दिल्ली की सीमाओं पर लगातार अराजक हो रहे किसानों के आंदोलन को लेकर अब देश के गृहमंत्री अमित शाह एक्शन में आ गए हैं। शाह ने अब इस तथाकथित आंदोलन में खालिस्तानी फंडिंग और नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने की प्लानिंग कर ली है। अमित शाह का एक्शन ठीक वैसा ही होगा जैसे उन्होंने सीएए और एनआरसी के मामले में दिल्ली के शाहीन बाग के धरने को और देश विरोधी दंगों को हैंडल किया था। शाह का एक्शन में आना किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर चुके खालिस्तानी समर्थकों के लिए खतरनाक साबित होने वाला है।
किसान आंदोलन को लेकर विभिन्न मीडिया नेटवर्क्स की खबरें सामने आती रही हैं कि इसमें खालिस्तानी समर्थकों की विशेष भूमिका है। अमेरिका स्थित खालिस्तानी और अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस पहले ही इस आंदोलन को अपना खुला समर्थन दे चुका है। वहीं भारत विरोधी विदेशी सांसदों और नेताओं का लगातार इस आंदोलन के प्रति एक्टिव दिखना बताता है कि इस आंदोलन में विदेशी भूमिका काफी अहम है। इसीलिए इस मुद्दे पर अब अमित शाह के नेतृत्व वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कार्रवाई का खाका तैयार कर लिया है।
गृहमंत्रालय के सूत्रों के हवाले से मीडियारिपोर्ट्स बताती हैं कि गृहमंत्री अमित शाह की देख-रेख में विदेशी फंडिंग और आतंकी गतिविधि की जांच के लिए एक टीम गठित की गई है। इसमें SFJ, बब्बर खालसा इंटरनेशनल, खालिस्तान ज़िन्दाबाद फ़ोर्स, खालिस्तान टाइगर फ़ोर्स पर शिकंजा कसने और विदेशी फंडिंग को खंगाला जाएगा। गृह मंत्रालय द्वारा ये सभी निर्णय पंजाब पुलिस, राज्य और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर लिए गए हैं।
इस मामले में ख़ालिस्तानी समर्थकों को UK, कनाडा, USA, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी से होने वाली विदेशी फंडिंग की विशेष रूप से जांच की जाएगी। सरकार की तरफ से NIA ,ED, CBI, FIU और इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट को इस पूरी जांच के लिए निर्देश जारी कर दिए गए हैं। खबरों के मुताबिक इन सभी अलगाववादियों पर ठीक उसी तरह से कार्रवाई की जाएगी, जैसे पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों के खिलाफ की जाती है।
पिछले एक महीने से संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की बगावत और फिर आंदोलन के चलते खालिस्तानी समर्थक एक्टिव हो गए हैं। इससे किसानों का आंदोलन हाईजैक हो गया है। इसी के चलते ये आंदोलन सरकार द्वारा सारी मांगों को मानने और कृषि कानूनों में संशोधन की बात करने के बावजूद खत्म नहीं हो पा रहा है। इस आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों द्वारा भिंडरावाले के पोस्टर, बब्बर खालसा का समर्थन, लॉकडाउन का विरोध, कोरोनावायरस की वैक्सीन का बहिष्कार, 5जी नेटवर्क को रद्द करने के साथ ही कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग को खारिज करने की बेतुकी और बेहूदा बातें की जा रही हैं।
अमित शाह द्वारा ये एक्शन जरूरी इसलिए भी था क्योंकि एक रिपोर्ट में खालिस्तानी समर्थकों द्वारा पीएम मोदी को उसी तरह मारने की बात की जा रही थी, जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मारा गया था। इन किसानों के आंदोलन में इस्तेमाल हुए ट्रैक्टर में “खालिस्तान जिंदाबाद” और ऐके-47 जैसी ख़तरनाक बंदूकों के पोस्टर लगे थे, जो कि पूरा आंदोलन एक तरीके से एंटी इंडिया रुख लेने लगा था। इस मसले पर किसानों के जिम्मेदार लोग भी कुछ भी बोलने से बच रहे थे।
अमित शाह अब ठीक उसी तरीके से इन खालिस्तानी समर्थकों और तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता फैलाने वालों पर कार्रवाई करेंगे, जिस तरह से उन्होंने सीएए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले शाहीनबाग के दंगाइयों और देश विरोधी मानसिकता वाले लोगों की कमर तोड़ी था।
गृहमंत्री ने उस दौरान दिल्ली पुलिस के खुला समर्थन दे दिया था जिसका नतीजा ये था कि दंगाईयों के पसीने छूट गए थे। उस अराजकता में सबसे बड़ी भूमिका अलगाववादी संगठन पीएफआई की सामने आई थी,जिसके खिलाफ आज भी पूरे देश में सुरक्षा एजेंसियां धर-पकड़ कर रही हैं। कुछ ऐसा ही अब इन खालिस्तानियों के खिलाफ भी होने वाला है। अमित शाह की ये सक्रियता इन तथाकथित आंदोलनकारियों और उनके आकाओं के लिए मुसीबत का सबब साबित होने वाला है।