आज दुनिया को चीन के रूप में ऐसी समस्या का सामना करना करना पड़ रहा है जो कभी किसी ने सोचा नहीं था। चाहे वो रणनीतिक हो या सैन्य हो या फिर राजनीतिक ही क्यों न हो। परंतु जिस समस्या से विश्व आज जूझ रहा है उसे भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने 2013 में ही पहचान लिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से पहले, अजित डोभल ने VIF थिंक-टैंक के निदेशक के रूप में 3 जुलाई, 2013 को : From a Party Outfit to Cyber Warriors” शीर्षक से एक शोध पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने उन सभी मुद्दो पर विस्तार से लिखा जिसे विश्व आज पहचान रहा है।अपने खुफिया एजेंसियों के माध्यम से किसी देश की सरकार में घुसपैठ से लेकर कन्फ्यूशियस संस्थानों और United Front की मदद से CCP का प्रोपोगेंडा फैलाने तक की पहचान डोभाल बहुत पहले ही कर चुके थे।
इस पेपर में उन्होंने बताया है कि कैसे चीनी खुफिया एजेंसी Ministry of State Security’s (MSS) ने धर्मशाला स्थित दलाई लामा के संस्थान में घुसपैठ कर पाकिस्तानी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की मदद से भारत विरोधी उत्तर-पूर्वी विद्रोही समूहों का समर्थन किया और तिब्बत से लगी सीमा पर भारतीय सेना की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी।
उन्होंने पेपर के निष्कर्ष में लिखा है कि “पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने वर्षों में सामरिक, तकनीकी और रणनीतिक स्तरों पर इंडो पैसिफिक क्षेत्र, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अपनी खुफिया क्षमताओं को पूरी तरह से उन्नत किया है।“
आज के परिपेक्ष्य में यह पूरी तरह से सही होता दिखाई दे रहा तथा PLA दक्षिण चीन सागर से लेकर मध्य एशिया तक अपने पाँव फैला चुका है।
उन्होंने आगे बताया है कि “MSS ने भी खुद को एक प्रमुख विदेशी खुफिया एजेंसी के रूप में विकसित किया है और राजनयिक खुफिया के अलावा, अपनी आर्थिक और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अन्य देशों के तकनीकी डेटा और सिस्टम की जानकारी के लिए आक्रामक रूप से हमले कर रहा है।“
उन्होंने लिखा है कि यह विदेशों में रहने वाले चीनी MSS चीन को खुफिया जानकारी और जासूसी प्रदान करता है। अपने जासूसी क्षेत्र को बढ़ाने के लिए, यह वाणिज्यिक कंपनियों और व्यापारिक घरानों, मीडिया एजेंसियों, चीनी बैंकों आदि का उपयोग कर रहा है। 180 देशों में लगभग 380 कन्फ्यूशियस संस्थानों की स्थापना और चीनी भाषा के संस्थान आदि भी इसी विदेशी खुफिया गतिविधियों का हिस्सा है। चीन स्वयं को एक महाशक्ति की भूमिका में देखता है और इसी बहाने चुपचाप, लेकिन तेजी से, अपनी खुफिया क्षमताओं को उसी के अनुरूप बना रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि 2013 में अजित डोभल द्वारा लिखी गयी एक-एक बात वास्तविकता में बदल चुकी है। आज विश्व को जिस चीनी खुफिया गतिविधियों का एहसास हो रहा है और कई देश कार्रवाई भी कर रहे हैं, उसे डोभाल ने पहले ही पहचान लिया था।
इस हफ्ते, द ऑस्ट्रेलियन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के वफादार सदस्यों ने पेशेवरों के रूप में पश्चिमी वाणिज्य दूतावासों और मेगा कॉरपोरेशनों में घुसपैठ की। द ऑस्ट्रेलियन के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के डेटा-बेस 2016 में लीक हुए थे जिससे यह भी पता चलता है, कई अखबार के संपादक और बुद्धिजीवी सोशल मीडिया और सेमिनारों पर दुनिया की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी के influencer के रूप में कार्य करते हैं।
चीन अपने United Front के अधिकारियों की राजदूत जैसे महत्वपूर्ण पदो पर नियुक्ति करता है जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति को सीधे रिपोर्ट करते है, ये लोग भारत तथा अन्य देश के सामने एक बड़ी सुरक्षा चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं।
हालांकि, इस मोनोग्राफ से काफी स्पष्ट है कि पश्चिमी दुनिया, इंडो-पैसिफिक और भारत को चीनी खुफिया घुसपैठ के बारे में पता था, लेकिन चीन के खिलाफ सभी देश कोरोना के बाद ही जागे हैं और कार्रवाई करना शुरू किया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अजित डोभाल के रूप में भारत के पास एक ऐसा एसेट है जो चीन के बारे में अन्य देशों की खुफिया एजेंसियों से अधिक जानकारी रखते हैं। यही कारण है कि हाल के महीनों में भारत ने चीन के हर एक कदम का मुंहतोड़ जवाब दिया है।