बंदर के हाथ में उस्तरा देने का क्या परिणाम होता है, ये आप आंध्र प्रदेश के उदाहरण से समझ सकते हैं। मुफ्तखोरी की सनक में आंध्र प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री ने आंध्र प्रदेश को लगभग पौने चार लाख करोड़ रुपये के कर्ज का उपहार दिया है, जो धीरे-धीरे आंध्र प्रदेश को दिवालियापन की ओर घसीट रहा है।
जगन मोहन रेड्डी को आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बने एक से अधिक वर्ष हो चुका है, लेकिन समाजवाद के नशे में चूर इस व्यक्ति के बेतुके निर्णयों के कारण आंध्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था की बधिया बैठ चुकी है। CAG रिपोर्ट के अनुसार 48,000 करोड़ रुपये के वार्षिक टारगेट के मुकाबले आंध्र सरकार ने 73 हजार करोड़ रुपये का उधार चढ़ाया है। जिस प्रकार से उधारी ली गई है, 2020-21 के सत्र के अंत तक जगन सरकार की कुल उधारी पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी।
सरकार के अनुसार राजस्व डेफ़िसिट करीब 18000 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी, लेकिन नवंबर में ही यह आंकड़ा 54,000 करोड़ के पार चला गया है। एक आईएएस अफसर के अनुसार, “यह ठीक वैसा ही है जैसा कि लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादेमी में ट्रेनिंग के दौरान हमें एक तेलुगु फिल्म के माध्यम से दिखाई गई थी। यह कुछ अप्पू चेसी की तरह है, यानि कर्ज पर जीवनयापन करना”।
लेकिन इतनी उधारी का दुष्परिणाम क्या होगा? जिस प्रकार से जगन सरकार ने उधारी ली है, उससे अब राज्य के निवासियों को आने वाले वर्षों में काफी ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान उधारी पर वसूल जाने वाला ब्याज अगले वर्ष से 35,000 करोड़ रुपये होगा। रिपोर्ट्स के अनुसार विभाजन से पहले आंध्र प्रदेश का कुल कर्ज मात्र 97000 करोड़ रुपये था, लेकिन छह वर्ष में ये आंकड़ा पौने चार लाख करोड़ रुपये के पार पहुँच चुका है, जिसमें से लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये की उधारी केवल 19 महीनों में ली गई है, यानि जबसे जगन सरकार सत्ता में है तभी से।
परंतु ये पैसा जाता कहाँ है? अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में, और कहाँ? अपने वार्षिक बजट में आंध्र सरकार ने निर्णय किया कि इमामों को दिए जाने वाले वेतन में इजाफा होगा और इतना ही इजाफा ईसाई पादरियों को भी मिलेगा।
इसके अलावा अल्पसंख्यक विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद इलयास रिजवी ने कहा कि यरूशलेम की यात्रा पे जाने वाले ईसाइयों को काफी मेहनताना मिलेगा, और येरूशलम के साथ अन्य ईसाई धर्मस्थलों की यात्रा हेतु अतिरिक्त मेहनताना मिलेगा। इसके अलावा आंध्र सरकार ने 5 उपमुख्यमंत्री, 3 राजधानी जैसे बेतुके निर्णय भी लिए हैं। लेकिन इन सब का हिसाब चुकता करने के लिए लिया गया बेहिसाब उधार अब जगन सरकार के ही गले का फांस बनता नजर आ रहा है।