बिहार विधानसभा चुनावों के मतदान के बाद सभी एग्जिट पोल्स में एनडीए गठबंधन को पीछे दिखाते हुए आरजेडी नेता को बिहार का अगला सीएम बताया जा रहा है। वहीं, दिल्ली विश्व विद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग से जुड़े विकासशील राज्य अनुसंधान ने अपने एक सर्वे के आधार पर बताया है कि बिहार के इन चुनावों में भाजपा-जेडीयू गठबंधन को 45 प्रतिशत वोटों के साथ करीब 129 सीटें मिलेंगी, जो कि बहुमत के आंकड़े से करीब 7 सीटें ज्यादा हैं। वहीं, इस सर्वे में तेजस्वी यादव को 35 प्रतिशत वोटों के साथ करीब 106 सीटें मिलने की संभावनाएं जताई गई हैं।
2019 के आम चुनावों में एनडीए गठबंधन को 40 में से 39 सीटें मिली थीं। उस दौरान एनडीए में बीजेपी के साथ जेडीयू और एलजेपी भी थे। इसमें अगर लोजपा को अलग भी कर दिया जाए तो भी एनडीए के पास एक प्रचंड बहुमत था। उन चुनावों के दौरान लोग उम्मीदवारों से ज्यादा प्रधानमंत्री पर केन्द्रित होकर वोट कर रहे थे। उनका मकसद केवल बीजेपी के नेता नरेन्द्र मोदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाना था। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि वो जेडीयू को वोट दे रहे हैं या बीजेपी को।
राष्ट्रीय चुनावों से इतर विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को एनडीए का उम्मीदवार घोषित किया गया है, जो कि सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि नीतीश के साथ पिछले 15 साल की सत्ता विरोधी लहर का भार भी है। बीजेपी को उम्मीद है कि वो जिन 110 सीटों पर अपने गठबंधन में मुकेश साहनी जैसे छोटे साथियों के साथ लड़ रही है, वहां वो अच्छा प्रदर्शन करेगी। वहीं, लोजपा के कारण भी उसे फायदे की उम्मीद है। बीजेपी को लेकर एक्सिस माइ इंडिया के सर्वे में तो ये भी बताया गया है कि बीजेपी अगर अकेले ही चुनाव लड़ती तो उसे सबसे ज्यादा फायदा होता। हमने अपनी एक रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया है।
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए का कार्य काफी निम्न स्तर का था। कोरोना वायरस से निपटने में नाकाम रहने वाले सीएम की कतार में उद्धव ठाकरे के बाद देश में किसी सीएम का नाम आता है, तो वो नीतीश कुमार ही हैं। देश में लॉकडाउन के दौरान भी नीतीश का रवैया बेहद ही विवादास्पद था। एक तरफ यूपी सरकार अपने राज्य के छात्रों को कोटा से वापस लाने के लिए बसों का इंतजाम करती दिख रही थी और उन्हें उनके परिजनों के पास जाने में मदद कर रही थी, तो वहीं नीतीश अपने राज्य के बाहर पढ़ रहे छात्रों को वहीं रहने की सलाह दे रहे थे।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने नीतीश के विरोध में कई वीडियोज डाले और उन्हें काफी भला-बुरा भी कहा, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री उन्हें राज्य में वापस लाने के लिए किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठा रहे थे। इंडिया टुडे एक्सेस माई इंडिया के एग्जिट पोल के अनुसार बिहार में वापस आए प्रवासी मजदूरों ने तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार से बेहतर सीएम का दावेदार बताया है। पोल्स के मुताबिक सीएम के रूप में पहली पसंद तेजस्वी को 44 प्रतिशत लोगों ने चुना है, वहीं नीतीश को पहली बार इस रेस में काफी पीछे रखते हुए केवल 37 प्रतिशत लोगों ने ही पसंद किया है। ये आंकड़े एग्जिक्ट पोल में भी आए तो वो बीजेपी के लिए एक तगड़ा झटका होगा।
नीतीश से नाराजगी के कारण चिराग पासवान ने एनडीए गठबंधनछोड़ दिया, जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को ही हुआ है। बीजेपी के पास एक अच्छा मौका था कि वो नित्यानंद राय या चिराग पासवान को अपना सीएम उम्मीदवार घोषित करके चुनावी रण में उतरती, लेकिन उसने नीतीश कुमार को उतारा, ऐसे में ये कहा जा सकता है कि यदि एनडीए गठबंधन दोबारा सत्ता में आता भी है, जिसमें संभावित रूप से बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी, वीआईपी ही होंगे तो भी इन्हें नीतीश कुमार के नाम से दूरी बनानी चाहिए।