वैश्विक राजनीति में आज सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राष्ट्रपति ट्रम्प दोबारा White House में अपनी जगह पक्की कर पाएंगे? अमेरिकी चुनाव अभी कोर्ट में लड़ा जा रहा है और इस कानूनी लड़ाई के बाद ही यह तय हो सकेगा कि अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर किसे चुना जाएगा! लेकिन कानूनी लड़ाई से इतर ट्रम्प अपनी दूसरी पारी की शुरुआत पहले ही कर चुके हैं। उदाहरण के लिए जिस प्रकार ट्रम्प ने पिछले कुछ दिनों में आक्रामक विदेश नीति अपनाई है, उससे स्पष्ट हो गया है कि अमेरिकी चुनावों के नतीजे आने से पहले ही ट्रम्प 2.0 का नज़ारा देखने को मिल रहा है, जो कि चीन जैसे देशों के लिए बिलकुल भी अच्छी खबर नहीं है।
उदाहरण के लिए घर में चुनावी लड़ाई के दौरान ही ट्रम्प अपनी विदेश नीति और सुरक्षा नीति को नयी गति प्रदान कर चुके हैं। ट्रम्प ने एक तरफ जहां अपने पूर्व रक्षा मंत्री Mark Esper को उनके पद से हटाकर Pentagon में बड़े पैमाने पर बदलाव किए हैं, तो इसके साथ ही ट्रम्प के विदेश मंत्री Mike Pompeo पहले ही 7 देशों के अपने दौरे के अंतिम पड़ाव में पहुँच चुके हैं। साफ़ है कि ट्रम्प अपनी विदेश नीति के Accelerator पर पैर रख चुके हैं, और वे जल्द से जल्द अपने प्रशासन की नीतियों को धरातल पर लागू करने की कोशिशें तेज कर चुके हैं।
उदाहरण के लिए ट्रम्प प्रशासन ने नवंबर महीने में ही वेस्ट एशिया की शांति को बनाए रखने और Abraham Accords के तहत किए गए अपने वादों को पूरा करने के लिए UAE को F-35 विमानों को बेचने की मंजूरी दे दी है। ऐसा करके ट्रम्प प्रशासन अब इस मुद्दे पर बाइडन के हाथ बांधने का काम कर चुका है। इसके साथ ही ट्रम्प प्रशासन अपने चीन विरोधी कदमों को और तेज कर चुका है। ट्रम्प प्रशासन ने हाल ही में यह फैसला लिया है कि वह चार और चीनी कंपनियों को Pentagon की black list में डालेगा। ताइवान के मुद्दे पर भी ट्रम्प प्रशासन तेजी दिखा रहा है और हालिया खबरों के मुताबिक अमेरिका ताइवान के साथ अपने आर्थिक रिश्तों को और मजबूत कर सकता है। इसके साथ ही ट्रम्प प्रशासन पहले ही ताइवान को हथियारों की सप्लाई के लिए मंजूरी दे चुका है। यानि ताइवान मुद्दे पर भी अमेरिका अपनी विदेश नीति को fast track कर चुका है।
यही अमेरिका तिब्बत मुद्दे को लेकर भी कर रहा है। इसी महीने White House में पहली बार तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति Lobsong Sangay को निमंत्रित किया गया है, और इसके साथ ही अब USA ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मानने से ही मना कर दिया है। अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेन्ट ने अपनी एक रिपोर्ट में यह साफ़ किया है कि तिब्बत पर चीन ने अवैध रूप से सैन्य कब्जा जमाया हुआ है और तिब्बत पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में अब तिब्बत को आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा ना मानकर अमेरिका ने तिब्बत मुद्दे को सदैव के लिए जीवित कर दिया है। यह एक ऐसा काँटा है जो दशकों तक चीन को चुभता रहेगा।
ट्रम्प नहीं चाहते कि जो काम उन्होंने अपने चार सालों में शुरू किए हैं, वो बिना अंजाम तक पहुंचे ही ठंडे बस्ते में डाल दिये जाएँ। इसके लिए ट्रम्प अब एक नए विज़न और नई गति के साथ ट्रम्प 2.0 के तहत अपनी नीतियों को fast track करते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में अगर ट्रम्प दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं भी बन पाते हैं तो बाइडन के लिए उनकी नीतियों को पलट पाना बेहद मुश्किल या कहिए असंभव हो जाएगा!