तारीख- 4 सितंबर, 2020- नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल नेपाल के राजदूत से मिले। इसके बाद 22 अक्टूबर, 2020- भारतीय खूफिया एजेंसी Research and Analysis Wing के अध्यक्ष सुमंत कुमार गोयल नेपाल दौरे पर गये और प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली से मिले। मिलने सिलसिला जारी रहा और 4 नवंबर, 2020- भारत के सेनाध्यक्ष जनरल MM नरवाने अपने तीन-दिवसीय दौरे पर नेपाल गये, और वहाँ नेपाल के टॉप सैन्य अफसरों के साथ-साथ Nepal के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिले।इसके बाद 26 नवंबर, 2020- भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला नेपाल के दो दिवसीय दौरे पर गये और Nepal के प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की।
ध्यान दें तो पिछले कुछ महीनों में भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल को चीन की पकड़ से आज़ाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक के बाद एक उच्च स्तरीय दौरे का कारण यही था कि कैसे भी करके भारत के सबसे अहम पड़ोसी पर से चीन के साये को दूर किया जा सके। अब नतीजा देखकर लगता है कि भारत अपनी कोशिशों में सफल भी हो रहा है।
दरअसल, हाल ही की खबरों के मुताबिक नेपाली प्रधानमंत्री ने अपने यहाँ मौजूद चीनी राजदूत हो यांकी को उसकी जगह दिखाते हुए, नेपाल की राजनीति से दूर रहने के लिए कहा है। इसी के साथ यह भी खबरें आ रही हैं कि नेपाल के प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के दो टुकड़े करने के लिए सहमत हो गए हैं और इस प्रकार वे अपनी पार्टी पर से चीन के प्रभाव को पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं।
नेपाल और भारत में इस वर्ष भीषण बॉर्डर विवाद पैदा हो गया था और माना गया था कि Nepal यह सब कुछ चीनी प्रभाव के कारण ही कर रहा है। खुद नेपाल के प्रधानमंत्री ओली भारत के खिलाफ बयानबाज़ी करने लगे थे। अयोध्या को नेपाल का शहर बताना हो, या फिर कोरोना के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराना हो, ओली ने खुलकर भारत के खिलाफ बयान दिये थे। हालांकि, अब ओली दोबारा भारत के करीब आते जा रहे हैं।
हाल ही में भारत के विदेश सचिव ने नेपाल का दौरा किया है और अभी चीन के रक्षा मंत्री भी Nepal का दौरा करने वाले हैं। ऐसे वक्त में नेपाल के पीएम ने चीन विरोधी रुख अपनाकर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब नेपाल ने अपनी गलती का अहसास कर लिया है। गलती इसलिए क्योंकि नेपाल के साथ दोस्ती की एवज में चीन ने नेपाल की ज़मीन पर ही कब्जा करना शुरू कर दिया था।
नेपाल के हुमला ज़िले में चीन ने पहले तो अतिक्रमण किया और बाद में जब Nepal की ओर से एक पर्यवेक्षण टीम इलाके का दौरा करने गयी तो चीन की ओर से उनपर आँसू गैस के गोलों से हमला कर दिया गया। इसके बाद चीनी मीडिया ने नेपाल के पर्यवेक्षकों को ही नौसिखिये बताकर अपने दावों को और मजबूत करने का प्रयास किया था। एक तरफ भारत की अति-सक्रिय कूटनीति और दूसरी तरफ चीन की चालबाजियों के कारण ही यह नतीजा निकला है कि अब Nepal दोबारा भारत का दोस्त बन गया है, और वह अब चीन की सीमाओं को तय करने में लगा है।
पहले मालदीव, फिर श्रीलंका और अब नेपाल, भारत अपनी कूटनीति के बल पर एक के बाद एक अपने पड़ोसियों को चाइना-फ्री करता जा रहा है और चीन के पास हर बार अपने हथियार डालने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। Nepal के अखाड़े में चीन के खिलाफ भारत की यह जीत फिर यह साबित करती है कि कूटनीति और सॉफ्ट पावर के मामले में चीन भारत के सामने कहीं नहीं ठहरता!