ग्रेटर हैदराबाद महानगर पालिका चुनावों के बाद तेलंगाना की राजनीति बिल्कुल बदल सी गई है। बीजेपी का इन चुनावों में नंबर दो की स्थिति हासिल करना तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के लिए खतरे की घंटी साबित होगा। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के लिए तो ये ज्यादा नुकसानदायक नहीं होगा लेकिन बीजेपी का यह बेहतरीन प्रदर्शन विधानसभा चुनावों के लिए केसीआर को मुसीबत में डालने वाला होगा, क्योंकि बीजेपी अब तेलंगाना की राजनीति में अपनी पूरी ताकत झोंकेगी, जिससे टीआरएस हाशिए पर चली जाएगी।
बीजेपी ने अपनी राजनीतिक पहुंच मजबूत करने के लिए टीआरएस का राजनीतिक भविष्य खतरे में डाल दिया हैं। तेलंगाना की राजनीति में कल तक जिस टीआरएस को लग रहा था कि उसके लिए राज्य में कोई चुनौती ही नहीं है, वो ही अब अपने अस्तित्व को लेकर बेचैन है। बीजेपी ने मात्र एक महानगरपालिका चुनाव से तेलंगाना की राजनीति में धमाकेदार इंट्री की है। ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका की 4 सीटों के साथ चुनावों में हाशिए पर खड़ी पार्टी के नेताओं ने अपनी मेहनत मशक्कत के दम पर पार्टी को 49 पर पहुंचा दिया है। इससे न केवल महानगरपालिका के चुनावों पर असर पड़ा है बल्कि बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने लगाए हैं जो विधानसभा चुनावों के लिहाज से उसके लिए सकारात्मक होंगे।
ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका की स्थिति यह है कि बिना गठबंधन वहां पर टीआरएस अपना मेयर नहीं बैठा सकती है। टीआरएस और बीजेपी की आमने सामने की लड़ाई है जिसके चलते टीआरएस बीजेपी से गठबंधन नहीं करेगी। ऐसे में टीआरएस अब इस्लामिक कट्टरता के नाम पर राजनीतिक दुकान चलाने वाले लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का समर्थन लेगी। इसके चलते बीजेपी का आरोप सच साबित हो जाएगा कि जो एआईएमआईएम, टीआरएस के खिलाफ बयानबाजी करती है ,असल में वह अंदरखाने एक अघोषित गठबंधन है। इसके चलते हैदराबाद में ओवैसी का एकछत्र राज चलता है तो वहीं पूरे तेलंगाना में टीआरएस के नेतृत्व में केसीआर अपना राजनीतिक सिक्का चलाते हैं। इस पूरे प्रकरण से दोनों के बीच की परदेदारी का जनता के बीच खुलासा बीजेपी को फायदा पहुंचाएगा।
बीजेपी का तेलंगाना की राजनीति में उभरना ओवैसी को उतना ज्यादा नुक्सान नहीं पहुंचाएगा क्योंकि एआईएमआईएम केवल मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ही चुनाव लड़ती है। हैदराबाद के महानगरपालिका चुनाव में भी दिखा कि ओवैसी अपनी लगभग-लगभग 50 प्रतिशत सीटों पर सफल हो गए हैं जबकि बीजेपी ने टीआरएस की सीटों को नुक्सान पहुंचाया हैं। इसके चलते साफ है कि टीआरएस के वोट बैंक को ध्वस्त करने में बीजेपी अपनी मुख्य भूमिका अदा करेगी। दूसरी ओर ओवैसी से टीआरएस का गठबंधन जनता को भी रास नहीं आएगा जिससे टीआरएस के खिसकते वोट बैंक में एक भूचाल सा आएगा, जो कि एक बड़े वर्ग की नाराज़गी के तौर पर देखा जाएगा।
इसके अलावा जनहित के मुद्दों पर भी केसीआर का रुख उदासीन ही रहा है। बीजेपी ने जब से उपचुनावों में दुब्बक विधानसभा सीट जीती है तब से बीजेपी को रोकने के लिए केसीआर की पार्टी टीआरएस लोगों को मुफ्त की मलाई दे रहे हैं। इसमें बिजली पानी तक मुफ्त में दिया जा रहा है। इसके चलते राज्य की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुकी है। राज्य सरकार लगातार कर्ज ले रही है। इन बिंदुओं को लेकर भी बीजेपी केसीआर पर हमलावर है जो कि जनता को भी समझ में आ रहे हैं और ये टीआरएस के लिए मुसीबत बनेंगे।
बीजेपी का यूं उभरना मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी टीआरएस के राजनीतिक भविष्य को बड़ी ही आसानी से गर्त में ले जाएगा, जिसके बाद पार्टी का सीधा मुकाबला ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से ही होगा।