बिहार भाजपा के समीकरण अब दिन प्रतिदिन बदलने लगे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से जिस प्रकार से भाजपा ने राज्य में अपनी सक्रियता और अपना कद बढ़ाया है, उसी दिशा में आगे बढ़ते हुए भाजपा ने अब सुशील मोदी को राज्यसभा का टिकट थमाया है।
लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान की असामयिक मृत्यु से उनकी राज्यसभा सीट रिक्त पड़ चुकी थी, जिसे किसी भी स्थिति में भरा जाना था। अब भाजपा एक प्रकार से धर्मसंकट की स्थिति में थी। यदि वे लोजपा को यह सीट देती, तो बिहार में सहयोगी दल JDU उनसे नाराज हो जाती। भाजपा न JDU का साथ छोड़ना चाहती है, और न ही लोजपा का।
ऐसे में उन्होंने सुशील कुमार मोदी को राज्यसभा के लिए मनोनीत कर एक ही तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो उन्होंने दोनों दलों के साथ अपने संबंधों को यथावत रखने के लिए मार्ग प्रशस्त किया है, और दूसरा उन्होंने सुशील कुमार मोदी को बिहार की राजनीति से दूर भी रखा है। बता दें कि सुशील कुमार मोदी 2005 से 2015 और फिर 2017 से 2020 तक बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनके रहते बिहार भाजपा कभी भी राज्य में एक मजबूत पार्टी नहीं बन पाई।
लेकिन सुशील कुमार मोदी ने ऐसा क्या किया, जिसके कारण उन्हें बिहार की राजनीति से दूर रखा जा रहा है? कहने को वे एनडीए में भाजपा के प्रतिनिधि थे, लेकिन वे भाजपा से ज्यादा नीतीश कुमार के प्रति वफादार दिखाई देते थे। वे न केवल नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने देखना चाहते थे, बल्कि पीएम मोदी को नीचा दिखाना चाहते थे, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
यदि आपको इस बात पर विश्वास नहीं है, तो 2008 में कोसी नदी में उत्पन्न बाढ़ के बारे में पढ़ लीजिए। 2008 में बिहार में कोसी में उत्पन्न बाढ़ के पश्चात राहत कार्य में सहायता हेतु सीएम नरेंद्र मोदी ने गुजरात की ओर से 5 करोड़ रुपये राहत कोष में जमा कराए थे। लेकिन जैसे ही इसकी खबर अखबार में छपी, तो अल्पसंख्यक वोट बैंक छिनने के भय से नीतीश कुमार ने पूरा का पूरा पैसा वापिस कर दिया। इसके अलावा जब मोदी बिहार के दौरे पर आए, तो नीतीश कुमार ने उनसे मुलाकात तक नहीं की। इतना ही नहीं, जब नरेंद्र मोदी 2010 में एनडीए के लिए प्रचार करने बिहार आने वाले थे, तो उन्हें बिहार में आने से भी रोका गया था।
अब कहा जाता है कि इसके पीछे सुशील मोदी का हाथ रहा है, जिसके बारे में नीतीश कुमार ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इशारा किया था। पिछले एक वर्ष में बिहार की जितनी दुर्दशा हुई, उसके पीछे कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुशील कुमार मोदी भी जिम्मेदार थे।
ऐसे में जब बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा JDU से कहीं ज्यादा आगे निकली, तो वह समझ गई कि सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री बनाए रखना खतरे से खाली नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने यूपी मॉडल के तर्ज पर तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाया। अब सुशील मोदी को राज्यसभा भेजकर भाजपा ने यह सिद्ध किया है कि वह बिहार में एक सशक्त और मजबूत इकाई चाहती है जिससे बिहार का विकास बिना किसी रूकावट के हो सके, और वह ऐसे किसी व्यक्ति को बिहार में नहीं रहने देंगे जो उसके उद्देश्य में आड़े आए, फिर वे चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो।