ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चीन द्वारा शुरू किया गया व्यापार युद्ध लगातार उसी पर भारी पड़ रहा है। पहले तो चीन द्वारा ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर अनाधिकृत रोक लगाने के बाद, ऑस्ट्रेलिया ने भारत और जापान के बाजार को विकल्प बनाया जिससे चीन के बिजली और स्टील क्षेत्रों में कोयले की कमी हो गयी। अब ऑस्ट्रेलिया अपने गेंहु के निर्यात के लिए चीन के स्थान पर दक्षिण पूर्व एशिया के बाज़ारों में निर्यात करने के विकल्प पर काम करना शुरू कर दिया।
ऑस्ट्रेलियाई गेहूं कई वस्तुओं में से एक है जिसे बीजिंग ने कैनबरा के खिलाफ अपने व्यापार युद्ध में निशाना बनाया था। इस साल ऑस्ट्रेलिया में गेहूं की बंपर फसल हुई थी और चीन उसके आयात में कटौती करके ऑस्ट्रेलियाई कृषि को नुकसान पहुंचाना चाहता था। परंतु अब ऑस्ट्रेलिया की स्कॉट मॉरिसन सरकार ने चीन के इस हमले का समाधान खोजा निकाला है और अपने बम्पर गेहूं की फसल बेचने के लिए दक्षिण पूर्व एशिया को एक विशाल बाजार के रूप में देखना शुरू कर दिया है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मेलबर्न के एक कृषि विशेषज्ञ Andrew Whitelaw के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया से गेहूं की उपज में वृद्धि और अन्य देशों जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड में मौसम के कारण उत्पादन की कमी है, जिससे वहाँ के खरीदारों के अब फिर से ऑस्ट्रेलिया की ओर मुड़ने की संभावना है।
इससे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सिर्फ व्यापार ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि ऑस्ट्रेलिया को Soft Power हासिल करने में मदद मिलेगी। बता दें कि गेहूं एक रणनीतिक खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग ब्रेड से लेकर केक, और पास्ता तक लगभग हर चीज में किया जाता है।
इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया में व्यापक बारिश के कारण 30 मिलियन टन से अधिक की गेहूं उत्पादन का अनुमान है।
Whitelaw ने कहा, “हाल के वर्षों में, हमारे पास दक्षिण पूर्व एशिया की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त गेंहू नहीं था। लेकिन इस बार कहानी अलग है और इसके तीन कारण हैं पहला ऑस्ट्रेलिया में उम्मीद से अधिक फसल उत्पादन, दूसरा दुनिया के अन्य हिस्सों में इसका खराब उत्पादन और तीसरा चीन का ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापार युद्ध के कारण गेहूं की अधिकता।“
हालांकि, बीजिंग ने टैरिफ युद्ध में ऑस्ट्रेलियाई गेहूं पूरी तरह निशाना नहीं लगाया था लेकिन आयात में कमी जरूर कर दी थी। चीन ने पिछले साल नवंबर में सिर्फ 888 टन ऑस्ट्रेलियाई गेहूं खरीदा, जो 2011 के बाद से सबसे कम है।
हालांकि, चीन को यह एहसास नहीं हुआ कि उसके अनुचित व्यापार युद्ध के कारण ऑस्ट्रेलियाई गेहूं उत्पादकों को नए बाजार खोजने के लिए विवश कर देगा। अब ऑस्ट्रेलियाई गेंहू उत्पादक दक्षिण पूर्व एशिया के अलावा, ऑस्ट्रेलियाई गेहूं को उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया जैसे नए बाजार में भी अवसर ढूँढने का मौका नहीं छोड़ेंगे, जो परंपरागत रूप से रूसी और यूरोपीय से आने वाले सप्लाइ पर निर्भर है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि दक्षिण पूर्व एशिया में ऑस्ट्रेलियाई गेहूं की सप्लाई से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सबसे अधिक चिंतित होंगे। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के चीन के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं, फिर भी चीन-आसियान संबंधों में अभी उतनी मजबूती नहीं है। ASEAN अभी वियतनाम द्वारा नेतृत्व किया जा रहा है जो चीन का धूर-विरोधी है। ऐसे में चीन के लिए राहें आसान नहीं होने वाली हैं।
इसके अलावा, चीन मेकांग बेसिन पर अपने रणनीतिक स्थिति का फायदा उठाते हुए मेकांग नदी के पानी पर बांध बना कर वियतनाम और थाईलैंड जैसे लोअर मेकांग बेसिन (एलएमबी) देशों को सूखा रहा है जिससे इन देशों में भुखमरी की स्थिति पैदा हो चुकी है।
इसी पर अब ऑस्ट्रेलिया इन दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी गेहूं की आपूर्ति कर भूखमरी से भी लड़ने में मदद करेगा। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ व्यापार युद्ध के कारण वियतनाम और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र ऑस्ट्रेलिया के और करीब आ रहे हैं जो चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं है।