ऑस्ट्रेलिया सरकार Google, फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियों के लिए एक नया नियम लेकर आई है जिसे लेकर गूगल और ऑस्ट्रेलिया सरकार में तनाव बढ़ गया है।
नए नियम के मुताबिक इन कंपनियों को ऐसे news आउटलेट्स को रॉयल्टी का धन देना होगा, जिनको Google, फेसबुक के उपभोक्ता पढ़ते हैं। यदि किसी एक news रिपोर्ट को गूगल पर पढ़ा जाता है तो गूगल को इससे होने वाले लाभ के संबद्ध न्यूज़ पोर्टल को भी हिस्सा देना होगा।
किंतु गूगल ने इसके विरोध में अपनी सुविधाओं को ऑस्ट्रेलिया में बन्द करने की धमकी दी है। Google ने कहा है कि वह ऑस्ट्रेलिया में अपना सर्च इंजन बंद कर देगा। गूगल को इस बात का भय है कि ऑस्ट्रेलिया द्वारा उठाया गया कदम, अन्य देशों में भी बिग टेक के साथ ऐसा व्यवहार करने के लिए वहां की सरकारों को प्रेरित कर सकता है।
स्कॉट मॉरिसन वैसे भी अपने सख्त रुख के लिए जाने जाते हैं, ऐसे में उनके द्वारा यदि यह उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है, कि गूगल जैसी कंपनियों को भी सरकारी नियमों के अनुसार चलाया जाना चाहिए तो यह Google के लिए ही नहीं अन्य सभी बड़ी टेक कंपनियों के लिए झटका होगा। वैसे भी इस वक्त दुनियाभर में इस बात पर विमर्श हो रहा है।
हाल ही में पोलैंड ने भी साफ किया था कि इन कंपनियों को संप्रभु संस्थानों जैसा व्यवहार नहीं करने दिया जाएगा। ये सभी पोलैंड की संसद द्वारा बनाए नियमों के तहत संचालित होंगे। पोलैंड ने यह फैसला फेसबुक, ट्विटर आदि पूर्व द्वारा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एकाउंट हटाने के बाद किया था।
यह पहला प्रकरण नहीं है जब गूगल पर कन्टेन्ट लेखकों को रॉयल्टी का धन देने के लिए दबाव बनाया गया है। फ्रांस में हाल ही में गूगल और न्यूज़ पोर्टल के बीच एक समझौता किया गया। ऑस्ट्रेलिया में Google को अच्छा खासा लाभ भी मिलता है। 2019 में गूगल को ऑस्ट्रेलिया से 3।7 बिलियन डॉलर का कुल रेवेन्यू मिला था। ऐसे में प्रश्न है कि क्या गूगल वाकई इतने बड़े लाभ को छोड़ेगा या वह केवल ऑस्ट्रेलियाई सरकार पर दबाव बनाना चाहता है।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष अपने एक ब्लॉग में Google ने बताया था कि उसे न्यूज़ से 7।7 मिलियन डॉलर का लाभ मिलता है। इसमें से वास्तविक कन्टेन्ट लेखकों को एक रुपये का लाभ नहीं दिया गया। यही कारण है कि सरकार ने यह कदम उठाया है। इसके अतिरिक्त सरकार का तर्क यह भी है कि यदि गूगल मीडिया आउटलेट्स को उनका हिस्सा देता है तो उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी और उन्हें अधिक स्वायत्तता मिलेगी जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
महत्वपूर्ण यह भी है कि महामारी के दौरान Google को अत्यधिक लाभ मिला है जबकि स्थानीय मीडिया आउटलेट्स आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं। इसके बाद भी गूगल उन्हें, उनकी मेहनत का हिस्सा देने में आनाकानी कर रहा है। इसके पूर्व फेसबुक ने भी ऐसी ही धमकी दी थी।
बिग टेक कंपनियों का यह रवैया लोकतांत्रिक विश्व के लिए चिंताजनक है। ये कंपनियां अपने को जैसे संचालित कर रही हैं वह बताता है कि ये किसी देश की संप्रभुता में विश्वास नहीं करती, वहाँ की सर्वोच्च शक्ति संसद की सत्ता को स्वीकार नहीं करती, उस देश के संविधान एवं नियम-कानूनों से इतर, अपने नियम कानून के अनुसार ही चलना चाहती हैं।
हालांकि, Google ने ऑस्ट्रेलिया की मॉरिसन सरकार को चुनैती देकर मुसीबत मोल ली है, क्योंकि मॉरिसन अपनी दृढ़ता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सफलतापूर्वक चीन के प्रतिरोध का सामना किया है। उन्होंने अपने बयान में कहा भी है कि ऑस्ट्रेलियाई संसद इन धमकिययों से नहीं डरती। साथ ही इस समय बिग टेक के खिलाफ दुनिया भर में माहौल ठीक नहीं है। ऐसे में यदि Google संसद द्वारा पारित कानून के विरुद्ध ऐसे मोर्चा खोलने की गलती करेगा, तो इसका नतीजा यही निकलेगा की अन्य देश भी गूगल पर ऐसी ही कार्रवाई करने को प्रेरित होंगे।