अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में जो बाइडन की जीत कई रणनीतिक बदलाव का कारक बनने जा रही है। एक ओर कई देश बाइडन के नेतृत्व को नकार रहे हैं तो वहीं, कई देश अब अमेरिका की छाया से निकलने को बेताब हैं। इन्हीं देशों में से एक है फ्रांस। Emmanuel Macron (इमैनुएल मैक्रों) के नेतृत्व में फ्रांस सिर्फ बाइडन की छाया से ही नहीं निकालना चाहता, बल्कि यूरोपीय संघ की कमान भी अपने हाथों में लेना चाहता है।
दरअसल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि, “भले ही अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जो बाइडन ने जीता हो, लेकिन यूरोपीय संघ को प्रौद्योगिकी, वित्त और रक्षा में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता विकसित करने के अपने प्रयासों पर जोर देना चाहिए।”
पेरिस स्थित पत्रिका, ले ग्रैंड कॉन्टिनेंट के साथ एक साक्षात्कार में, इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प की हार के बाद अब यूरोपीय संघ के नेताओं को समझ लेना चाहिए कि अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि वह आए और यूरोप की सुरक्षा के नियमों को निर्धारित करे तथा सहयोगियों के हितों की रक्षा करे। यानि वह स्पष्ट रूप से बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका पर भरोसा न करने की हिदायत दे रहे हैं।
इमैनुएल मैक्रों ने कहा, “यदि हम स्वयं सुरक्षित हैं और अगर हम अपनी रक्षा के संबंध में संप्रभु हैं तभी अमेरिका हमें सहयोगी के रूप में सम्मान देगा।” उन्होंने आगे कहा कि, “हमें अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने की आवश्यकता है।”
यूरोपीय संघ की कमजोरियों के उदाहरण के रूप में, इमैनुएल मैक्रों ने क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाओं में हाल के घटनाक्रमों की ओर इशारा किया, जिसमें यूरोपीय देशों का डेटा अमेरिकी कानून के हवाले है।
मैक्रों का इस तरह से यूरोपीय संघ के स्तर की बात करना भी दिखाता है कि वह अब सिर्फ फ्रांस ही नहीं, बल्कि EU को भी एकजुट करते हुए आगे बढ़ना और अमेरिका की छत्रछाया से निकालना चाहते हैं।
उन्होंने जर्मन रक्षा मंत्री Annegret Kramp-Karrenbauer पर भी हमला किया, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि यूरोपीय संघ महाद्वीप की सुरक्षा को बनाए रखने में अमेरिका भूमिका नहीं बदल सकता है।
बता दें कि मैक्रों यूरोप और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानि NATO पर भरोसा करने के बजाय अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाने और विदेश नीति को अधिक स्वतंत्र बनाने के लिए EU पर जोर दे रहे हैं।
इंटरव्यू में मैक्रों ने कहा कि नाटो पर निर्भरता ने यूरोप को जियो पॉलिटिकल स्ट्रेटजी के मुद्दे पर अंधा कर दिया है। उन्होंने पिछले वर्ष भी कुछ इसी प्रकार का बयान दिया था जिससे पूरे यूरोपीय देश सकते में आ गए थे।
जिस तरह से जर्मनी EU से अपनी जमीन खो रहा है वैसे ही फ्रांस एक सशक्त नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर रहा है। ये कहना गलत नहीं होगा कि पिछले कुछ समय में मैक्रों ने बिना कोई शोर मचाए अब यूरोप की कमान अनाधिकारिक रूप से अपने हाथों में ले ली है। पहले तो उन्होंने रूस के साथ अपने संबंध मजबूत किए जिससे पूर्वी यूरोप के देशों में फ्रांस की विश्वशनीयता बढ़ी। उसके बाद उन्होंने ग्रीस के साथ तुर्की के तनाव में भी ग्रीस का खुल कर साथ दिया।
यही नहीं जब इस्लामिस्ट कट्टरवादियों ने एक शिक्षक की हत्या की तब से वे खुलकर इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ आग उगल रहे हैं। तुर्की और पाकिस्तान के नेताओं ने फ्रांस को बॉयकॉट करने का भी ऐलान किया लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ और मैक्रों ने देश में कट्टरवाद का विरोध जारी रखा। अब अमेरिकी चुनावों में जो बाइडन की जीत के बाद मैक्रों का इस तरह से खुलकर अमेरिका पर भरोसा न करना और EU को स्वयंभू बनाने की बात करना उनके भविष्य के इरादों को स्पष्ट करता है। जब मैक्रों यह कहते हैं कि EU को आत्मनिर्भर बनना होगा तो उनका स्पष्ट मतलब जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका पर भरोसा न करने का ऐलान करना है। यही नहीं वे पहले से ही चीन के खिलाफ रहे हैं।
ऐसे में देखा जाए तो जर्मनी के सभी मामलों पर ढुलमुल रवैये को नकारते हुए वे EU के भी नेता बन चुके हैं और उनकी सक्रियता से पूरे यूरोप के देश उन्हें उम्मीद की निगाहों से देखने लगे हैं। पूरे यूरोपियन यूनियन में अकेला फ्रांस ही है, जो चीन का खुलकर सामना कर रहा है। मैक्रों के पास EU में अपने प्रभाव को और बढ़ाते हुए जर्मनी को हटाते हुए फ्रांस को नेता बनाने का बढ़िया मौका है। उनके नेतृत्व में न सिर्फ EU अमेरिका की छत्रछाया से निकलेगा बल्कि आत्मनिर्भर भी बनेगा।