तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके से अलग हुए एम.के. अलागिरी अब डीएमके प्रमुख स्टालिन के लिए मुसीबत बन गए हैं। अलागिरी ने साफ कह दिया है कि वो किसी भी कीमत पर स्टालिन को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। खास बात ये है कि अलागिरी स्टालिन के ही भाई हैं और उन्होंने ही ये स्टालिन के खिलाफ बिगुल फूंका है। वो लगातार डीएमके के भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे हैं। अलागिरी ने स्टालिन को सीएम न बनने देने की बात कर एक तरह से बीजेपी और एआईएडीएमके के लिए चुनावी राह सहज कर दी है।
तमिलनाडु में इस वर्ष अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर एक तरफ एनडीए अपने सकारात्मक गठबंधन के साथ आगे बढ़ रहा है तो डीएमके के लिए अलागिरी ही मुसीबत बन गए हैं। एम करुणानिधि के बेटे एम.के. अलागिरी ने कहा कि वो विधानसभा चुनाव से पहले हर दिन स्टालिन को लेकर एक खुलासा करेंगे। उन्होंने कहा कि वह जल्द ही अपने अगले कदम की घोषणा करेंगे और उनके समर्थकों को उनका फैसला स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने पोस्टरों और स्टालिन के मुख्यमंत्री बनने को लेकर कहा, “यहां के पोस्टरों में हमेशा आपको भविष्य का सीएम बताया जा रहा है लेकिन ऐसा होने नहीं वाला है। मेरे समर्थक कभी आपको सीएम नहीं बनने देंगे।”
अलागिरी अपने खिलाफ पार्टी विरोधी एक्शन को लेकर सबसे ज्यादा खफा है जिसके चलते वो स्टालिन पर धोखेबाजी का आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे आज तक नहीं पता कि मैंने ऐसा क्या गलत किया था जो डीएमके से मुझे निकाला गया। स्टालिन ने मुझे धोखा दिया।” उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि मेरे साथ धोखा क्यों किया गया। मैं सिर्फ पार्टी का कैडर बने रहना चाहता था और कभी किसी पद के लिए लालायित नहीं रहा। हमने मदुरै को डीएमके के गढ़ में बदला जो कभी एमजीआर का गढ़ हुआ करता था।”
स्टालिन को लेकर केवल अलागिरी ही नहीं, बल्कि तमिलनाडु की जनता और अलागिरी के समर्थक भी नाराज है। जिसके चलते पार्टी में एक बड़े अंतर्कलह ही स्थिति बन गई है। ऐसे में एक बड़ा कार्यकर्ता वर्ग डीएमके में भी है जो असमंजस की स्थिति में है। जब कार्यकर्ताओं में ही असमंजस की स्थिति में होगी तो आम जनता की तो बात ही अलग होगी और इससे पार्टी का वोट बैंक बुरी तरह बिखर जाएगा।
ऐसे में तमिलनाडु में जनता का बड़ा वोट बैंक बंटेगा, इसको लेकर ये भी कहा जा रहा है कि यदि एक-दो प्रतिशत भी डीएमके वोटर्स का वोट बंट गया तो एनडीए को सीधा फायदा होगा। कांग्रेस समेत पूरे वाम मोर्चे में भी एक बिखराव की स्थिति है, जबकि एनडीए पहले ही बीजेपी और एआईएडीएमके के साथ मजबूत स्थिति में चुनाव लड़ रही है। ऐसे में दोनों भाइयों की इस कलह का लाभ उठाकर बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सत्ता में आ सकती है, और स्टालिन को सीएम न बनाने की अलागिरी की शपथ भी सार्थक साबित हो जाएगी।