एक कहावत है कि जब आप दुश्मन से जीत न सकें तो उसे अपना दोस्त बना लें। कुछ ऐसी ही चाल तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी बीजेपी के साथ चलने की कोशिश में हैं। हाल ही में देश की नई संसद के निर्माण से जुड़े सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर केसीआर ने मोदी सरकार की नीति का खुलकर समर्थन किया हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर पत्र लिख कर अपना समर्थन दिया है। जिसके बाद ये सवाल खड़े हो गए है कि क्या केसीआर दूसरे नीतीश कुमार बनने की कोशिश में हैं जो कि राज्य में अपनी सत्ता बचाने के लिए एनडीए का दामन थामने से परहेज़ नहीं करेंगे।
पीएम मोदी को लिखे पत्र में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के प्रमुख केसीआर ने कहा कि वो इस प्रोजेक्ट के पूर्णतः समर्थन में हैं। उन्होंने लिखा, “मैं सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के शिलान्यास कार्यक्रम में गर्व के साथ खुद को आपसे जोड़ता हूं। ये परियोजना लंबे समय से जारी थी, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी स्थित मौजूदा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है और साथ ही हमारे औपनिवेशिक अतीत से जुड़ा है।” गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट को लेकर होने वाले निर्माण पर अभी सुप्रीम कोर्ट ने भी रोक लगा दी है।
ऐसे में केसीआर का समर्थन चौंकाने वाला है क्योंकि उन्होंने जिन क्षेत्रीय पार्टियों के साथ महागठबंधन बनाने की बात कही थी, वो सभी इस प्रोजेक्ट के विरोध में हैं। केसीआर ने अपने पत्र में आगे लिखा कि ये राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “नया सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पुनरुत्थान, आत्मविश्वास और शक्तिशाली भारत के आत्मसम्मान, प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक होगा। मैं इस महत्वपूर्ण परियोजना के शीघ्र पूरा होने की कामना करता हूं।”
केसीआर के इस बदले हुए रुख से स्वयं बीजेपी वाले भी हतप्रभ होंगे। जो केसीआर कल तक हैदराबाद चुनावों में बीजेपी को भर-भरकर कोस रहे थे, उसी के ड्रीम प्रोजेक्ट से जुड़े मोदी सरकार के फैसले का केसीआर हाथों-हाथ स्वागत कर रहे हैं। उनके बदले रुख को देखकर कहा जा सकता है कि केसीआर दूसरे नीतीश कुमार बनना चाहते हैं।
हैदराबाद में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के बाद केसीआर को अपना भविष्य खतरे में दिखने लगा है। केसीआर ये बात अच्छे से समझ गए हैं कि बीजेपी ने अगर ऐसी ही ताकत 2023 के विधानसभा चुनाव में झोंक दी तो केसीआर का राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। इसीलिए वो नीतीश कुमार की तर्ज पर राज्य की सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी के साथ समझौता कर सकते हैं जो कि बीजेपी के लिए सकारात्मक ही होगा। इससे दो बातें साफ हो जाती हैं कि बीजेपी की विधानसभा में सत्ता हासिल करने की पूरी संभावनाएं केसीआर को पता चल चुकी हैं जो कि बीजेपी के लिए अच्छी खबर है। वहीं अगर बीजेपी केसीआर के साथ भी जाती है तो बीजेपी के पास सत्ता भी रहेगी और केसीआर की पार्टी टीआरएस का जनाधार भी, जिसे आगे चलकर बीजेपी आसानी से अपने संगठन में समाहित कर सकती है।