नेपाल की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसका रणनीतिक महत्व कभी भी कम नहीं हो सकता है। आस-पास की शक्तियों जैसे भारत और चीन की यही कोशिश रहती है कि Nepal को अपने पाले में रखा जाए। यही कारण है कि दोनों देश नेपाल में अपनी अपनी ताकत दिखाने में जुटे रहते हैं। इसी पावर प्ले का नमूना हमें एक बार फिर से देखने को मिल रहा है जब भारत के विदेश सचिव की नेपाल यात्रा के दो दिन बाद ही चीन ने अपने रक्षा मंत्री को नेपाल भेजने का फैसला किया। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में स्थिति में बदलाव आया है, उससे भारत को नेपाल में चीन के ऊपर बढ़त प्राप्त है।
दरअसल, बॉर्डर विवाद के बाद भारत ने धीरे-धीरे Nepal से अपने रिश्तों को सुधारना शुरू किया है, और कुछ ही दिनों पहले भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने नेपाल का दौरा कर प्रधानमंत्री ओली से मुलाकात की थी। यात्रा के दौरान, विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने COVID -19 संकट से निपटने के लिए Nepal को नई दिल्ली की सहायता के रूप में रेमेडीसविर की 2000 शीशियां सौंपी।
FS @harshvshringla called on Rt. Hon. Prime Minister @kpsharmaoli and conveyed greetings of PM @narendramodi. They discussed the wide-ranging partnership between India and Nepal and ways to further strengthen it. #IndiaNepalFriendship @MEAIndia @PMOIndia pic.twitter.com/xfKYDg905p
— IndiaInNepal (@IndiaInNepal) November 26, 2020
During the visit, Foreign Secretary Harsh Shringla handed over 2000 vials of Remdesivir as part of New #Delhi's assistance to Nepal to deal with the #COVIDー19 crisis.https://t.co/AnZS27Z1YT
— Zee News English (@ZeeNewsEnglish) November 26, 2020
ऐसा लगता है कि चीन नेपाल और भारत के बीच एक बार फिर से गहराते रिश्तों से डर गया है और नेपाल को भारत के खिलाफ करने के लिए अपने सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में से एक Wei Fenghe को Nepal भेज रहा है। चीनी रक्षा मंत्री Wei Fenghe 29 नवंबर को एक दिन की यात्रा पर नेपाल आएंगे। जिस तरह से पिछली बार Nepal सरकार के आंतरिक मामलों में चीन ने नेपाल में चीनी एंबेसडर Hou Yanqi की मदद से ओली सरकार को अपने पाश में जकड़ लिया था, उसी तरह से एक बार फिर से Hou Yanqi सक्रिय हो गयी हैं। काठमांडू पोस्ट के अनुसार उन्होंने ही पीएम ओली से मुलाक़ात कर चीनी रक्षा मंत्री की नेपाल यात्रा सुनिश्चित की। हालांकि, उनकी यह यात्रा ऐसे समय में है जब नेपाल में PLA द्वारा नेपाल की जमीन पर अतिक्रमण करने के कारण चीन विरोधी भावनाएं भड़की हुई है। नेपाल में चीन के खिलाफ लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं और राजधानी काठमांडू में “Go back China” के नारे लग रहे हैं।
"Go back China". Anti china protest in Nepal's capital kathmandu today against Chinese encroachment. pic.twitter.com/w6YkQfdGIH
— Sidhant Sibal (@sidhant) November 21, 2020
भारत सरकार ने नेपाल के महत्व को समझते हुए एक बार फिर Nepal से अपना संपर्क मजबूत किया है। पिछले दिनों RAW प्रमुख सामंत गोयल और फिर सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे ने Nepal की यात्रा की थी। उसके बाद विदेश सचिव शृंगला के वहां जाने का कार्यक्रम बना।
ऐसा लगता है कि चीन भारत के इन्हीं कदमों से सकते में आ गया है और अपने विदेश मंत्री को भेजने का निर्णय लिया है।
बीते एक साल में भारत-नेपाल संबंधों में जो गिरावट आई थी, उसे अब संभाल लिया गया है। बता दें कि नेपाल ने नया नक्शा जारी कर भारत के कई इलाकों को Nepal में दिखाया था और पीएम ओली ने भारत विरोधी बयान भी दिया था। लेकिन भारत की लगातार कोशिशों के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी इस बीच अपना रुख बदला है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लगातार भारत विरोधी बयान के बाद उन्होंने Nepal की स्कूलों में नए नक्शे को हटाने का निर्णय दिया था। यही नहीं बीते विजय दशमी के दिन ग्रीटिंग कार्ड पर उन्होंने नेपाल का पुराना नक्शा भी ट्वीट किया था। हालांकि, इसे फिर बाद यह कहते हुए नकार दिया गया कि फोटो छोटी है इसलिए उसमें नेपाल के दावे किए गए हिस्से नजर नहीं आ रहे हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन समर्थक रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल को कैबिनेट विस्तार के दौरान हटा दिया था जिसको लेकर ये कहा जा रहा है कि Nepal की सरकार अपने सबसे भरोसेमंद पड़ोसी से अपने रिश्तों को सुधारने के लिए ये कदम उठा रही है। यह भारत के प्रति नेपाल के बदले दृष्टिकोण का ही प्रमाण है। नेपाल भले ही चीन के BRI का हिस्सों हो पर सैन्य सहयोग में वह भारत के साथ अधिक करीब है और हमेशा ही चीन को संशय की दृष्टि से देखता है। ऐसे में एक बार फिर से चीन भारत के नेपाल के साथ सम्बन्धों को बिगाड़ने की भरपूर कोशिश कर रहा है लेकिन इस बार भारत चीन के खिलाफ मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है।