2020 खत्म होने को है, और इसके साथ ही कई राजनीतिक समीकरण भी बदलने वाले हैं। अब भारत पहले जैसा नहीं रहा, यदि वह शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब दे सकता है, तो अपनी कूटनीति के बल पर वह न केवल नए दोस्त बना सकता है, बल्कि अपने पड़ोसियों को भी शत्रुओं के चंगुल से छुड़ा सकता है, जैसा वह नेपाल के साथ कर रहा है। पर नेपाल से सुधरते रिश्तों ने चीन की बेचैनी बढ़ा दी है, और इसीलिए वह फिर प्रोपगैंडा पर उतर आया है।
इन दिनों नेपाल ने कई निर्णयों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को पुनः मजबूत करने के लिए कितना तत्पर है। उदाहरण के लिए महीनों से स्थगित भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने के नेपाल दौरे को न केवल ओली सरकार ने मंजूरी दी, बल्कि उनके नेपाल आगमन से पहले नेपाल के उपप्रधानमन्त्री और रक्षा मंत्री का अतिरिक्त पदभार संभाल रहे ईश्वर पोखरेल से रक्षा मंत्रालय भी छीन लिया। ईश्वर पोखरेल वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नेपाल और भारत के बीच सीमा विवाद को बढ़ावा दिया था और नेपाल के लिए भारत के विरुद्ध विष उगलने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।
इसके अलावा जिस प्रकार से भारत अप्रत्यक्ष तौर पर नेपाल को चीन के साथ बॉर्डर विवाद से निपटने के लिए सहायता कर रहा है, जिसके लिए हाल ही में विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने नेपाल दौरा भी किया, वह चीन को फूटी आँख नहीं सुहा रहा। इसीलिए अभी कुछ ही दिन पहले अपना प्रभाव बनाए रखने हेतु चीन ने अपने रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग को नेपाल दौरे पर भेजा, ताकि नेपाल और चीन के संबंधों को कोई आंच न आने पाए, और नेपाल और चीन के बीच सैन्य संबंध भी स्थापित हो सके।
लेकिन चीन केवल वहीं पर नहीं रुका। नेपाल और भारत के बीच सुधरते रिश्तों से चीन किस प्रचार से परेशान है, ये ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित लेख से स्पष्ट झलकता है। ग्लोबल टाइम्स के लेख के अनुसार, “सैन्य सहायता चीन और नेपाल के द्विपक्षीय वार्ता का एक अहम भाग है, परंतु इसे हमेशा कठघरे में खड़ा किया जाता है, क्योंकि इसका प्रमुख कारण है भारत की भड़काऊ प्रेस।”
इसी लेख में आगे बताया, “भारत दक्षिण एशिया पर अपना प्रभुत्व जताता रहा है, और इसीलिए वह इस क्षेत्र में चीन के साथ साझेदारी का धुर विरोधी रहा है। उसने मीडिया रिपोर्ट्स का इस्तेमाल करते हुए स्थानीय जनता को बर्गालाने का प्रयास किया है। अफवाहें फैलाई जा रही है कि चीन सबको डराता धमकाता है और धीरे धीरे कई देशों पर चीन कब्जा करता फिरता है। दुर्भाग्यवश इन झूठों के कारण दुनिया के कई अन्य देशों की विदेश नीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है।”
इसी को कहते हैं, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। जिस चीन ने अपने क्षेत्र पर घुसपैठ होने पर जांच करने आई नेपाली काँग्रेस के सदस्यों पर आँसू गैस के गोले बरसाए और पेलेट गन तक बरसाए। ऐसे में ग्लोबल टाइम्स उसकी कुंठा को दर्शाता है, जहां वह नेपाल द्वारा भारत के साथ अपने रिश्तों को पुनः सुधारने की दिशा में आगे बढ़ता देख बहुत गुस्से में है। लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!