कोरोना के बाद चीन की आक्रामकता ने कई देशों के आपसी सम्बन्धों को मजबूत किया है, जिसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध प्रमुख हैं। विश्व के कई देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए भारत की ओर देख रहे हैं और इसी क्रम में दक्षिण कोरिया भी प्रयासरत है। इसी दिशा में दोनों देशों ने चीन से आयात कम करने के लिए हाथ मिलाया है।
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कई कोरियाई कंपनियां भारत में कार्बनिक कपास, चमड़े के सामान और हैंडक्राफ्ट खरीदने के लिए अवसर तलाश रही हैं, वहीं जबकि भारतीय कंपनियों ने कोरियाई खिलौनों और सौंदर्य प्रसाधनों में रुचि दिखाई है।
इन सभी आवश्यक वस्तुओं के लिए दोनों देश चीन पर निर्भर थे लेकिन अब दोनों देश चीन के आयात को पूरी तरह कम करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं और अन्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं।
भारत-कोरिया व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बी 2 बी ट्रेड प्रमोशन एजेंसी Jeonbuk Business Centre ने इस साल की शुरुआत में कहा, रोज लगभग 20 से अधिक कोरियाई कंपनियाँ covid-19 महामारी के बीच भारत से औद्योगिक वस्तुओं और जैविक उत्पादों के खरीद बारे में पूछताछ कर रही हैं।
Jeonbuk Business Centre के आधिकारिक प्रवक्ता Seo Youngdoo ने कहा कि “कोरिया चीन से जैविक कपड़े खरीद रहा था, लेकिन अब वह इसके लिए भारत की ओर देख रहा है। यही नहीं, अन्य सामानों की श्रेणी में हस्तशिल्प और चमड़ा के लिए भी भारत एक विकल्प है।” दूसरी तरफ, भारत की कंपनियां कोरिया से सौंदर्य प्रसाधन, आंतरिक वस्तुओं और खिलौनों के बारे में पूछताछ कर रही हैं। भारत खिलौनों और सौन्दर्य प्रसाधन चीन से आयात करता है,अब चीन से आयात कम करने के लिए उसे भी एक विकल्प की आवश्यकता है।
Youngdoo ने कहा, “खाद्य, सौंदर्य प्रसाधन और फोटोनिक्स जैसे क्षेत्रों में भारतीय कंपनियाँ रुचि दिखा रहीं हैं।” उन्होंने बताया कि कोरियाई कंपनियों ने भारत के औद्योगिक पार्कों और औद्योगिक वस्तुओं जैसे मशीनों में रुचि व्यक्त की है।
उन्होंने यह भी कहा कि, “हम मेक इन इंडिया का सम्मान करते हैं और यहां से सामग्री खरीद रहे हैं।”
गलवान घाटी में चीन के हमले के बाद भारत ने चीनी सामानों का बहिष्कार शुरू किया था, तब से लेकर चीनी आयात में 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है। चीन से आयात कम करने के लिए ही पीएम मोदी ने आत्म निर्भर भारत का अभियान भी चलाया है, जिसका फायदा भी देखने को मिला है।
वहीं दक्षिण कोरिया की बात करे तो दोनों देशों के बीच संबंध पिछले कुछ वर्षों में कई गुना बढ़ा है। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोरिया गणराज्य की यात्रा से द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को एक स्पष्ट बढ़ावा मिला।
दोनों देशों के बीच एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CPA) है, जिसकी समीक्षा की जा रही है। इस CPA के तहत भारत अपने चावल, अंगूर, अनार और बैंगन निर्यात के लिए रियायतें मांग रहा है।
भारत और कोरिया ने CEPA में संशोधन करने, ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, और जहाज निर्माण उद्योग में सहयोग को मजबूत करने, शिपबिल्डिंग क्षेत्र पर सहयोग के लिए एक संयुक्त कार्य समूह की स्थापना और इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर मैनुफेक्चुरिंग के क्षेत्र में वार्ता शुरू करने का फैसला किया।
भारत ने वित्त वर्ष 2015 में कोरिया से 15.65 बिलियन डॉलर का सामान आयात किया, जबकि इसका निर्यात 4.84 बिलियन डॉलर था। वहीं वर्ष 2019 में, भारत से निर्यात 5.6 बिलियन था जबकि दक्षिण कोरिया से निर्यात 15.1 बिलियन डॉलर था। कोरिया को भारत खनिज, ईंधन, अनाज, लोहा और इस्पात निर्यात करता है। वहीं ऑटोमोबाइल पार्ट्स, दूरसंचार उपकरण, हॉट रोल्ड आयरन उत्पाद, पेट्रोलियम रिफाइंड उत्पाद, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और लौह तथा इस्पात उत्पादों का दक्षिण कोरिया से आयात करता है।
दोनों देशों के एक दूसरे के साथ आने से चीन को एक बड़ा झटका लगेगा क्योंकि दक्षिण कोरिया के लिए चीन सबसे बड़ा मार्केट है और उसके निर्यात के अधिकतर वस्तुओं की खपत वहीं होती है। अब भारत में उसके एक्सपोर्ट से चीन पर निर्भरता समाप्त होगी। वहीं भारत को भी चीन से आयात को और अधिक कम करने का मौका मिलेगा। यानि देखा जाए तो दोनों देश आपस में हाथ मिला कर चीन को डंप करने के प्लान पर काम कर रहे हैं।