कहते हैं कि जब मति भ्रष्ट हो तो एक के बाद एक गलतियां करते हैं। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की हालत भी कुछ ऐसी है। बिहार चुनाव में महागठबंधन की हार की घोषित जिम्मेदार कांग्रेस अब जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के गुपकार समझौते में शामिल हो गई है। इन अलगाववादी दलों के नेताओं का देश विरोधी एजेंडा किसी से छिपा नहीं है, ऐसे में इनके साथ अलगाववाद की मुहिम में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने का ये फैसला कांग्रेस के लिए उसकी ताबूत में अंतिम कील साबित होगी।
कांग्रेस का गुपकार प्रेम
जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव होने वाले हैं ऐसे में अनेकों न-नुकर करने के बाद गुपकार गठबंधन की पार्टियों ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि इन पार्टियों का कांग्रेस ने भी समर्थन किया है, और अलगाववाद के इस गठबंधन में शामिल होकर ही वो भी चुनाव लड़ेगी। एक राष्ट्रीय पार्टी का अलगाववादी नेताओं के साथ प्रेम, देश और जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक भविष्य के लिए एक चिंताजनक बात है और ये आगे चलकर साबित करेगा कि कांग्रेस दोगलेपन की पराकाष्ठा को पार कर चुकी है l
अलगाववादी है गुपकार गठबंधन
कांग्रेस ने जिस गुपकार गठबंधन में शामिल होने का फैसला किया है उसकी हकीकत किसी को भी हैरान कर सकती है कि देश की राष्ट्रीय पार्टी ऐसा कदम केवल सत्ता के लिए कैसे उठा सकती है। गुपकार का मुख्य एजेंडा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35-A बहाली है। ये लोग तब तक भारतीय झंडे को हाथ नहीं लगाने की बात करते हैं जब तक अनुच्छेद -370 बहाल नहीं हो जाता।
इस गठबंधन में जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टी नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी समेत कई क्षेत्रीय अलगाववादी पार्टियां हैं, जिसमें उमर अब्दुल्ला, फारुक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन आदि शामिल हैं। इन नेताओं का कहना है कि वो इस बहाली के लिए चीन से भी मदद लेने को खुशी-खुशी तैयार हैं। वहीं, ये लोग कश्मीरी युवकों को नौकरी के अभाव में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भड़काते हैं जो कि इनके देश विरोधी एजेंडे को दर्शाता है।
कांग्रेस के लिए मुसीबत
जो नेता अपने देश के मुद्दों के लिए दुश्मन देशों से मदद मांगते हो वो देशद्रोही ही कहलाएंगे, और इनके साथ कांग्रेस का गठबंधन उसकी प्रकृति को दर्शाता है कि असल में वो कितने निचले स्तर तक जा चुकी है। राजनीतिक जमीन के लिए देशद्रोही नेताओं के साथ जाकर, उनकी पंक्ति में खड़ी हो गई है जिससे उस पर भी लोगों ने देश द्रोही होने का ठप्पा लगाना शुरू कर दिया है।
हाल हीं में कांग्रेस को बिहार चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है। केवल हार ही नहीं… बिहार में कांग्रेस के कारण ही महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव के सीएम बनने की संभावनाएं खत्म हुई हैं जिसके चलते अब बाकी पार्टियां भी कांग्रेस से सतर्क हो गई हैं। चुनाव नतीजों को चार दिन नहीं हुए कि कांग्रेस को उसके ही गठबंधन के साथियों ने दबे मुंह लताड़ना भी शुरू कर दिया है। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी का बयान इसकी परिणति है जिन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान राहुल प्रियंका के घर पिकनिक मना रहे थे। ये बयान बताता है कि कांग्रेस से अब उसके सहयोगी भी पीछा छुटाएंगे।
यूपी के 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सत्ता में वापसी करने के इरादे रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अरमानों पर जब कांग्रेस की वजह से पानी फिरा तो उन्होंने भी साफ कर दिया है कि वो भविष्य में किसी भी चुनाव में देश की बड़ी राजनीतिक पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन अखिलेश का इशारा उसी तरफ था।
यहीं नहीं कांग्रेस के अपने लोग भी अब ये कहने लगे हैं कि कांग्रेस की वर्किंग कमेटी को ठोस कदम उठाने होंगे। कई लोगों ने तो एक बार फिर कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए राहुल गांधी को आगे किया है जबकि वरिष्ठ नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल का कांग्रेस की कार्यप्रणाली से मोह भंग हो रहा है और वो जमकर पार्टी की आलोचना करने लगे हैं। 23 नेताओं ने बगावत भी की थी।
जब राजनीतिक रूप से कांग्रेस को केवल असफलता ही मिल रही है, और उसके साथी उसका हाथ झटक रहे हैं तो उसका जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी पार्टियों के साथ गुपकार गठबंधन में शामिल होना एक आत्महत्या के बराबर ही है। विश्लेषकों ने तो कह दिया है कि कांग्रेस का ये फैसला न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश में उस पर भारी पड़ेगा और संकट में पड़े कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य के लिए ये ताबूत में आखिरी कील का काम करेगा।