अगर घर में कोई चीज कबाड़ बन गई हो तो उसे ये कहकर नहीं रखा जा सकता कि वो पुरखों ने बनाई थी और अब याद के तौर पर उस कबाड़ को भी अपने साथ रखा जाए। देश में कुछ महत्वपूर्ण इमारतों को लेकर भी ऐसी ही स्थिति है। आईआईएम अहमदाबाद के लुईस काह्न प्लाजा का हाल भी कुछ ऐसा ही है जिसकी हालत अब खस्ता हो चुकी है। ऐसे में उसे तोड़कर नया रूप देना आवश्यक है लेकिन कुछ लोग इस मामले पर एतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के नाम पर नौटंकी करने लगते हैं जिसका आधार बेबुनियाद और समझ से परे है।
अहमदाबाद के प्रबंधन संस्थान आईआईएम में 18 इमारतों को लुईस काह्न द्वारा डिज़ाइन किया गया था, जिन्हें अब एक विरासत की मान्यता भी दी गई है, लेकिन अब इनकी जर्जर स्थिति को देखते हुए इन्हें सुधारने का की बात कही गई है और सारा विवाद यहीं से शुरू होता है। वर्ष 2001 के भूकंप के झटकों के बाद इन इमारतों को काफ़ी नुकसान हुआ था। अब वहाँ सरकार नई इमारत बनाने का प्रस्ताव लेकर आई है, जिसे नए हॉस्टल परिसर में बदला जाएगा और नए परिसर में मौजूदा 500 की बजाय 800 की संख्या में छात्रों के रहने की सुविधा हो सकेगी।
हालांकि, इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध देखने को मिल रहा है। इस मामले में पूर्व छात्र भी पुनर्निर्माण का विरोध कर रहे हैं। दूसरी ओर इमारत को गिराने के फैसले को सही ठहराते हुए, IIM-A के निदेशक प्रो एरोल डिसूजा ने बुधवार को संस्थान के पूर्व छात्रों को 11 पन्नों का एक पत्र लिखा, जिसमें मौजूदा ढाँचे में कई समस्याओं का हवाला दिया गया, कि ये खतरनाक है और कभी भी ढहने से जान-माल का नुकसान भी हो सकता है। वहीं आर्किटेक्ट भी इस बात पर सहमत हैं कि ये इमारत अब खतरनाक है। इसके बावजूद एक खास वर्ग “विरासत और धरोहर” को बचाने की आड़ में इस विकास के कार्य में अवरोध पैदा करने पर उतारू हो गया है।
सेंट्रल विस्टा के पुनर्निर्माण के मुद्दे पर भी कुछ लोगों का इसी प्रकार विरोध देखने को मिला था। बता दें कि इस प्रोजेक्ट के तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक चार स्क्वायर किलोमीटर क्षेत्र में कई ऐतिहासिक इमारतों का पुनर्निर्माण और पुनर्विकास किया जाएगा। इसमें मौजूदा संसद के बगल में नया संसद भवन और प्रधानमंत्री के लिए नया आवास बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है। सर्वज्ञात है कि हमारी संसद के परिसर की स्थिति जर्जर हो चुकी है। आने वाले समय में परिसीमन के बाद सांसदों की संख्या बढ़नी ही है। ऐसे में अब एक नई संसद की आवश्यकता होगी। इसलिए सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नई संसद और राष्ट्रपति, पीएम के आवास निर्माण के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी गई।
इसके बावजूद इस मुद्दे पर भी विरोध की नौटंकी शुरू हो गई जिसमें कहा गया कि संसद अंग्रेजों द्वारा बनी है, पुरानी धरोहर है। लोगों का तर्क है कि संसद कि आवश्यकता नहीं है जो कि असल में संकीर्ण सोच को दिखाता है।
विरासत और पुरातन संस्कृति का हवाला देकर ये लोग भारत की गुलामी की यादों को ज़िंदा रखना चाहते हैं जो कि बेहद आपत्तिजनक है। इसलिए जरूरत के अनुसार पुनर्निर्माण कार्य अवश्य होने चाहिए।