जैस जैसे दिन बढ़ते जा रहे हैं, वैसे वैसे कृषि आंदोलन की भी पोल खुलती जा रही है। स्थिति अब ऐसी हो गई है कि कुछ प्रदर्शनकारी जहां वापस जाना चाहते हैं, तो वहीं कई किसान अब कृषि कानून के समर्थन में उतर आए हैं। इसी बीच अब अड़ियल आंदोलनकारियों के पीछे की वित्तीय सहायता की जांच पड़ताल करने के लिए केंद्र सरकार ने स्पष्ट आदेश दिए हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने FCRA के अंतर्गत भारतीय किसान यूनियन से जुड़े सभी संगठनों और उन्हें मिली वित्तीय सहायता, विशेषकर विदेशी सहायता की जानकारी मांगी है। चूंकि अधिकतर यूनियन या तो पंजीकृत नहीं है, या फिर उनके विदेशी सहायता का विवरण स्पष्ट नहीं है, इसलिए केंद्र सरकार ने ये सभी जानकारियां मांगी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह पहले ही ज्ञात हो चुका था कि केंद्र सरकार किसान आंदोलन में मौजूद अराजक तत्वों की कमर तोड़ने के लिए व्यापक स्तर पर ताबड़तोड़ कार्रवाई करेगी।
इस बात की पुष्टि तभी से हो गई, जब हाल ही में भारतीय किसान यूनियन ने इस निर्णय को लेकर हो हल्ला मचाना शुरू कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्रहन ने दावा किया, “केन्द्रीय प्रशासन BKU को इसलिए निशाना बना रही है, क्योंकि उसे भारतीयों और NRI से भर भरके समर्थन मिल रहा है। हमने क्या गलत किया है अगर विदेश से हमारे भी, जो कहीं ट्रक चलाते हैं या फिर मजदूरी करते हैं, हमें समर्थन में चन्दा भेज रहे हैं?”
कहने को BKU के अध्यक्ष ने दावा किया है कि उन्हें कई जगह से डोनेशन मिल रहे हैं, जो करीब पिछले दो महीने में 8 लाख रुपये के पार पहुंच चुकी है, पर सच्चाई तो यह है कि भारतीय किसान यूनियन अपने मूल उद्देश्य से या तो पूरी तरह भटक चुका है।अगर ऐसा न होता तो ये यूनियन कृषि बिल का समर्थन करने के बाद विरोध में न होती।
Bharatiya Kisan Union (Rod), a farmers’ body, has warned of blocking road entry to Dehradun, the capital of Uttarakhand, if the Centre doesn’t roll back the three farm laws.https://t.co/1EaMK9OxYE
— Hindustan Times (@htTweets) December 18, 2020
अगर ‘हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है’ का कोई जीता जागता स्वरूप होता, तो वो निस्संदेह भारतीय किसान यूनियन ही है। ये वही संगठन है जो आज से वर्ष दो वर्ष पहले उन्हीं बातों को कृषि कानून में समाहित करने की मांग कर रहा था, जिनके विरुद्ध आज वो दिल्ली के आसपास अराजकता फैला रहा है।
ये वही भारतीय किसान यूनियन जिन्होंने साल भर पहले ही किसानों और खरीददारों के बीच से दलालों यानि आढ़तियों को हटाने की मांग की थी। आज जो भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत कृषि कानूनों को हटाने की मांग रहे हैं, वही जून माह में इसके समर्थन में भी खड़ा था, और ये भी कहा था कि वर्षों पुरानी मांगें आज जा के पूरी हुई है।
तो फिर ऐसा क्या हुआ कि जो कल तक कृषि कानूनों के समर्थन में खड़े थे, आज वही उसके विरुद्ध है? दरअसल, वर्तमान कृषि कानूनों से पंजाब में आढ़तियों का वर्चस्व भी समाप्त हो जाएगा और साथ ही साथ देशभर के मध्यम और निम्न वर्ग के किसानों को अपने उत्पाद सही दाम पर बेचने के अनेकों अवसर भी मिलेंगे, इसलिए अब भारतीय किसान यूनियन भी सक्रिय हो गया।
लेकिन जैसे जैसे दिन बढ़ते गए, इनका असली रंग रूप सबके समक्ष आता गया, और जब सरकार द्वारा इनकी लगभग सभी मांगें मानने के बाद भी ये नहीं हटे, तो लोगों का भी विश्वास इनपर से धीरे धीरे उठता गया। अब केंद्र सरकार इन अराजकतावादियों को जड़ से उखाड़ने में लग चुकी है, और इन्हें मिलने वाले विदेशी फंड्स की जांच इसी दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है।