अमेरिकी चुनावों में कौन जीतेगा? ट्रम्प या बाइडन यह तो अभी तक तय नहीं हो पाया है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि Democrat उम्मीदवार जो बाइडन 270 के जादुई आंकड़े के बेहद नजदीक पहुंच चुके हैं। ऐसे में यह कयास लगाई जा रहे हैं कि ट्रम्प को जल्द ही White House बाइडन को सौंपना पड़ सकता है। इसी के साथ-साथ भारत और दुनियाभर में इस बात की चर्चा भी की जा रही है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की “चीन नीति” में क्या बदलाव आएगा और उसका भारत समेत पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?
इस बात में किसी को कोई शक नहीं है कि ट्रम्प प्रशासन के मुक़ाबले बाइडन प्रशासन की चाइना-पॉलिसी को बीजिंग में अधिक पसंद किया जाएगा! चीनी सरकार का मुखपत्र Global Times तो पहले ही कह चुका है कि चीन के लिए बाइडन के साथ deal करना आसान रहेगा, ना कि ट्रम्प के साथ! ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावों से पहले Joe Biden ने यह ऐलान किया था कि वे सत्ता में आने के बाद ट्रम्प द्वारा चीनी सामान पर लगाए गए tariffs को खत्म कर देंगे और चीन के साथ कोई trade war नहीं करेंगे। Biden ने यह बयान अमेरिकी पत्रकार लूलू गार्सिया को दिये एक interview में दिया था। Biden ने ट्रम्प पर यह आरोप भी लगाया था कि उनके trade war की वजह से उत्पादन क्षेत्र मंदी का शिकार हो गया और कृषि क्षेत्र को भी अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है।
स्पष्ट है कि बाइडन के चुने जाने के बाद दुनिया में चल रहे चीन-विरोधी अभियान को बड़ा झटका लगने वाला है। चीन-विरोधी अभियान का नेतृत्व करने वाले ट्रम्प के जाने के बाद अब यह बड़ी ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर आ सकती है और इसके कई कारण हैं! ट्रम्प के बाद पीएम मोदी ही दुनिया के ऐसे वैश्विक नेता हैं, जिन्होंने खुलकर चीन के खिलाफ आर्थिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं। सबसे पहले भारतीय सेना ने ही गलवान घाटी में 50 से ज़्यादा चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारकर दुनिया को यह संदेश भेजा था कि भारत-चीन की आक्रामकता को किसी कीमत पर नहीं सहने वाला! इसके साथ ही भारत ने सबसे पहले अपने यहाँ 100 से भी ज्यादा चीनी एप्स को भी प्रतिबंधित किया था। भारत के इस कदम का अमेरिका में भी अनुसरण किया गया था और ट्रम्प ने Wechat और Tiktok जैसी Apps को बैन करने का फैसला लिया था।
भारत रणनीतिक तौर पर चीन को घेरने के लिए Quad, ASEAN, रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। अगर अमेरिका का नया प्रशासन चीन के खिलाफ कड़ा रुख नहीं अपनाता है तो भारत के नेतृत्व को ही जी-तोड़ मेहनत कर इस चीन-विरोधी मुहिम को जीवित रखना होगा और प्रधानमंत्री मोदी इसके लिए तैयार भी हैं।
आज सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ASEAN, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी चीन की आक्रामकता का शिकार बन रहे हैं। इन सब देशों को भी एक मजबूत चीन-विरोधी ताकत का साथ चाहिए! अगर अमेरिका वह भूमिका निभाने में सक्षम नहीं रहता है, तो ये सब देश भारत की ओर ही उम्मीद भरी नज़रों से देखेंगे और भारत इनकी उम्मीदों पर खरा उतरने में सक्षम भी है। अमेरिकी चुनावों के नतीजों में अगर ट्रम्प को हार मिलती है, तो इसके बाद पीएम मोदी ही दुनिया में चीन विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे होंगे, जो वैश्विक राजनीति में भारत के कद को और ज्यादा बढ़ा देगा!