हाल ही में ISRO के एक वैज्ञानिक ने अपने बयान से तहलका मचा दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा उन्हें तीन वर्ष पहले जहर दिया गया था, जिसके कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, और ये कुछ ताकतों के इशारे पर इसरो को कमजोर करने का एक प्रयास था।
WION की रिपोर्ट के अनुसार, ISRO के वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने एक विस्तृत फ़ेसबुक पोस्ट में बताया कि कैसे उनपर हमला किया गया था। उनके पोस्ट के अनुसार, “मुझे एक प्रोमोशनल इंटरव्यू के दौरान जहर युक्त भोजन दिया गया था। जुलाई 2017 में गृह मंत्रालय से संबंधित कुछ सुरक्षाकर्मियों ने मुझे आर्सेनिक जहर से ग्रसित बताया, और डॉक्टरों को मेरे उचित इलाज के लिए सभी प्रकार की सहायता भी दी। मुझे इस जहर के कारण सांस लेने में तकलीफ, अजीबोगरीब त्वचा संबंधित बीमारियाँ, और अन्य प्रकार के फंगल इन्फेक्शन भी हुए”
परंतु तपन मिश्रा वहीं पे नहीं रुके। उन्होंने आगे बताया, “देखिए, कोई न कोई तो ऐसा है जो ISRO को नुकसान पहुंचाना चाहता है। इसका एक ही उपाय है – अपराधियों को ढूंढ के सख्त से सख्त सजा दो। सभी 2000 वैज्ञानिकों को सुरक्षा देना इतना भी सरल नहीं। मैंने ये सब फ़ेसबुक पर इसलिए पोस्ट किया है, क्योंकि मुझे इसके पीछे की स्पष्ट वजह नहीं पता, पर मेरा अनुमान है कि यह किसी आवश्यक तकनीक पर काम करने की वजह से हुआ है, और कोई तो है जो नहीं चाहता कि इसरो अपने भविष्यवर्ती प्रोजेक्ट्स में सफल हो।”
अब ISRO के वैज्ञानिकों की जासूसी करना व उनकी रहस्यमयी तरीके से मृत्यु कोई नई बात नहीं है। जिस प्रकार से इसरो दिन प्रतिदिन अनेक चुनौतियों को पार कर नई ऊँचाइयाँ छू रहा है, उसके वैज्ञानिक उतना ही ज्यादा भारत विरोधी तत्वों के निशाने पर भी आ रहे हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार 15 साल के अंतराल में करीब 680 से ज्यादा ISRO के वैज्ञानिक संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए थे। ऐसे में तपन मिश्रा के आरोप हल्के में कतई नहीं लिए जा सकते
उन्होंने आगे बताया कि, “हम सभी ने 1971 में विक्रम साराभाई की संदेहास्पद मृत्यु के बारे में पढ़ा है। 1999 में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर की कमान संभाल रहे श्री श्रीनिवासन की आकस्मिक मृत्यु के बारे में भी पता है। 1994 में श्री नम्बी नारायणन का क्या हश्र हुआ था, इससे हम भली भांति परिचित है। लेकिन मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे साथ भी कुछ ऐसा होगा”
बता दें कि ISRO के एक अन्य वैज्ञानिक शंकरलिंगम नम्बी नारायणन को जासूसी के झूठे आरोपों में तब हिरासत में लिया गया था, जब भारत अपने दम पर क्रायोजेनिक स्पेस इंजन तकनीक को विकसित कर रहा था, जिसमें नम्बी नारायणन का बहुत अहम रोल था। उनकी गिरफ़्तारी से न सिर्फ भारत की स्पेस पवार को तगड़ा झटका लगा, बल्कि स्पेस क्षेत्र में भारत की प्रगति भी 20 साल पीछे चली गई। ऐसे में तपन मिश्रा के बयानों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
आखिर ISRO के वैज्ञानिकों को कौन निशाने पर ले रहा है, इसकी जांच बहुत आवश्यक है, अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि शत्रुओं की चाल कामयाब हो और 1994 की भांति भारत के स्पेस प्रोग्राम को फिर ऐसा झटका लगे, जिससे उबरने में कई वर्ष लग जाए।