अमेरिकी चुनाव के बाद अब व्हाइट हाउस में जो बाइडन की एंट्री होने वाली है और वैश्विक स्तर पर अमेरिका की विदेश नीतियों में बदलाव की चर्चा शुरू हो गयी है। जब अमेरिका की विदेश नीतियों का सवाल आता है तब अमेरिका और रूस का रिश्ता सबसे ऊपर रहता है। ऐतिहासिक रूप से अमेरिका रूस को सबसे बड़ा दुश्मन मानता आया था और अमेरिका में डेमोक्रेट्स आज भी यही मानते हैं। हालांकि, चीन के उभरने और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका का ध्यान चीन की ओर केन्द्रित हुआ था। लेकिन अब डेमोक्रेट्स के उम्मीदवार जो बाइडन चुनाव जीत चुके हैं और कई विशेषज्ञ यह कयास लगा रहे हैं कि बाइडन एक बार फिर से अमेरिका की विदेश नीति चीन से रूस के ऊपर केन्द्रित कर सकते हैं।
बाइडन के आने से सम्भावना जताई जा रही है कि वह रूस के खिलाफ एक बार फिर से मोर्चा खोल देंगे, क्योंकि डेमोक्रेट्स हमेशा ही रूस के खिलाफ रहे हैं, लेकिन इस बार परिदृश्य अलग है क्योंकि इस बार सबसे बड़ा दुश्मन चीन है। बाइडन का रूस के साथ दुश्मनी न बढ़ा कर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के कई कारण है।
पहले तो यह कि बाइडन एक ऐसे राष्ट्रपति होंगे जिन पर रूसी मदद लेकर चुनाव जीतने का संदेह नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप पर रूस की मदद से चुनाव जीतने के आरोप लगते रहे हैं यही कारण था कि वह रूस के साथ प्रत्यक्ष रूप से दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ा सके। अगर वह रूस के साथ भी भारत या जापान जैसे संबंध स्थापित करने की कोशिश करते तो अमेरिकी लिबरल मीडिया उन्हें रूसी ऐसेट कह कर बदनाम कर देती। दूसरा कारण यह है कि जो बाइडन यह जानते हैं कि किसी देश के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के ऊपर चर्चा के लिए एक सामान्य प्रक्रिया को कैसे व्यवस्थित किया जाता है। लोगों का मानना है कि वह अमेरिका और रूस संबंध को और खराब न होने देने के लिए उसे बहाल करने में सक्षम हो सकते हैं।
फ़ॉरेन पॉलिसी के अनुसार आज का माहौल ऐसा है कि राष्ट्रपति बाइडन रूस पर शायद ही ध्यान दे पाये क्योंकि आज सबसे बड़ी चुनौती चीन है और सभी देश चीन की आक्रामकता के खिलाफ एक साथ खड़े हुए हैं। यही नहीं राष्ट्रपति बनने के बाद वे और उनके वरिष्ठ सलाहकार घरेलू मुद्दों से भी घिरे होंगे जिस पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
हालांकि, यह तय है कि वे रूस को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं करेंगे और यह इस बात पर निर्भर करता है कि विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसे बनाया जाता है तथा रूस पर काम करने वाले नौकरशाह कौन है?
ट्रम्प रूस को लेकर व्यावहारिक थे, लेकिन उनकी रूस समर्थक छवि और 2016 में रूसी हस्तक्षेप के आरोपों ने उन्हें खुलेआम रूस के साथ नहीं आने दिया । रूस पर उन्हें क्रिमिया घटना के कारण प्रतिबंध भी लगाने पड़े। हालांकि उन्होंने जी7में रूस को आमंत्रित कर चीन के खिलाफ दोस्ती ठीक करने के संकेत भी दिये थे परंतु अन्य नेताओं के कारण उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे।
दूसरी ओर, बाइडन के पास ऐसा कोई आरोप नहीं है। यदि वह पुतिन के साथ शांति प्रस्ताव की पहल करते हैं, तो कोई भी उसके इरादे पर संदेह नहीं करेगा। जब ओबामा ने रूस के साथ बेहतर संबंध की मांग की थी, तो बाइडन ने स्पष्ट रूप से अपने नेता के इस कदम का समर्थन किया था। उप राष्ट्रपति के रूप में स्वयं बाइडन ने रूस के साथ सम्बन्धों का RESET बटन दबाने की बात कही थी।
बाइडन के प्रशासन में कई ऐसे अधिकारी होंगे जो रूस के साथ सामान्य रिश्ते चाहते हैं। अगर यह मान लिया जाये कि ऐसा होता है और अमेरिका बाइडन के नेतृत्व में रूस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ता है तब वैसी स्थिति में रूस से बात करने के लिए स्वयं बाइडन से बेहतर कोई नहीं है। यह कहना गलत नहीं होगा कि बाइडन यह ऐलान करते हुए कह सकते है कि,“मैं जानता हूं कि रूस दुश्मन है, लेकिन विश्व शांति और सभी के लिए, मैं रूस के साथ दोस्ती कर रहा हूं।”
लिबरल नेताओं की यही खासियत होती है कि वह लोगों को अपने पक्ष में करने और अपनी छवि को बड़ा दिखाने के लिए किसी को भी अपना शत्रु कह देते हैं और फिर भी उसके साथ शांति बनाने की कोशिश करने के लिए बातचीत करते है।
बाइडन के पास पहले से ही डेमोक्रेट्स का साथ है और रूस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाकर चीन के खिलाफ कुछ एक्शन लेने से, जो अमेरिकी उनके खिलाफ हैं वो भी उनके साथ आ जाएंगे। यह किसी से छुपा नहीं है कि अमेरिकी चाहे वो डेमोक्रेट हो या रिपब्लिकन चीन के मुद्दे पर एक ही है। ऐसे में बाइडन लोकप्रियता की खातिर और एक बड़े नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए रूस के साथ दोस्ती से पीछे नहीं हटेंगे।