चीन ने ऑस्ट्रेलिया के सामानों के आयात पर जब प्रतिबंध लगाया था तो सोचा था कि ऑस्ट्रेलिया उसके दबाव में, अपनी विदेश नीति को कम्युनिस्ट चीन के लिए बदलेगा, लेकिन अब इसी प्रतिबंध ने चीन की हालत खराब कर दी है। चीन का स्टील और कॉपर सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और अब चीन मजबूर होता जा रहा है कि वह ऑस्ट्रेलिया से अपने संबंध फिर से सामान्य करे और अपनी ओर से तनाव कम करने के प्रयास करे। ऐसे में यह चीन की बड़ी हार साबित होगी।
जब ऑस्ट्रेलिया ने वुहान वायरस के असल कारणों की जांच के लिए आवाज उठाई थी तो चीन ने उसपर आक्रामक कार्रवाई करते हुए उसके सभी निर्यातों को रोक दिया था। चीन को उम्मीद थी कि वह ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक दबाव बनाकर उसे शांत करवा सकेगा। साथ ही चीन अन्य ऐसे लोकतांत्रिक देशों को, जिनपर वह सीधे सैन्य दबाव नहीं डाल सकता है, उन्हें भी सख्त संदेश देना चाहता था कि वह आसानी से उनकी अर्थव्यवस्था को संकट में डाल सकता है।
चीन लगातार प्रयास कर रहा था ऑस्ट्रेलियाई सरकार पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की। ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार की गिरफ्तारी हो या ऑस्ट्रेलियाई सरकार को पत्र लिखकर धमकाना, चीन ने सभी पैंतरे अपनाए। किंतु ऑस्ट्रेलिया ने सफलतापूर्वक उसका प्रतिरोध किया। भारत जैसे मित्रों के सहयोग और लोकतांत्रिक विश्व के सहयोग ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। 19 देशों के सांसदों ने अपने देश की जनता को ऑस्ट्रेलियाई वाइन खरीदने को कहा जिससे वह चीन के विरुद्ध उसका सहयोग कर सकें।
ऑस्ट्रेलिया इतने लंबे समय तक चीन का प्रतिरोध करेगा, इसकी उम्मीद जिनपिंग को नहीं रही होगी। नतीजा यह हुआ है कि प्रतिबंध अब चीनी उद्योगों को ही भारी पड़ रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई कोल की अनुपलब्धता के कारण चीनी स्टील उद्योग को रूस, कनाडा, मंगोलिया जैसे देशों से अपेक्षाकृत महंगे दाम पर कोयला खरीदना पड़ रहा है अथवा अपने यहां के कोयले पर निर्भर रहना पड़ रहा है। किंतु इनकी गुणवत्ता वैसी नहीं जैसी ऑस्ट्रेलिया के हार्ड कुकिंग कोल की है। इसका नतीजा यह हुआ है कि चीन इस्पात उद्योग सुस्त पड़ गया है, साथ ही उनके उत्पाद की गुणवत्ता भी कम हो रही है।
साथ ही ऑस्ट्रेलियाई कोयले की कमी बिजली संयंत्रों को प्रभावित कर रही है। हालात इतने बिगड़ गए थे कि चीनी सरकार को आदेश देकर यह कहना पड़ा कि लोग एक सीमा से अधिक मात्रा में बिजली का प्रयोग न करें। यहाँ तक कि भीषड़ ठंड में भी हीटर के सीमित उपयोग का आदेश देना पड़ा। चीनी सरकार के प्रतिबंध का नतीजा यह हुआ कि चीनी लोग ही ठंड में ठिठुरने को मजबूर हो गए।
ऑस्ट्रेलिया से आने वाले कॉपर अयस्क पर प्रतिबंध को भी तब झटका लगा जब इसका कोई विकल्प खोजने पर भी नहीं मिला। चीन ने पेरू से इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश की, किंतु वहां भी विरोध प्रदर्शनों ने चीन को होने वाले निर्यात पर रोक लगवा दी।
बाइडन के सत्ता में आने के बाद इसकी उम्मीद थी कि ऑस्ट्रेलियाई नेतृत्व चीन से किसी समझौते को मजबूर हो। किंतु चीनी सरकार की यह उम्मीद भी पूरी नहीं हुई। चीन ने न्यूजीलैंड सरकार पर दबाव बनाया कि वह ऑस्ट्रेलिया को चीन के साथ किसी समझौते पर सहमत करे लेकिन ऑस्ट्रेलिया झुकने को तैयार नहीं हुआ।
नतीजा यह हुआ कि अब चीनी उद्योगपति अपनी सरकार को पत्र लिखकर यह अनुरोध कर रहे हैं कि ऑस्ट्रेलियाई आयात पर प्रतिबंध हटाया जाए। चीनी सरकार को पत्र लिखना यह बताता है कि चीन के इस्पात, कॉपर तथा अन्य उद्योग कितने दबाव में हैं। अब अगर चीनी सरकार अपनी ओर से प्रतिबंध हटाकर समझौते का हाथ बढ़ाती है तो यह चीन की बड़ी कूटनीतिक हार होगी।
चीन, जो वैश्विक महाशक्ति बनने का सपना पाले बैठे है, उसके लिए यह अपमानजनक बात होगी कि उसकी लाख कोशिशों के बाद भी वह ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचा सका, उल्टे चीन की अर्थव्यवस्था को ही भारी क्षति हुई। इसकी तुलना हम भारत पर पाकिस्तान द्वारा लादे गए प्रतिबंध से कर सकते हैं, जिसमें पाकिस्तानी वायुसेवा को 800 करोड़ का नुकसान हुआ था।
चीन को झुकाकर ऑस्ट्रेलिया यह सिद्ध कर देगा कि अभी चीनी कम्युनिस्ट इतने मजबूत नहीं हुए हैं कि लोकतांत्रिक देशों की संप्रभुता को कुचल सकें।