इन दिनों महाराष्ट्र में अन्याय और निरंकुशता ने अपनी पराकाष्ठा पार कर दी है। कहीं केवल व्हाट्सएप पर कार्टून फॉरवर्ड करने के लिए सत्ताधारी पार्टी के गुंडे पीट देते हैं, तो कहीं अलग विचार रखने भर के लिए लोगों को जेल में ठूंस दिया जाता है, जैसे अभी हाल ही में अर्नब गोस्वामी और ट्विटर यूज़र समीत ठक्कर के साथ किया गया। लेकिन इससे भी ज्यादा अजीबो-गरीब बात राष्ट्रवादी मीडिया का मौन है, जो निरंकुशता के विरुद्ध अंत तक साथ चलने के दावे करती थी।
उदाहरण के लिए इंडिया टीवी के रजत शर्मा को ही देख लीजिए। उन्होंने अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी की निन्दा अवश्य की, परंतु उसमें भी उन्होंने कहा कि “मैं इनकी पत्रकारिता की शैली से सहमत नहीं”। इसके बाद कई ऐसे ट्वीट उन्होंने किये, जिससे लगा कि वे उद्धव सरकार की आलोचना कम और उनसे अर्नब के लिए रहम की याचना कर रहे हैं। परंतु महोदय की पोल तब खुल गई, जब उन्होंने एक अजीबो-गरीब ट्वीट किया, “उसने मीडिया का उपहास उड़ाया, कैमरा पर झूठ बोला, तमीज़ तक नहीं थी, झूठी लोकप्रियता के ढोल पीटे, और अब चाहता है कि सुप्रीम कोर्ट उसकी रक्षा करे और मीडिया उसका समर्थन करे। अजीब गुंडा है! हार मानो और निकल जाओ ट्रम्प महोदय”।
लेकिन जिस लहजे में उन्होंने यह ट्वीट किया, उससे स्पष्ट हो गया कि उनका निशाना ट्रम्प तो नहीं थे, और लोगों ने ट्रम्प के बहाने उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से अर्नब गोस्वामी की आलोचना करने के लिए बहुत खरी-खोटी सुनाई। ऐसा क्या कारण है कि ‘राष्ट्रवादी’ या गैर वामपंथी चैनल, जैसे इंडिया टीवी, एबीपी न्यूज, टाइम्स नाउ इत्यादि खुलकर अर्नब गोस्वामी का समर्थन नहीं कर रहे हैं?
एक कारण हो सकता है औद्योगिक प्रतिस्पर्धा। रजत शर्मा इंडिया टीवी के अध्यक्ष होने के साथ-साथ न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, जिसकी स्थापना 2008 में की गई थी, ताकि टीवी न्यूज उद्योग का प्रतिनिधित्व किया जा सके।
लेकिन अर्नब गोस्वामी को इस एसोसिएशन से काफी समस्या थी, जिसके कारण उन्होंने टीवी9 भारतवर्ष और 45 अन्य चैनलों के साथ मिलकर न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन की स्थापना की, जिसमें कई क्षेत्रीय चैनलों को भी जगह दी गई थी, और ये सुविधा उन्हें NBA के साथ प्राप्त नहीं थी।
पिछले कुछ वर्षों में रिपब्लिक ग्रुप के सभी चैनल ने NBA के अंतर्गत आने वाले सभी चैनलों से उनकी राष्ट्रवादी जनता छीन ली थी। रिपब्लिक भारत और टीवी9 भारतवर्ष जैसे चैनल हिन्दी न्यूज चैनल में सदैव टॉप 3 में रहते हैं, और अंग्रेजी चैनलों में रिपब्लिक टीवी ने सर्वाधिक टीआरपी भी बटोरी है। इसीलिए जब टीआरपी की कथित धांधली की महाराष्ट्र पुलिस ने जांच पड़ताल करने का निर्णय लिया, तो NBA को मानो अर्नब गोस्वामी को नीच दिखाने और उन्हे घेरने का सुनहरा अवसर मिल गया।
लेकिन अब अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के बाद उनका समर्थन करने में हिचकिचाहट दिखाना इसी पेशेवर जलन को जगजाहिर करता है, क्योंकि अर्नब ने न केवल उनकी हेकड़ी को चुनौती दी, बल्कि उनकी ऑडियंस भी उनसे छीन ली थी।
लेकिन इन चैनलों को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि प्रतिस्पर्धा के कारण आज जो ये अर्नब गोस्वामी का समर्थन करने से मुंह मोड रहे हैं, कल को उन्हीं पर भारी पड़ सकता है। आज महाराष्ट्र सरकार रिपब्लिक के पीछे पड़ी है, लेकिन कल को यह किसी भी अन्य चैनल के रिपोर्टर के साथ हो सकता है, क्योंकि एक बार आपने एक गलत रीति को बढ़ावा दिया, तो वो काफी समय तक आपका पीछा नहीं छोड़ेगी।