ट्रम्प ने कांग्रेस द्वारा भारी समर्थन से पारित किए गए US डिफेंस पॉलिसी बिल को वीटो कर दिया है। ट्रम्प का यह निर्णय पेंटागन और वाशिंगटन DC में बैठे डीप स्टेट के लिए एक करारा जवाब है, जिसका प्रभाव अमेरिका की हर नीति पर होता है। वास्तव में ट्रम्प ने अपने 4 सालों के कार्यकाल में हमेशा ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का पालन किया है। यदि हम उनके कार्यों का निष्पक्षता से अवलोकन करें तो हमें पता चलेगा कि अमेरिका के सहयोगियों और विरोधियों दोनों के साथ सामरिक-भूराजनैतिक मुद्दों पर चर्चा के समय, ट्रम्प प्रशासन ने हमेशा अमेरिकी हितों को सर्वोपरि रखा है। उनकी यह नीति कभी-कभी उनके सहयोगियों को भी असहज करती रही है लेकिन ट्रम्प अपनी नीति में स्पष्ट रहे हैं।
ट्रम्प ने 740 बिलियन डॉलर के वर्तमान बिल को यह कहते हुए नकार दिया कि यह रूस और चीन के लिए उपहार है और यह उनके पूर्व सैन्य अधिकारियों को पर्याप्त सम्मान नहीं देता। ट्रम्प की नाराजगी मुख्य रूप से दो मुद्दों पर है। ट्रम्प की मांग थी कि सेक्शन 230, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उसपर पोस्ट किए जा रहे कंटेंट के लिए जवाबदेही से मुक्त करता है, उसे हटाया जाए या उसमें उचित बदलाव किया जाए। ट्रम्प ने कहा कि ” सेक्शन 230 विदेशियों द्वारा झूठी अफवाह फैलाने में मददगार है, जो हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप से मुक्ति के लिए बड़ा खतरा है।” महत्वपूर्ण यह है कि हालिया चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप को डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा मुख्य मुद्दा बनाया गया था, साथ ही ट्रम्प पर रूस से सहयोग का आरोप लगाया गया था। लेकिन जब ट्रम्प ने सेक्शन 230 हटाने की मांग की तो डेमोक्रेट इसके पक्ष में नहीं हैं।
इसके अलावा ट्रम्प की दूसरी मांग थी कि कुछ मिलिट्री बेस के नाम बदले जाएं और पूर्व सैन्य अधिकारियों के नाम पर उनके नाम रखे जाएं, किंतु अमेरिकी कांग्रेस ने इन बातों को नजरंदाज कर दिया। जब बिल कांग्रेस से पारित हुआ था तो डेमोक्रेट बहुत प्रसन्न थे लेकिन मात्र 10 दिनों में ट्रम्प ने इसे वीटो कर दिया। वैसे तो ट्रम्प का कार्यकाल बस एक माह का बचा है और आज नहीं तो कल यह बिल पारित हो ही जाएगा लेकिन ट्रम्प की दृढ़ता यह संदेश देने के लिए काफी है कि वे पिछले कुछ दशकों में पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो अमेरिकी डीप स्टेट के सामने बिल्कुल भी झुकने को तैयार नहीं हैं।
ट्रम्प और अमेरिकी डीप स्टेट की नीतियों में भारी टकराव है। अमेरिकी प्रशासन में एक ऐसा तबका मौजूद है जिसके लिए अमेरिकी सेना द्वारा लड़े जा रहे युद्ध एक व्यापार बन गए हैं। इनकी नीति दूसरे देशों की आंतरिक समस्याओं में हस्तक्षेप और युद्ध की रही है। वास्तव में ट्रम्प पिछले कई दशकों में पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने कोई नया युद्ध नहीं शुरू किया। नहीं तो ओबामा, बुश जूनियर, क्लिंटन, बुश सीनियर या उसके पहले, सभी ने किसी न किसी नई समस्या को अमेरिका के गले बांधा है।
ट्रम्प सरकार ने कई ऐसे निर्णय किये हैं जो डीप स्टेट की नीतियों पर हमला हैं, जैसे सीरिया से सेना की वापसी और प० एशिया में हस्तक्षेप की नीति जिसके चलते वहां पहली बार अरब-इजरायल सहयोग दिख रहा है। साथ ही अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी, जो शांति बहाली की उम्मीद जगा सकती है। इसके अलावा ट्रम्प ने जर्मनी से सेना हटाने का भी निर्णय किया है जिसे चीन के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए दक्षिणी चीन सागर या हिन्द महासागर क्षेत्र में उतारा जाएगा। यह सभी नीतियां अमेरिकी डीप स्टेट की नीति के विरुद्ध है जिसने ओबामा शासन के दौरान अमेरिका को अनावश्यक रूप से लीबिया और सीरिया में उलझाए रखा गया और चीन के बढ़ते खतरे के प्रति आँखे बंद कर ली थीं।
वास्तव में इस बिल की सबसे बड़ी समस्या यही थी कि यह विदेशों से सैन्य टुकड़ियों को बुलाने के राष्ट्रपति ट्रम्प के निर्णय को प्रभावित करता था। ट्रम्प अपने शासन के अंतिम दौर में हैं और वह कई ऐसे निर्णय ले रहे हैं जो अमेरिकी विदेश नीति पर दीर्घकालिक प्रभाव डालेंगे। जैसे उन्होंने तिब्बत और दलाई लामा को अमेरिका की चीन के प्रति नीति का एक मुख्य विषय बना दिया है। इसके अतिरिक्त हाल ही में ईरान के न्यूक्लियर साइंटिस्ट को मार गिराने में भी अमेरिका के अप्रत्यक्ष समर्थन की महत्वपूर्ण भूमिका थी। तुर्की पर प्रतिबंध भी एक महत्वपूर्ण निर्णय था।
अब कांग्रेस के निर्णय को वीटो करके, खुलकर सेक्शन 230 की आलोचना करके तथा डीप स्टेट द्वारा विदेशों से सैन्य वापसी में अड़चन पैदा करने की बात उठाकर, ट्रम्प ने जाते जाते भी अमेरिका में ऐसे तबकों के हितों को नुकसान पहुँचा दिया है, जिनके लिए अमेरिका द्वारा चलाए जा रहे वैश्विक युद्ध धन उगाही का एक तरीका बन गए हैं।