देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन अराजक हो रहा है। इसी बीच यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रहे एनसीपी नेता शरद पवार द्वारा लिखी गई एक चिट्ठी काफी वायरल रही है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए शरद पवार कृषि से जुड़े व्यापारिक कार्यों में उदारीकरण के समर्थन में थे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 2003 के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी के “मॉडल अधिनियम” के तहत APMC अधिनियम को निरस्त या संशोधित करने के लिए कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र तक लिख दिया था।
शरद पवार के इस प्रस्ताव को कई राज्यों ने स्वीकार भी किया था। कृषि के लिहाज से महत्वपूर्ण बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों ने काफी हद तक इस कानून में संशोधन किया था और शरद पवार की बातों को माना था। इस नीति के तहत ये मंशा थी कि किसान को APMC के झंझट से मुक्त किया जा सके। कुछ राज्यों ने इस शरद पवार के प्रस्ताव को आंशिक रुप से पारित किया तो बिहार जैसे राज्यों ने तो इसे पूरी तरह ही अपना लिया था। शरद पवार की उसी नीति के तहत ही अब मोदी सरकार ने भी कृषि के नए अधिनियमों के तहत पूरे देश के किसानों को APMC से मुक्त करने के लिए कदम उठाया है, जो कि किसान को पहले से कहीं अधिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।
किसानों को इस बंधन से मुक्त करने की मुहिम कोई आज की नहीं है बल्कि सन 2000 से ही इस पर काम चल रहा है। एनडीए -1 वाली वाजपेयी सरकार ने मॉडल APMC कानून तैयार किया था और यूपीए सरकार ने इन कानूनों का पूरा समर्थन किया था। शरद पवार इन्हीं के आधार पर अन्य राज्यों से इसे लागू करने का प्रस्ताव दे रहे थे लेकिन किसी भी सरकार में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो इस कानून को राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर सके। इसके इतर जब मोदी सरकार ने इस कानून को लागू कर दिया है तो विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर राजनीति कर रही हैं।
इस मुद्दे पर केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शरद पवार को घेरते हुए उनके विरोध को “शर्मनाक दोहरे मापदंड” वाला कहा है। शरद पवाल के बयान को लेकर रविशंकर प्रसाद ने कहा, “शेखर गुप्ता को दिए इंटरव्यू में शरद पवार ने बताया था कि योजना आयोग की सिफारिश यूपीए सरकार के दौरान आई थी और केंद्र सरकार अंतर-राज्यीय कृषि व्यापार अधिनियम को खत्म कर सकती है और APMC कानून को भी 6 महीने में समाप्त कर सकती है।” शरद पवार के ही पत्र का जिक्र करते हुए कहा प्रसाद ने कहा, “उस वक्त शरद पवार धमकी दे रहे थे कि अगर राज्य नहीं सुधरे तो हम वित्तीय सहायता देना बंद कर देंगे, इस मुद्दे पर एसपी, टीडीपी, लेफ्ट सभी पार्टियों ने मनमोहन सरकार का समर्थन किया था।” उन्होंने कहा, “ये विरोध आप सभी के दोगलेपन की पराकाष्ठा है।”
केवल APMC ही नहीं मोदी सरकार से जुड़े सभी फैसलों में विपक्षी दलों और विशेष रूप से कांग्रेस का पाखंड सामने आया है। जीएसटी, आधार और कई अन्य नीतिगत मुद्दों के बारे में कांग्रेस की नीतियों केवल बेबुनियाद विरोध की ही रही है। जीएसटी देश में लगभग तीन दशकों से चर्चा में था और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सहित कई सरकारों द्वारा इसे लागू करने के कई असफल प्रयास किए गए थे। इसके इतर जब 2017 में मोदी सरकार ने इसे लागू किया, तो कांग्रेस पार्टी ने तर्क दिया कि यह “सही” जीएसटी नहीं है जो साबित करता है कि इन्हें देश हित से ज्यादा अपनी राजनीति की चिन्ता है।
आधार की शुरुआत कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हुई थी, लेकिन जब मोदी सरकार ने इसे संसद में कानून के तौर पर पारित करने की बात की, तो कांग्रेस समेत एनसीपी ने इसका विरोध किया था। शरद पवार जिन्होने एक वक्त इस वाजपयी सरकार के माडल का समर्थन किया था वो भी अपने राजनीतिक हितों के लिए इसका विरोध कर रहे हैं, जो सच में दोगलापन की पराकाष्ठा ही कही जाएगी।
एनसीपी प्रवक्ता महेश तापसे ने कहा, “भाजपा शासन नए कृषि कानूनों में अन्य कई मुद्दों को शामिल करने में भी विफल रहा है, जिसके कारण देश भर में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन किए जा रहे हैं। यहीं नहीं मोदी सरकार विपक्ष से व्यापक सहमति नही बना पाई है और किसानों की वैध आशंकाओं को सुलझाने में पूर्णतः विफल रही है।”
एनसीपी के प्रवक्ता का बयान अपने आप में दोगलापन है, जब यूपीए का ही APMC कानून मोदी सरकार लागू कर रही है तो फिर उसमें विपक्ष से सहमति बनाने की आवश्यकता ही क्या है।
यह सारे मामले साफ दिखाते हैं कि जो काम कांग्रेस शासित कोई भी सरकार नहीं कर सकी वह काम मोदी सरकार ने कर दिया है और यही बात इन विपक्षी दलों को नहीं पच रही है। इसीलिए इस मुद्दे को किसानों के नाम पर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है जो कि शर्मनाक है।