बिना खून बहाये लड़ाई लड़ना या कहिए propaganda war में चीन का दुनिया में कोई मुक़ाबला नहीं है। चीन एक ही झूठ को 100 बार बोलकर उसे सच सिद्ध करने की कोशिश करता रहने वाला देश है, जिसने दक्षिण चीन सागर में चीनी प्रभुत्व को बढ़ाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई है। दक्षिण चीन सागर में चीन के मजबूत propaganda war के सामने ASEAN के छोटे-छोटे देश बिखर गए और यहाँ चीन का दावा लगातार मजबूत होता गया। वर्ष 2016 में UNCLOS के तहत आई Arbitral ruling में हार के बावजूद चीन अपनी स्थिति से टस से मस नहीं हुआ। इसी बीच चीन ने सफलतापूर्वक अपने 9 डैश लाइन के सिद्धान्त को भी दक्षिण चीन सागर में लागू कर दिया और अन्य देशों की चिंताओं की उसने कभी फिक्र नहीं की। दक्षिण चीन सागर के propaganda war में एकतरफ़ा जीत से ही प्रेरित होकर चीन ने लद्दाख में हिमालय की चोटियों पर भी वही फॉर्मूला दोहराने की कोशिश की, लेकिन यहाँ चीन की चालबाज़ी उसी पर भारी पड़ गयी।
पिछले कई दशकों से ही चीन भारत के खिलाफ propaganda war लड़ता आया है, लेकिन अब की बार लद्दाख में कम से कम भारत तो propaganda war लड़ने के मूड मे नहीं था। नतीजा यह हुआ कि चीन को अपने सैनिकों की बलि देनी पड़ गयी। किसी विवाद, झड़प या युद्ध में चीन ने अपने सैनिक पिछले 50 सालों में नहीं खोये थे। 15 जून की घटना से पहले आखिरी बार भारत-चीन के बीच ऐसी हिंसक मुठभेड़ वर्ष 1967 में हुई थी, जिसमें 88 भारतीय सैनिकों के अलावा 300 चीनी सैनिकों की मौत हुई थी। उसके बाद अब जाकर चीन को पता चला था कि युद्ध के मैदान में लड़ना किसे कहते हैं। भारत-चीन के बीच जारी विवाद के दौरान भारत अपने आप को बखूबी साबित कर चुका है। भारत ने चीनी सैनिकों के साथ सफलतापूर्वक खूनी संघर्ष करने के अलावा हिमालय की अहम चोटियों को अपने कब्जे में कर दुनिया को यह दिखा दिया है कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए किस हद तक जा सकता है। उधर चीन के लिए मुसीबत खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं क्योंकि लद्दाख का मुद्दा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शी जिनपिंग की नाक का सवाल बनकर रह गया है।
भारतीय सेना तिब्बत बॉर्डर पर लंबे समय तक डटे रहने की पूरी तैयारी कर चुकी है। Logistics supply से लेकर हड्डी गला देने वाली ठंड में सुरक्षित रखने वाले body suits तक, सब चीजों का इंतजाम कर लिया गया है। भारत की ओर से ब्रह्मोस जैसी खतरनाक मिसाइलों और अर्जुन जैसे ताकतवर टैंकों को बॉर्डर पर तैनात कर दिया गया है। उधर ठंड आते ही चीनी सैनिक नजदीकी अस्पताल की तरफ भागने लगे हैं। चीन ऐसी स्थिति में पीछे भी नहीं हट सकता क्योंकि इससे ना सिर्फ घरेलू राजनीति में बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी थू-थू होनी तय है। चीन अगर पीछे हटता है तो उससे यह भी साबित हो जाएगा कि चीन असल में पेपर ड्रैगन ही है। अमेरिका-चीन के बीच जारी शीतयुद्ध के दौरान चीन अपनी छवि को इस प्रकार धूमिल तो बेशक नहीं करवाना चाहेगा।
यहाँ चीन सही मायनों में कैच-22 स्थिति में फंस चुका है, क्योंकि ना तो वह खुलकर भारत के साथ युद्ध कर सकता है, और ना ही वह अब पीछे हट सकता है। लद्दाख में चीनी सेना का कमजोर पक्ष देखकर अब दक्षिण चीन सागर में भी चीन के propaganda war को कड़ी चुनौती मिलना शुरू हो गयी है जहां अब अधिक से अधिक देश चीन के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं। चीन ने सोचा था कि वह आसानी से दक्षिण चीन सागर के फोर्मूले को लद्दाख में लागू कर यहाँ अपने मनमुताबिक एकतरफ़ा बदलाव करने में सफ़ल हो जाएगा, लेकिन भारतीय सेना ने उसकी इस गलतफ़हमी को अब हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दिया है।