दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने कोरियाई प्रायद्वीप में जो बाइडन से ट्रंप की विदेश नीति ही अपनाने को कहा है। यह बात सभी को पता है कि कैसे ट्रंप ने उत्तर कोरिया के साथ बातचीत कर उस क्षेत्र में शांति लाने का प्रयास किया था। उनके बातचीत से ना सिर्फ उत्तर कोरिया के बढ़ते कदम को रोका गया था बल्कि उसकी चीन से नजदीकी भी कम हुई थी। अब सियोल अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद भी इसे जारी रखना चाहता है। South China Morning Post की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति Moon Jae-in ने एक मीटिंग में कहा अगले राष्ट्रपति जो बाइडन भी, उत्तर कोरिया के खिलाफ ट्रंप की परमाणु निरस्त्रीकरण नीतियों का-पालन करे, जिससे कोरिया प्रायद्वीप में किसी प्रकार का वैक्यूम ना बने।
उन्होंने कहा कि, “मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो अनमोल उपलब्धियां ट्रम्प प्रशासन के तहत मिली हैं उसे अगली सरकार के साथ मिलकर आगे बढ़ायें।”
इसके दो ही कारण हो सकते है, पहला उत्तर कोरिया के परमाणु प्रसार को रोका जाना और दूसरा उसे एक बार फिर से चीन के नजदीक जाने से रोका जा सके। दक्षिण कोरिया का यह बयान बाइडन के उत्तर कोरिया को लेकर हालिया बयानों को देखते हुए आया है।
कुछ ही दिनों पहले जो बाइडन ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन को “ठग” कह कर संबोधित किया था। यही नहीं बाइडन ने ट्रंप की उत्तर कोरिया को लेकर नीतियों की आलोचना भी की थी और यह कहा था कि वह कभी भी किम जोंग से बिना पूर्व शर्त के मिलते ही नहीं। बाइडन ने ट्रम्प पर उत्तर कोरिया के नेता को “गले लगाने” का आरोप लगाया था।
पिछले महीने अंतिम राष्ट्रपति पद की डिबेट में, डेमोक्रेट ने किम से दोस्ती करने के लिए ट्रम्प की निंदा की और उनकी तुलना एडॉल्फ हिटलर से की। बाइडन ने कहा था कि किम जोंग उन से बातचीत बिलकुल उसी प्रकार है जैसे यूरोप पर आक्रमण करने से पहले हिटलर के साथ हमारे अच्छे संबंध थे।”
इसके बाद उत्तर कोरिया भी भड़क गया था और वहां की Korean Central News Agency ने बाइडन की तुलना एक पागल कुत्ते से कर दी थी। अब सभी विषेशज्ञ इन दोनों देशों के बीच रिश्ते बिगड़ने की संभावना जता रहे हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर रिश्ते बिगड़ते है तो उत्तर कोरिया सबसे पहले दक्षिण कोरिया को ही निशाना बनाएगा।
हैडॉन्ग ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर पार्क वोन-गॉन का कहना है कि बिडेन की जीत ने प्योंगयांग की स्थिति को और जटिल बना दिया है। ओबामा प्रशासन में बाइडन को उप राष्ट्रपति के तौर पर उस भूमिका के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जिसने उत्तर कोरिया के लिए “रणनीतिक धैर्य” की नीति को अपनाया था। उस दौरान अमेरिका ने प्योंगयांग के साथ बातचीत से तब तक इनकार किया था जब तक कि उत्तर कोरिया खुद परमाणु या ICBMs के मामले पर झुके नहीं, या वहां की सत्तावादी सरकार गिर ना जाए।
उत्तर कोरिया ने ओबामा के पहले कार्यकाल में पहले चार महीने के अंदर ही एक परमाणु परीक्षण कर दिया था जिससे कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव अपने चरम पर पहुंच गया था।
अब इस बार बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद फिर से उत्तर कोरिया आक्रामक रुख अपना सकता है जिसका सबसे पहला टारगेट उसका प्रतिद्वंदी दक्षिण कोरिया होगा। प्रोफेसर पार्क वोन-गॉन का कहना है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति का ध्यान खींचने की कोशिश करने के लिए प्योंगयांग निचले स्तर की कार्रवाई का सहारा ले सकता है। उन्होंने कहा कि, “बड़ी संभावना है कि प्योंगयांग दक्षिण कोरिया को निशाना बनाएगा। उस पता है कि कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव पैदा कर वह सुरक्षित रहेगा।”
इसके अलावा अमेरिका से संबंध खराब होने के बाद उत्तर कोरिया सबसे पहले चीन की गोद में जा बैठेगा। ऐसा पहले भी देखा गया है कि उसे चीन से सभी प्रकार की मदद मिलती है चाहे वो अर्थव्यवस्था को चालू रखना हो या रणनीतिक रूप से दक्षिण कोरिया पर दबाव बनाना हो।
इन्हीं कारणों को देखते हुए दक्षिण कोरिया ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति से डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति को लागू रखने की बात कही है। अगर बाइडन ने ट्रंप की उत्तर कोरिया पर नीतियों को नहीं अपनाया, तो यह ना सिर्फ कोरिया प्रायद्वीप के लिए बल्कि विश्व शांति के लिए एक बड़ा डिजास्टर साबित होगा।