चीन जब भी कोई नई योजना लेकर आता है वैश्विक स्तर पर लोगों की चिंता बढ़ जाती है। पहले जिनपिंग प्रशासन ने अपनी मूर्खता के जरिये चीन सहित दुनिया भर को कोरोना बांटा और अब वह वैक्सीन बांटने के लिए उत्सुक है। लेकिन समस्या यह है कि वैक्सीन ने अभी अपने क्लीनिकल ट्रायल पूरे नहीं किये हैं और जो ट्रायल हुए हैं उनमें भी उसका प्रदर्शन बहुत संतोषजनक नहीं रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अपने कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत, जो आम तारीख के हिसाब से फरवरी में पड़ेगा, उसके पूर्व करीब 50 मिलियन लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने का निर्णय किया है। इसके लिए सरकारी नियंत्रण वाली कंपनी sinopharm की वैक्सीन का चयन किया गया है। लेकिन इस वैक्सीन को conditional approval अर्थात सशर्त अनुमति मिली है, जिसका मतलब वैक्सीन का रिसर्च फेज अभी पूरा नहीं हुआ है।
साथ ही कंपनी को यह निर्देश भी दिया गया है कि वह वैक्सीन लगने के बाद उससे सम्बंधित सभी डेटा सरकार को उपलब्ध करवाएगी। प्रति व्यक्ति दो डोज के हिसाब से कंपनी 10 करोड़ डोज, 5 करोड़ आम लोगों को देगी। चीन में National Medical Products Administration के उपायुक्त Chen Shifei ने बताया कंपनी इन सभी पर वैक्सीन के असर की निगरानी करेगी और ” वैक्सीन के लिए लगातार निर्देश जारी करती रहेगी, (संबंधित) एजेंसी को लगातार रिपोर्ट देती रहेगी”
इसका यह मतलब हुआ कि चीन अभी ट्रायल फेज की वैक्सीन को ही हड़बड़ी में बाजार में उतार रहा है, और 5 करोड़ चीनी नागरिक लैब रैट की तरह इस वैक्सीन के परीक्षण के लिए चुने जाने हैं। जहां बाकी देश वैक्सीन की कार्यक्षमता पर विश्वास होने के बाद इसे आम लोगों पर इस्तेमाल की अनुमति दे रहे हैं, चीन ने पूरी शोध के पहले ही अनुमति दे दी है। महत्वपूर्ण यह है कि AstraZeneca की Covishield, जिसे भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति मिली है वह 90%, Pfizer/BioNTech 95% और रूस की Sputnik V 91.4% प्रभावी है, चीन में इस्तेमाल होने जा रही Sinopharm की वैक्सीन मात्र 79.3 प्रतिशत ही प्रभावी है। इस आंकड़े पर भी अभी दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि अभी इस संदर्भ में पर्याप्त डेटा वैक्सीन निर्माताओं के पास नहीं है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने पहले कोरोना के फैलाव की खबर को दबाने की कोशिश की, जिससे यह महामारी शुरुआती समय में ही रोकी नहीं जा सकी। इसके बाद जिनपिंग ने अमानवीय तरीके अपनाकर वुहान वायरस के प्रचार को चीन में रोका, जिसमें लाखों लोग दमन का शिकार हुए, फिर CCP ने मौत के आंकड़े छुपाए। अब वह अपने ही लोगों को प्रयोगशाला के चूहे की तरह इस्तेमाल करने को उतारू है, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह दुनिया को दिखा सके कि कम्युनिस्ट चीन भी वैक्सीन उत्पादन में किसी से पीछे नहीं है।
खैर जिनपिंग और CCP की सनक चीनियों को तो भारी पड़ ही सकती है, लेकिन अब खतरे की तलवार उन देशों पर भी है जो चीन से वैक्सीन लेने के लिए समझौता कर चुके हैं या करने वाले हैं। चीन के कई सदाबहार मित्र या कहें पिछलग्गू देश जैसे पाकिस्तान, ईरान, तुर्की आदि ने वैक्सीन के लिए बीजिंग से आशा लगाई है। एक तरह से उनकी आशा सही भी है क्योंकि बड़े पैमाने पर वैक्सीन के निर्माण के लिए चीन के पास सभी आवश्यक संसाधन मौजूद भी हैं, सिवाए किसी विश्वसनीय वैक्सीन के।