21 जनवरी को काफी जद्दोजहद के बाद जो बाइडन ने अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। इससे न सिर्फ उदारवादियों में हर्ष की लहर दौड़ गई, अपितु पाकिस्तान भी खुशी से फूले नहीं समा पा रहे थे। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ा गया, और ऐसे में जब एक ऐसा नेता राष्ट्रपति की शपथ ले, जिसके समर्थक और कई अहम नेता पाकिस्तान समर्थक हैं, तो पाकिस्तान का उम्मीदें पालना स्वाभाविक है, परंतु न तो यह 1990 का दशक है और न ही अब पाकिस्तान की अहमियत पहले जैसी रही है।
वो कैसे? दरअसल, पाकिस्तान बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से फूले नहीं समा रहा है। उनका मानना है कि अब संबंध पहले जैसे हो सकते हैं, और शायद क्लिंटन प्रशासन जितने मजबूत भी होंगे। पाकिस्तानी अखबार इन्हीं खबरों से ओतप्रोत हैं, और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि कोई भी अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान को नजरअंदाज ही नहीं कर सकता।
लेकिन पाकिस्तान ये भूल रहा है कि यह 1990 का दशक नहीं है, जब पाकिस्तान की क्षेत्रीय राजनीति में अहमियत हुआ करती थी, और यदि जो बाइडन चाहे भी, तो भी वे बिल क्लिंटन के स्तर पर पाकिस्तान के कुकृत्यों को नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण है, जिनपर प्रकाश डालना अति आवश्यक है।
सर्वप्रथम कारण है बदले वैश्विक समीकरण। अब भारत पहले जैसा कमजोर नहीं है, और न ही वह अंतर्राष्ट्रीय दबाव में झुकने वाला है। इसके संकेत तो तभी मिल गए थे जब 2016 में अमेरिकी चुनाव नजदीक थे, और जो बाइडन ओबामा प्रशासन में उपराष्ट्रपति थे, उसके बावजूद उरी के आतंकी हमले का प्रतिशोध लेने के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय सेना को खुली छूट दी, और सेना के Para Special Forces ने LOC पार कर सर्जिकल स्ट्राइक्स में आतंकियों के लॉन्च पैड ध्वस्त किये। इसके अलावा अब भारत के पास विश्व के लगभग हर बड़ी शक्ति का समर्थन है। ऐसे में यदि अमेरिका चाहकर भी कोई भारत विरोधी कदम उठाना चाहे, तो भारत की कूटनीतिक शक्ति ही उसे ध्वस्त करने के लिए काफी है।
दूसरा कारण है स्वयं जो बाइडन और उनका प्रोफ़ाइल। अगर पाकिस्तानियों की याददाश्त जरा भी मजबूत हो, तो उन्हें ध्यान में रखना चाहिए कि ये वही जो बाइडन हैं, जो उस समय उपराष्ट्रपति थे, जब अमेरिकी सेना ने पाकिस्तान के Abbottabad में धावा बोलते हुए दुर्दांत आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। ऐसे में यदि पाकिस्तान ये सोच रहा है कि बाइडन सरकार कहीं से भी उसकी सहायता करेगी, तो वह बहुत बड़े भ्रम में जी रहा है। बाइडन भले ही चीन के प्रति नरम रुख अपना रहा हो, लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि यही काम वह पाकिस्तान के लिए भी खुलेआम करेगा।
इसके पीछे सबसे प्रमुख कारण तीसरा कारण है – बतौर विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की नियुक्ति। वे न सिर्फ भारत समर्थक है, बल्कि उसे अमेरिका के लिए एक अहम साझेदार मानते हैं। उनका मानना है कि यदि इस समय चीन की हेकड़ी से निपटने में कोई सक्षम है, तो वह केवल भारत ही है। वे भारत के आतंक रोधी अभियानों का भी पुरजोर समर्थन करते हैं, ऐसे में पाकिस्तान के साथ पहले जैसे संबंध बहाल करना तो दूर, अमेरिका का पाकिस्तान की किसी भी प्रकार से सहायता करना भी फिलहाल के लिए हास्यास्पद ही प्रतीत होता है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान ने बाइडन के आगमन से काफी ख्वाब सँजोये जरूर हैं, मानो उनके राष्ट्रपति बनने से पाकिस्तान का उद्धार तय है। लेकिन वे ये भूल रहे हैं कि समय बदलते देर नहीं लगती, और जब कभी वामपंथियों के प्रिय रहे इम्मानुएल मैक्रों आतंकवाद के विरुद्ध डटकर सामने आ गए, तो फिर ये तो जो बाइडन ही हैं।