जुलाई माह में डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी टेलीकॉम कंपनियां Huawei और ZTE को राष्ट्र के लिए खतरा बताया है। तब से वे उस बयान पर पूरी तरह कायम है, और जाते जाते वे ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि बाइडन प्रशासन चाहकर भी Huawei और ZTE पर लगे प्रतिबंध बहाल न कर सके।
पिछले कई महीनों से ट्रम्प प्रशासन इन कंपनियों पर युद्धस्तर पर कार्रवाई कर रहा है। अब जाते जाते इन कंपनियों की कमर तोड़ने का भी ट्रम्प प्रशासन ने प्रबंध किया है। उन्होंने उन अमेरिकी फर्म के लाइसेंस रद्द किये हैं, जो Huawei और ZTE जैसी कंपनियों को इक्विपमेंट सप्लाई करते थे।
चीन के पास अमेरिका जैसी विश्व स्तरीय सेमीकंडक्टर उत्पादन केंद्रों की भरमार नहीं है। वह काफी हद तक अपने तकनीक के विकास के लिए अमेरिकी संसाधनों पर ही निर्भर रहा है। लेकिन जिस प्रकार से ट्रम्प प्रशासन ने सत्ता छोड़ने से ऐन वक्त पहले यह सुनिश्चित किया है कि Huawei पर लगे प्रतिबंध स्थाई रहे, उससे स्पष्ट हो जाता है कि अब चीन के बुरे दिन शुरू हो चुके हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि भले ही बाइडन प्रशासन सत्ता ग्रहण करने को तैयार हो, पर ट्रम्प प्रशासन नहीं चाहता कि उनके हाथ में कोई भी ऐसा निर्णय लेने की ताकत बचे जो चीन के लिए लाभकारी और अमेरिका के हितों के विपरीत हो।
यदि Huawei को खत्म नहीं किया जा सकता, तो कम से कम उसका प्रभाव अमेरिका पर न चलने पाए, और यही सुनिश्चित किया है ट्रम्प प्रशासन ने। भले ही वे सत्ता से बाहर जा रहे हैं, परंतु उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि चीन की कोई भी बड़ी कंपनी, चाहे वो Huawei हो, TikTok हो या फिर We Chat ही क्यों न हो, वह अमेरिका पर अब अपना प्रभाव नहीं जमा सके।
ऐसे में यदि बाइडन प्रशासन इनमें से किसी भी नीति को निरस्त करने का प्रयास करेगी, तो उसे हर तरफ से आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ेगा, और अपनी सनक में अमेरिका को बर्बाद करने का जोखिम जो बाइडन शायद ही उठाना पसंद करेंगे।