चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साम्राज्यवादी मंसूबों की पोल एक बार फिर सबके सामने खुल चुकी है, हाल ही में प्रकाशित डेली मेल की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दस्तावेज़ों के लीक होने से पता चल है कि कैसे पिछले कुछ वर्षों में लगभग 20 लाख चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने प्रख्यात डिफेंस फर्म, कॉनसुलेट, टेक फर्म, ऑटोमोबाइल कंपनी, बैंक इत्यादि में सेंध लगाई है।
चीन के ये नापाक इरादे तब सामने आए जब हाल ही में 2016 से संबंधित एक अहम डेटाबेस लीक हुआ, जिसका Inter-Parliamentary Alliance on China (IPAC) ने अध्ययन भी किया। पता चला है कि इस डेटाबेस के अनुसार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कर्मचारियों ने दुनिया के सभी कद्दावर देशों के विभिन्न कंपनियों और उद्यमों में सेंध लगा रखी है, चाहे वो ऑस्ट्रेलिया हो, अमेरिका हो, यूके हो, जर्मनी हो या फिर नीदरलैंड्स ही क्यों न हो। एयरबस हो, फ़ोक्सवैगेन हो, जागुआर हो, रोल्स रॉय्स, एचएसबीसी, स्टैन्डर्ड चार्टर्ड हो या फिर कोई भी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी ही क्यों न हो, आप बस सोचते जाइए और चीनियों ने उन सभी कंपनियों में सेंध लगाई है।
पर बात यहीं तक सीमित नहीं रहती। इस लीक से ये भी पता चलता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ऑस्ट्रेलियाई, ब्रिटिश और अमेरिकी दूतावासों तक में सेंध लगा रखी है। स्काई न्यूज की होस्ट शेरी मार्कसन की रिपोर्ट के अनुसार कई पाश्चात्य कंपनियों में CCP ने अपनी शाखाएँ फैलाई हुई है। ये न केवल CCP के कहे अनुसार काम करते हैं, बल्कि ये केवल शी जिनपिंग के प्रति जवाबदेह हैं।
अब भले ही ये 20 लाख कार्यकर्ता एक साथ चीन के लिए जासूसी न कर रहे हों, लेकिन चीन की यह लोग खुशामद भी न करे और चीन का प्रभाव इन कंपनियों पर न पड़े, ऐसा भला हो सकता है क्या? अब जरा सोचिए, इस लीक हुए डेटाबेस से पता चलता है कि दुनिया भर के बड़े बड़े कंपनियों की सुरक्षा को भेदने में चीन किस हद तक सक्षम है। वैश्विक कंपनियों को अब अपनी सुरक्षा के लिए और पुख्ता इंतजाम करने पड़ेंगे, ताकि चीन का प्रभाव कम से कम हो।
चाहे मल्टीनेशनल कंपनी हो, दूतावास हो या फिर राजनीतिक प्रणाली, ये CCP के कार्यकर्ता हर जगह सेंध लगा चुके हैं। लेकिन कुछ देश तब भी ऐसे थे जो इन सब को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहे थे, ताकि चीन से आर्थिक संबंधों को कोई नुकसान न पहुंचे, और चीन को यूं ही सारी सहूलियतें मिलती जाए। बात तो यहाँ तक आ चुकी है कि कई ग्लोबल मीडिया फर्म भी अब चीन के इशारे पर चलते हैं, और डेटा एवं बौद्धिक संपत्ति की दिन दहाड़े लूट पर भी जानबूझकर आँखें मूँद लेते हैं।
ऐसे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 20 लाख कार्यकर्ताओं द्वारा दुनियाभर के बड़े बड़े उद्यमों में सेंध लगाना इस बात को स्पष्ट करता है कि किस प्रकार से बीजिंग अपनी साम्राज्यवादी मानसिकता पूरी दुनिया पर थोपना चाहता है। यदि अब भी दुनिया ने कुछ कड़े कदम नहीं उठाए, तो जल्द ही चीन का प्रभाव दुनिया के कोने कोने में होगा, जिससे निपट पाना लोकतान्त्रिक देशों के लिए इतना भी आसान नहीं होगा।