अमेरिका में अभी Joe Biden को सत्ता हाथ लगी भी नहीं है कि इससे पहले ही इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने West Bank को लेकर बड़ा कदम चला है। उन्होंने ऐलान किया है कि वे कथित तौर पर कब्ज़ाये गए West Bank में 800 नए घरों का निर्माण करेंगे। ऐसे में माना जा रहा है कि उनका यह कदम इज़रायल और Joe Biden प्रशासन के बीच तनाव पैदा कर सकता है। बाइडन पहल से ही वेस्ट बैंक में इज़रायल की बस्तियों के विस्तार का विरोध करते रहे हैं। उनका पहले भी इस मुद्दे पर इज़रायल के साथ टकराव हो चुका है।
अमेरिका में Democrats पर शुरू से ही Arab lobby या कहिए फिलिस्तीन समर्थक लॉबी का प्रभाव रहा है। ऐसे में पूर्व में Democrats ज़ोर शोर से फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज़ उठाते थे। हालांकि, पिछले चार सालों में ट्रम्प प्रशासन द्वारा उठाए गए कई कदमों, जिनमें Abraham Accords पक्के कराना सबसे प्रमुख है, उसने अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक लॉबी के प्रभाव को जड़ से ही खत्म कर दिया है। यही कारण है कि अब Joe Biden चाहकर भी इज़रायल विरोधी और फिलिस्तीन समर्थक रुख नहीं दिखा पाएंगे।
इसके साथ ही नए अमेरिकी प्रशासन में उपराष्ट्रपति बनने वाली कमला हैरिस पर इज़रायल-समर्थक लॉबी का खासा प्रभाव माना जाता है। चुनावी प्रचार के दौरान कमला के पति Doug Emhoff ने यहूदी मेयर्स के साथ मिलकर चुनावी रणनीति को भी धार दी थी। वैसे भी Abraham Accords के बाद तो अमेरिका में पहले से ही मजबूत इज़रायल-समर्थक लॉबी और ज़्यादा प्रभावशाली हो गयी है। ऐसे में बाइडन के सत्ता में आने के बाद अधिक से अधिक वे इज़रायल के खिलाफ बयानबाज़ी ज़रूर कर सकते हैं, लेकिन उनके लिए इज़रायल के विरोध में कोई बड़ा कदम उठाना संभव नहीं हो पाएगा!
जब UAE ने इज़रायल के साथ Abraham Accords पर हस्ताक्षर किए थे, तो इज़रायल की ओर से कहा गया था कि वे West Bank पर अपने कब्जे को और नहीं बढ़ाएँगे! हालांकि, बाद में नेतन्याहू ने यह खुद स्पष्ट किया था कि West Bank को पूर्णतः अपने अधिकार में लेने के विचार पर अभी कुछ समय के लिए ही रोक लगी है और भविष्य में इसपर दोबारा विचार किया जाएगा! ऐसे में अब अपने हालिया कदम से नेतन्याहू ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अब West Bank को लेकर फिलस्तीन को “नैतिक जीत” हासिल करने का मौका भी नहीं देना चाहते!
बता दें कि इज़रायल ने वर्ष 1967 की जंग में पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम को अपने अधिकार में लिया था जबकि फिलिस्तीनी इसे वापस हथियाना चाहते हैं। पिछले करीब 5 दशकों में पश्चिमी तट पर फैली बस्तियों में करीब पांच लाख इजराइली लोग अपना घर बना चुके हैं, जिसे फिलिस्तीनी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और शांति में बाधा के तौर पर देखते हैं।
नेतन्याहू का यह मास्टरस्ट्रोक उन्हें आगामी चुनावों में भी बड़ा फायदा पहुंचा सकता है। इस घोषणा से मार्च में होने वाले चुनावों से पहले नेतन्याहू के दक्षिण-पंथी रुख को मजबूती मिलेगी। ऐसे में वे पिछले दो सालों से राजनीतिक संकट का सामना कर रहे इजरायल को इस अस्थिरता से बाहर भी निकाल सकते हैं। नेतन्याहू ने अपने इस कदम से बाइडन प्रशासन को यह भी संदेश भेजा है कि ईरान को लेकर वह अगर सख्त नीति नहीं अपनाता है, तो वे भविष्य में भी अपने इन कदमों को और बल दे सकते हैं। ऐसे में अब गेंद बाइडन प्रशासन के पाले में है कि वे ऑफिस में आने के बाद इजरायल और ईरान को लेकर कैसी नीति अपनाते हैं!