चाबहार बंदरगाह परियोजना के साथ ही भारत, ईरान से चीनी प्रभाव हटाने के लिए है तैयार!

भारत ने चीन के हाथों से छीना ईरान

चाबहार

अब जल्द करेगा भारत चीन को ईरान और चाबहार दोनों से आउट

भारत चीन को हर क्षेत्र में पछाड़ने में लगा हुआ है, और लगता है कि अब ईरान भी जल्द ही चीन के प्रभाव से अपने आप को मुक्त करने में सफल रहेगा। चाबहार परियोजना पर काम पूरे जोर शोर से चल रहा है, और चीन के हाथ से भारत जल्द ही व्यापारिक तौर पर एक और देश को छीन सकता है।

ईरान में चाबहार बंदरगाह पर काम युद्धस्तर पर चल रहा है। यूरेशियन टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार, “इस हफ्ते रणनीतिक रूप से अहम चाबहार पोर्ट पर भारत, ईरान और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों के बीच एक त्रिपक्षीय वार्ता हुई। यह वार्ता बदलते समीकरण और अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर जो बाइडन को लेकर की गई”।

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दरअसल, जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने की संभावना से ईरान की बाँछें खिल रही है। उनके अनुसार बाइडन के आने से यदि उनपर आर्थिक पाबंदियां एकाएक नहीं हटेंगी, तो थोड़ी कम अवश्य हो जाएंगी। ऐसे में न सिर्फ ईरानी उद्योग को फायदा होगा, बल्कि चाबहार जैसे रणनीतिक रूप से अहम बंदरगाहों को भी फायदा होगा। इसीलिए अभी चाबहार पोर्ट पर युद्धस्तर पर काम चल रहा है, जो चीन के लिए शुभ संकेत नहीं है।

दरअसल, रणनीतिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान को दरकिनार कर जमीन के रास्ते अफगानिस्तान से जुड़ने की एक अहम पहल है। इस पर ईरान और भारत मिलकर काम कर ही रहे थे, कि अमेरिका ने 2018 तक ईरान पर कई आर्थिक प्रबंध लगा दिए। हालांकि, इसका असर विशेष तौर पर चाबहार पर नहीं पड़ा, और अब बाइडन के सत्ता ग्रहण करने से ईरान को आशा कि चाबहार को भी अधिक सुविधायें मिलेंगी।

लेकिन चीन का ऐसा क्या प्रभाव था ईरान पर, जिसे हटाने के लिए भारत इतनी मशक्कत कर रहा है? दरअसल, पिछले वर्ष अगस्त में ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद ज़रीफ़ ने अपने चीन के समकक्ष, वांग ली से मुलाक़ात कर चीन के साथ 25-वर्ष की चीन-ईरान रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किया था। चीन अब इस समझौते का इस्तेमाल कर ईरान को अपने इशारे पर नाचने वाला बंदर बनाना शुरू करने जा रहा है। इस समझौते के तहत न सिर्फ ईरानी लोगों का चौबीसों घंटे सर्विलान्स होगा बल्कि उनके देश में भी इंटरनेट पर CCP अपने देश की तरह ही फायरवाल लगा देगी।

Oilprice.com की रिपोर्ट के अनुसार चीन और ईरान के बीच 25 वर्षीय सौदे का अगला चरण चाहबार के बंदरगाह के आसपास इलेक्ट्रॉनिक जासूसी और युद्ध क्षमताओं को विकसित करने पर आधारित होगा। इसके तहत लगभग चाहबार के 5,000 किलोमीटर के रेडियस में निगरानी करेगा और ईरान की जनता भी इससे बच नहीं पायेगी। इसका अर्थ ये भी है कि चाबहार के जिस हिस्से में भारत काम कर रहा है, वो भी चीन के सरवेलांस में रहेगा।

इसीलिए अमेरिका के आर्थिक पाबंदियों से चाबहार को दूर रखे जाने के बावजूद वहां पर भारतीय और विदेशी कंपनियों निवेश को इच्छुक नहीं थी। ऐसे में अब भारत, ईरान और उज़्बेकिस्तान की वर्तमान बैठक से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि चीन के इस खतरे से भी काफी हद तक भारत और मिडिल ईस्ट, विशेषकर ईरान को निजात मिलेगी। इससे न सिर्फ भारत और मिडिल ईस्ट में निकटता बढ़ेगी, बल्कि चीन द्वारा मिडिल ईस्ट पर वर्चस्व जमाने का इरादा भी स्वाहा होगा।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत ने चाबहार परियोजना पर युद्ध स्तर से काम शुरू करते हुए न सिर्फ मिडिल ईस्ट में अपनी पैठ जमाने के संकेत दिए हैं, बल्कि चीन को ऐसा आर्थिक झटका देने की तैयारी में है, जिससे वह शायद ही कभी जीवन में उबर पाए।

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