें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। एक ओर एलएसी पर भारत उसे पटक-पटक धोने के लिए पूरी तरह से तैयार है, तो वहीं अमेरिका आर्थिक तौर पर उसे पूरी दुनिया से अलग-थलग करने की व्यवस्था कर रहा है। लेकिन इसी बीच एक और देश ने चीन को उसकी औकात बताने की योजना तैयार की है, और जल्द ही वह भी चीन को उसकी औकात बताने के लिए दक्षिण चीन सागर के मोर्चे में प्रवेश कर सकता है, और ये देश कोई और नहीं, बल्कि यूके है।
यूके जल्द ही ईयू से सभी प्रकार के नाते तोड़ने वाला है, और वह ब्रेक्ज़िट के पश्चात कई देशों के साथ अपने व्यापार संबंध को नए सिरे से स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है। इसी परिप्रेक्ष्य में यूके की योजना पर प्रकाश डालते हुए साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपने रिपोर्ट में लिखा, “ब्रेक्ज़िट का अर्थ है कि अब ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड एवं एशियाई देशों को अपना व्यापारिक साझेदार बनाना चाहती है। चूंकि अब ब्रिटेन के जहाजों को काफी लंबी दूरी नापनी होगी, इसीलिए दक्षिणपूर्वी एशिया में नए डील करना बहुत ज़रूरी है, जिसके लिए सिंगापुर, जापान, वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ बातचीत पहले ही जारी है।”
परंतु साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट इतने पर नहीं रुका। रिपोर्ट में आगे कहा गया, “यदि ब्रिटेन अमेरिका के साथ अपने ट्रेड व्यापार को और मजबूत बनाता है, तो वह CPTPP यानि Comprehensive and Progressive Agreement for Trans Pacific Partnership को भी जॉइन करेगा। इस निर्णय का अर्थ स्पष्ट है – रॉयल नेवी न केवल एशिया की सुरक्षा हेतु अमेरिका के 7वीं जंगी बेड़े [America 7th Fleet] का बोझ कम करेगा, अपितु दक्षिण चीनी सागर में संभवत: अपनी उपस्थिति भी दर्ज़ कराएगा।”
लेकिन यूके का यह निर्णय यूं ही सामने नहीं आया है, बल्कि इसकी नींव सितंबर में ही पड़ चुकी थी। सितंबर में यूके, फ्रांस और जर्मनी ने चीन की गुंडागर्दी को लेकर एक संयुक्त बयान यूएन में सब्मिट किया, जिसमें उन्होंने चीन की हास्यास्पद ‘Nine Line Dash’ theory एवं दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावों और उसकी गुंडागर्दी की भर्त्सना करते हुए यूएन से सख्त एक्शन की मांग की है।
ET की रिपोर्ट के अनुसार, “ 16 सितंबर 2020 को अपने सब्मिशन में जर्मनी, यूके और फ्रांस ने संयुक्त रूप से बीजिंग के दक्षिण चीन सागर पर ‘ऐतिहासिक दावों’ को चुनौती दी है, क्योंकि उनके अनुसार ये अंतर्राष्ट्रीय कानून और यूएन समुद्री कानून कन्वेंशन [UNCLOS] के अनुरूप बिलकुल नहीं है, और न ही यह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा फिलीपींस और चीन के बीच ऐसे ही एक मुद्दे पर दिये निर्णय का सम्मान करती है।”
अब ब्रिटेन भी दक्षिण चीन सागर में चीन को चुनौती देने के लिए आगे आ सकता है। इसकी संभावना मात्र से चीन कितना डरा हुआ है, इसकी ओर संकेत देते हुए साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के रिपोर्ट में आगे लिखा गया, “ब्रिटिश सरकार 2021 तक अपना एक एयरक्राफ्ट कैरियर इस क्षेत्र [दक्षिण चीनी सागर] में संभावित रूप से भेज सकती है। इससे चीन काफी क्रुद्ध है और चीन के राजदूत ने ब्रिटेन को धमकाते हुए उचित जवाब देने की बात भी कही है। लेकिन इस बार ब्रिटेन शायद ही चीन की गीदड़ भभकियों में आएगा, क्योंकि यह तैनाती इस बात का संदेश देगी कि ब्रिटेन अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है, और ट्रम्प के नज़रिये से दक्षिण चीन सागर की ‘उचित निगरानी भी करेगा’। इस तरह से युद्धपोत एशिया भेजने का एक अर्थ यह भी है कि ग्रेट ब्रिटेन केवल इस क्षेत्र को समुद्री डाकुओं से बचाने हेतु आगे नहीं आ रहा है।”
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए अब अमेरिका, जापान और भारत जैसे देशों का साथ देने यूके भी सामने आया है। इससे न केवल अमेरिका को अतिरिक्त समर्थन मिलेगा, अपितु चीन के लिए भी आगे की राह काफी मुश्किल होगी।