खराब आर्थिक हालत के कारण चीन अपने महत्वाकांक्षी BRI प्रोजेक्ट की फंडिंग जारी रखने में अब नाकाम साबित हो रहा है। Tfipost पर हम पहले ही आपको यह बता चुके हैं कि कैसे अब चीन का सारा ध्यान बाहरी बाज़ार से हटकर अपने घरेलू बाज़ार पर केन्द्रित हो चुका है और वह अपनी “dual circulation” नीति के तहत घरेलू मांग को बढ़ाने पर ही ज़ोर दे रहा है। ऐसे में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अब मौके पर चौका लगाते हुए मध्य एशिया में BRI के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए अपने Eurasian Economic Union (EAEU) को आगे बढ़ाने का अवसर ढूंढा है। पुतिन ने कहा है कि अगर क्षेत्र में BRI को आगे बढ़ाना है तो उसे EAEU के साथ ही जोड़ना होगा। इसके साथ ही पुतिन ने EAEU में भारत की भागीदारी पर भी ज़ोर दिया है। साफ़ है कि रूस अब EAEU के जरिये भारत के साथ मिलकर मध्य एशियाई देशों में BRI के प्रभुत्व को समाप्त करना चाहता है।
बता दें कि BRI के शुरू होने के करीब दो सालों के बाद वर्ष 2015 में रूस के नेतृत्व में EAEU की स्थापना की गयी थी और इसका मकसद मध्य एशियाई देशों और रूस के बीच आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देना था। आज रूस के अलावा अर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान इसके सदस्य हैं जबकि Moldova, क्यूबा और उज्बेकिस्तान इसके observer members हैं। हाल ही में सम्पन्न हुई Eurasian Economic Council की एक बैठक में पुतिन ने भारत को भी इसमें निमंत्रण देने की बात कही है। अगर भारत इस अहम समूह का सदस्य बनता है तो वह मध्य एशियाई देशों पर अपना प्रभाव बढ़ाने का अच्छा अवसर ढूंढ सकता है।
भारत पहले ही मध्य एश्यियाई देशों के साथ नजदीकी बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है। भारत मध्य एशिया के जरिये अपने International North South Corridor को विकसित कर मुंबई से मॉस्को के बीच एक सीधा व्यापारिक रूट विकसित करना चाहता है। हाल ही में एक वर्चुअल बैठक के दौरान उज्बेकिस्तान ने भारत की इस पहल का हिस्सा बनने में अपनी स्वीकृति भी ज़ाहिर कर दी है। भारत ईरान में अपने चाबहार पोर्ट को विकसित कर अफगानिस्तान के रास्ते मध्य एशिया और फिर रूस और यूरोप तक अपनी पहुँच बनाना चाहता है।
ऐसे में भारत के International North South Corridor को रूस के Eurasian Economic Union को आपस में जोड़कर भी रूस और भारत चीन के BRI को बड़ी चुनौती दे सकते हैं। रूस द्वारा EAEU में भारत को आमंत्रित करना दिखाता है कि वह मध्य एशिया में रूस के बढ़ते प्रभाव से कितना चिंतित है। मॉस्को अब चिंतित हो गया है कि चीन मध्य एशियाई और Caucasus क्षेत्र में सांस्कृतिक मानचित्र को बदलने के लिए सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल कर रहा है और जल्द ही साइबेरिया और पूर्वी क्षेत्र में भी ऐसी सॉफ्ट पावर की रणनीतियों से वह प्रभाव जमा लेगा।
इसके परिणामस्वरूप, अब मॉस्को में चीन के खिलाफ आवाज उठने लगी है और कहा जाने लगा है कि USSR के टूटने के बाद चीन द्वारा उठाए गए कदम रूस के लिए खतरा बन रहे हैं। रूस की ये चिंता जाहिर भी है क्योंकि अब बीजिंग अपने BRI कार्यक्रम से आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ सांस्कृतिक और सुरक्षा क्षेत्र में भी प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन रूस के भी शहरों पर अपना प्रभुत्व जमा कर हड़पने की फिराक में भी है, उदाहरण के लिए व्लादिवोस्टोक को चीनियों ने अपना शहर बता दिया था। कई शोधकर्ताओं का मानना है कि अब रूस को चीन के खिलाफ शिनजियांग मामले पर खुल कर बोलना चाहिए और खास कर मध्य एशिया के देशों और Caucasus क्षेत्र में जिससे चीन के खिलाफ माहौल बने और उसका सांस्कृतिक प्रभाव कमजोर हो। इसी क्रम में रूस में ऐसे ही कई चीन विरोधी शोध कार्यों को सीधे सरकार से भी समर्थन मिल रहा है। ऐसे ही एक शोधकर्ता Vita Slivak हैं जो Moscow State University में चीनी विशेषज्ञ हैं। वे एक राष्ट्रपति के अनुदान के तहत “The Levers of Chinese Influence: ‘Sinification’ in Central Asia and Russia के विषय पर शोध कर रहीं है। इस चीन-विरोधी शोध का एक ही मकसद है कि कैसे भी करके मध्य एशिया से BRI को समाप्त करने के विकल्प तलाशे जाएँ।
रूस और चीन सिर्फ साथी होने का दिखावा करते हैं, लेकिन असल में ये दोनों बड़े देश होने के नाते एक दूसरे के प्रतिद्वंधी भी हैं। चीन रूस पर आर्थिक तौर पर हावी साबित होता है और यही कारण है कि अब चीन के खतरे से निपटने के लिए अब रूस भारत का साथ चाहता है।