कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पहले पार्टी में अप्रत्यक्ष रूप से काम करती थीं लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में उन्हें पार्टी का पूर्वी यूपी का प्रभार सौंपा गया था। नतीजा ये कि अपने भाई राहुल की तरह ही उनकी लॉन्चिंग भी फुस्स हो गई। पिछले लगभग दो सालों में प्रियंका जब-जब यूपी गईं, तब तक वहां केवल और केवल अराजकता ही मचाई गई। अब वो अपनी उसी अराजकता को कैलेंडर के माध्यम से उत्तर प्रदेश के घर-घर में पहुंचाने वाली हैं जिसे नाम तो उनकी उपलब्धि का दिया जा रहा है, लेकिन असल में उनकी उपलब्धियां शून्य ही हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने की कोशिशों में जुटी कांग्रेस पार्टी और प्रियंका गांधी वाड्रा अब बीजेपी की नीति पर चलने वाली हैं। कांग्रेस पार्टी ने तय किया है कि वो अब उत्तर प्रदेश के सभी गांवों और उनके घरों तक साल 2021 का कैलेंडर भिजवाएगी, जिसमें प्रियंका गांधी की अलग-अलग कथित संघर्षों की 12 तस्वीरें हैं। इसके लिए 10 लाख कैलेंडर जारी किए गए हैं और कार्यकर्ताओं को उन्हें पहुंचाने को कहा गया है। कांग्रेस का कहना है कि इन कैलेंडरों में प्रियंका गांधी की एक साल की सारी उपलब्धियां दिखेंगी। खबरों के मुताबिक प्रदेश में न्याय पंचायत के अध्यक्षों और ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के गठन का काम बहुत तेजी से चल रहा है। कांग्रेस के पदाधिकारी 3 जनवरी से अपने प्रभार वाले जिलों में प्रवास पर भेज दिया गया है।
इन कैलेंडरों में प्रियंका गांधी वाड्रा की वो तस्वीरें हैं जिसमें वो ज्यादातर किसानों के साथ दिख रही हैं और कथित रूप से उनकी मांगों और हितों के लिए आंदोलन कर रही हैं। खास बात ये है कि इसमें ये भी है कि सोनिया ने सोनभद्र और हाथरस में पीड़ितों की आवाज उठाई थी। प्रियंका गांधी ने पिछले 2 सालों में यूपी में अराजकता ही मचाई है। इन्हीं को उपलब्धि बताकर अब कांग्रेस द्वारा पेश किया जा रहा है, जो कि काफी हद तक सही भी है क्योंकि प्रियंका के पास बताने को कुछ खास है भी नहीं।
प्रियंका गांधी को 2019 लोकसभा चुनाव के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, परंतु स्थिति इतनी भयावह हो गई कि प्रियंका अपने ही भाई और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सीट तक नहीं बचा सकीं। उनकी एक अचीवमेंट केवल ये थी कि हार के बावजूद उन्हें पूर्वी की जगह अब पूरे ही उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंप दिया गया है। प्रियंका का कहना है कि वो अब 2022 की विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी कर रही हैं, उसी तैयारी के लिए अब ये कैलेंडर रिलीज किए गए हैं, लेकिन इन कैलेंडरों से होगा क्या…? शायद कुछ भी नहीं।
कांग्रेस की कैलेंडर वाली ये नीति बिल्कुल बीजेपी की तरह ही है, और अब अपने विरोधी को हराने के लिए कांग्रेस उनकी नकल करने पर प्रियंका गांधी भी उतारू हो गई हैं। वैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में 2014 के बीजेपी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपने साथ मिलाकर कांग्रेस ने सपा के साथ कुछ ऐसे ही रणनीतियां तैयार की थीं जिसमें चुनावी हार का रिकॉर्ड बना चुके उनके भाई राहुल गांधी और अपने ही पिता से साईकिल का चुनाव चिन्ह चुराने वाले अखिलेश यादव को दो यूपी के अच्छे लड़के बनाकर पेश किया गया था, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात।
अपने भाई की ही भट्टापारसौल जैसी नौटंकियों को देखकर अब प्रियंका गांधी भी उसी राह पर चल पड़ी हैं, वो ज्यादा बोलती नहीं हैं, और जब वो बोलती हैं तो वो भी अपने भाई की तरह ही बिना किसी डेटा या तथ्य के कुछ भी बोल के निकल जाती हैं, जिससे बीजेपी को फायदा होता है। इसलिए अब ये कहा जाने लगा है प्रियंका दीदी भी राहुल की भांति चुनाव हारती जाएंगी, लेकिन पार्टी में उनका कद बढ़ता जाएगा, और वो उपलब्धियों की नौटंकियों को कैलेंडर, पोस्टर और पर्चों के जरिए सामने लाती रहेंगी।