महाराष्ट्र की राजनीति भी बड़ी विचित्र है। कल तक जो अपना था, आज वो गैर है। इसी का एक उदाहरण हमें अभी देखने को मिल रहा है जहां शरद पवार के नेतृत्व में NCP शिवसेना का अस्तित्व ही समाप्त कर रही है, और शिवसेना को कोई समस्या ही नहीं है। अभी हाल ही में पिछले कुछ दिनों से यह कयास लगाए जा रहे थे कि UPA के प्रमुख के तौर पर शरद पवार का नाम आगे किया जा सकता है, जिसे शिवसेना भी बढ़चढ़कर प्रचार में ला रही थी।लेकिन इससे महाविकास अघाड़ी का तीसरा दल यानि काँग्रेस बुरी तरह भड़क गया है, और उसने शिवसेना को आड़े हाथों भी लिया है।
काँग्रेस के नेताओं का कहना है कि शिवसेना जब यूपीए का हिस्सा ही नहीं है, तो उसे ऐसी बयानबाजी का क्या अधिकार है? परंतु संजय राऊत ने ऐसा भी क्या लिखा था जिसके कारण काँग्रेस इतना हो हल्ला कर रही है। सामना के संपादकीय में संजय राउत ने लिखा था, “यूपीए की कमान शरद पवार को सौंपी जाना चाहिए। सोनिया गांधी के स्थान पर अब शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाया जाए, ताकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का सामना किया जा सके। सोनिया गांधी ने अब तक यूपीए अध्यक्ष की भूमिका बखूबी निभाई, लेकिन अब बदलाव करना होगा। दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों का साथ देने के लिए आगे आना होगा”
जवाब में शिवसेना के प्रवक्ता संजय राऊत कहते हैं, “हमने नहीं कहा था कि शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बना ही दो। परंतु हमारा संपादकीय यह अवश्य कहता है कि शरद पवार ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्हे भाजपा से लेकर सभी विपक्षी पार्टियां गंभीरता से लेती है।”
संजय राऊत आगे फरमाते हैं, “उन्हें [पवार] प्रधानमंत्री मोदी तक हल्के में नहीं लेते। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक शरद पवार की सलाह ले रही है। इस समय शरद पवार ही इकलौते ऐसे नेता हैं जो हर क्षेत्र में लोकप्रिय है”
लेकिन इस पसोपेश में दोनों ही पार्टियां ये भूल रही है कि असल में इस लड़ाई से किसको वास्तव में फायदा हो रहा है। दरअसल इस तनातनी से न सिर्फ शरद पवार के नेतृत्व वाली NCP का कद बढ़ेगा, बल्कि शिवसेना और काँग्रेस का प्रभाव भी कम होगा। इसके अलावा जिस प्रकार से शिवसेना शरद पवार की पैरवी कर रही है, उससे इतना तो स्पष्ट है कि उसे अपने पार्टी के घटते प्रभाव की कोई चिंता ही नहीं है।
पर NCP शिवसेना का प्रभाव कम करके क्या प्राप्त करेगी? दरअसल NCP का प्रभाव सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के पश्चिमी क्षेत्र में है, जिससे मराठवाड़ा भी कहते हैं। इधर ही शरद पवार की पार्टी को सबसे ज्यादा समर्थन और सीटें मिलती है, लेकिन यहीं पे शिवसेना भी उसे काफी कड़ी टक्कर देती रही है, अपितु अधिकतर समय जीतती भी रही है।
ऐसे में यदि शिवसेना ने अपना वर्तमान बर्ताव जारी रखा, तो NCP के लिए कोई विरोधी ही नहीं रह जाएगा, और इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि कभी NCP से दो-दो हाथ करने वाली शिवसेना इस अभियान में उसका पूरा पूरा साथ दे रही है।