संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ आए देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले को लेकर एक बड़ा वर्ग मोदी सरकार की आलोचना कर रहा है। साथ ही किसान आंदोलन को सकारात्मक बताया जा रहा है। इसमें सबसे अजीबोगरीब बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है, कि अब ये कानून अगले आदेश तक प्रभावी नहीं है; तब भी ये अराजकतावादी किसान अपने आंदोलन को खत्म करने के लिए राजी नहीं हैं। इसके बाद ये कहा जाने लगा है कि ये किसान कृषि कानूनों के मुद्दे पर नहीं आए थे, इनकी असल राजनीति केवल मोदी विरोध की थी, जिसका सुप्रीम कोर्ट ने पर्दाफाश कर दिया है।
किसान आन्दोलन को लेकर चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के प्रति नरमी दिखाई है और केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के प्रभावी होने पर रोक लगा दी है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया है जिसमें जीतेंद्र सिंह मान (बीकेयू के अध्यक्ष), डॉ. प्रमोद कुमार जोशी (अंतरराष्ट्रीय नीति प्रमुख), अशोक गुलाटी (कृषि अर्थशास्त्री) और अनिल धनवत (शिवकेरी संगठन, महाराष्ट्र) शामिल हैं। ये सभी इन कानूनों के एक एक बिंदु का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे, जो कि कानूनों की वैधानिकता तय करेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की मांगों को माना और उनके लिए सकारात्मक फैसला दिया इसके बावजूद ये किसान सुप्रीम कोर्ट की बातों को नकारने से तनिक भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आंदोलन जारी रखने और आक्रमकता से कुछ सख्त बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा, “कमेटी का मतलब है कि मामला ठंडे बस्ते में चला गया। हम कमेटी के सदस्यों के सामने बिल्कुल भी पेश नहीं होंगे। अगर सदस्यों के नाम बदल देंगे, तब भी कमेटी से नहीं मिलेंगे।”
किसान नेताओं ने अपने अड़े रहने के सबूत एक बार फिर दिए हैं और कहा है कि वो लोग केवल कृषि कानूनों का खात्मा चाहते हैं। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का हम सम्मान करते हैं, लेकिन जो आदेश दिया गया है, उससे हमारे आंदोलन को ठंडा करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार की मंशा है कि वे ऐसा कर हमें बॉर्डर से हटा देंगे, लेकिन हम साफ कर देते हैं कि जब तक कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाता है, तब तक हम यहां से नहीं हिलेंगे।”
कृषि कानूनों के नाम आंदोलन कर रहे किसानों द्वारा एक बात कही गई थी कि वो लोग 4 महीने का राशन लेकर आए हैं; जब तक ये तीनों कानून खत्म नहीं हो जाते हैं तब तक वो यहीं बैठेंगे। साफ था कि वो एक ही मांग पर अड़े हैं जिसे सरकार द्वारा नामुमकिन करार दिया गया है। ऐसे में जब कोर्ट ने इस कानून के प्रभावी होने पर रोक लगा दी है उसके बावजूद इन लोगों द्वारा इस अराजक आंदोलन की आग में घी डालना बताता है कि ये लोग कृषि कानूनों से ज्यादा सरकार का विरोध करने में दिलचस्पी ले रहे हैं।
तथाकथित किसानों के इस आंदोलन के प्रति सकारात्मकता दिखाकर असल में सुप्रीम कोर्ट ने इन किसानों की छवि को अधिक मैला कर दिया है और इनकी साजिश का पर्दाफाश किया है, क्योंकि कृषि कानून तो बहाना है, असल में मोदी सरकार निशाना है, और इसीलिए ये लोग सुप्रीम कोर्ट की बातों को भी नकार सकता है।