इन दिनों बराक ओबामा भारत में सुर्खियों में बने हुए हैं, और इसका कारण है उनकी आत्मकथा ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ का पहला भाग, जहां उन्होंने भारत के बारे में अपने अनुभाव साझा करते हुए जाने-अनजाने कांग्रेस पार्टी की काफी पोल खोली है। अब अपनी पुस्तक में उन्होंने ये दावा किया है कि मनमोहन सिंह के पास अवसर था, लेकिन फिर भी उन्होंने 26/11 का प्रतिशोध नहीं लिया।
अपनी पुस्तक के एक अंश अनुसार बराक ओबामा लिखते हैं, “उन्होंने [मनमोहन] 26/11 के बाद बदला लेने के विचार पर लगाम लगाया, परन्तु ये लगाम लगाना उन्हें राजनीतिक रूप से भारी पड़ गया, और उन्होंने मुझसे इस कारणवश मुस्लिम विरोधी भावनाओं के बढ़ने से विपक्षी पार्टी [भाजपा] को मिलने वाले फायदे के बारे में अपने विचार भी साझा किए।”
परंतु बराक ओबामा वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे बताया, “उन्हें डर था कि मुस्लिम विरोधी भावनाओं के बढ़ने से हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलेगा। इस बारे में उन्होंने मुझसे कहा, “धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का नारा लगाना काफी आकर्षक हो सकता है, और ये [भाजपा जैसे] राजनीतिक पार्टियों के दुरुपयोग के लिए सबसे सही समय भी होता है।”
अब जिस व्यक्ति ने बतौर प्रधानमंत्री 2006 में ये कहा हो कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है, तो उससे आप और क्या ही उम्मीद कर सकते हैं? ओबामा के कहने का मतलब यह है कि मनमोहन सिंह ने अवसर होते हुए भी 26/11 का बदला इसलिए नहीं लिया क्योंकि अल्पसंख्यक बुरा मान जानते और उनके वोट बैंक पर खतरा आ जाता।
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब मनमोहन सिंह की कायरता की ऐसी कलई खोली गई हो। जब उरी हमले के पश्चात भारतीय सेना ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया, तो उसके पश्चात पूर्व भारतीय वायुसेना प्रमुख फली होमी मेजर ने एक सनसनीखेज खुलासे में यह बताया था कि कैसे 26/11 के हमले के बाद भी भारतीय वायुसेना ने तुरंत एक ऐसे हमले से पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब हमले देने की पेशकश की थी, परंतु काँग्रेस सरकार ने इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया था।
बराक ओबामा ने चाहे जिस उद्देश्य से ये बातें अपने पुस्तक में लिखी हो, लेकिन इस बात से कतई नहीं इनकार किया जा सकता कि मनमोहन सिंह के शासन में भारत का स्वाभिमान तार-तार हो चुका था। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के नाम पर असल आतंकियों को जाने दिया जा रहा था और जिनका आतंक से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था, उन्हें हिन्दू आतंकवाद के नाम पर फँसाया जा रहा था।
मनमोहन सिंह को यूं ही भारत का प्रधानमंत्री नहीं चुना गया था। बराक ओबामा ने इसके बारे में लिखते हुए बताया, “मनमोहन सिंह सोनिया गांधी की कृपया से प्रधानमंत्री बने थे, क्योंकि अनेक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि वे अपनी लोकप्रियता के आधार पर नहीं, परंतु इसलिए प्रधानमंत्री बनाए गए थे क्योंकि वे वृद्ध भी थे, और उनका कोई जनाधार नहीं था, और ऐसे में वे कभी भी सोनिया गांधी के बेटे राहुल के लिए खतरा नहीं बन पाते, जिन्हें वह काँग्रेस संभालने के लिए ग्रूम कर रही थी।”
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मनमोहन सिंह ने अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के चक्कर में राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को हमेशा ताक पर रखा, और जिस प्रकार से बराक ओबामा ने जाने-अनजाने उनकी कायरता की कलई खोली है, उससे अब काँग्रेस की बची-कुची छवि को भी तगड़ा नुकसान पहुँचने वाला है।