पाकिस्तान में चीन के लिए समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। चीन के औपनिवेशिक मानसिकता से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन इसी दिशा में जिस चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर काम चल रहा था, उसी में अब बलोच और सिंधी बागी खलल डाल रहे हैं। अब चीन के लिए कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि पाकिस्तान केवल उसी पर निर्भर नहीं रहने वाला।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई माह से पाकिस्तान रूस की सहायता से एक 1100 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन का निर्माण करेगा, जो प्राकृतिक गैस की उत्पत्ति में उसके लिए बहुत सहायक होगा। इस प्रोजेक्ट में सुई सदर्न गैस कंपनी और सुई नॉर्दर्न गैस पाईप लाईन लिमिटेड की भी भूमिका होगी, जबकि निर्माण कार्य का जिम्मा एक रूसी कंपनी संभालेगी
अगर प्राकृतिक गैस यानी एलएनजी के क्षेत्र में देखा जाए तो पाकिस्तान इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से उभर रहा है। परन्तु अपनी आवश्यकता को पूरा करने हेतु अब उसे एलएनजी टर्मिनल की आवश्यकता है।
दूसरी ओर रूस एक द्विपक्षीय अर्थव्यवस्था बन रही है, जिसे तेल एवं गैस उद्योग में एक और मार्केट चाहिए। एक तरफ मॉस्को के रक्षा एक्सपोर्ट में कोई कमी नहीं रही है, जबकि वह तेल एवं गैस उद्योग में भी अपना भाग्य आजमाना चाहता है। इसीलिए अब रूस चीन के प्रिय कॉलोनी पाकिस्तान में सेंध लगाने आ चुका है।
अब पाकिस्तान में रूसी निवेश से फायदा क्या होगा? इससे इस्लामाबाद पर बीजिंग का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाएगा। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जिस हालत में थी, उसमें उसे चीन से निवेश लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं नजर आया, और इसी का फायदा उठाकर चीन पाकिस्तान को अपना गुलाम बनाना चाहती है –
लेकिन जिस प्रकार से बलोच और सिंधी बागी मिलकर पाकिस्तान के सीपीइक परियोजनाओं में बाधा डाल रहे है, वह पाकिस्तान के साथ साथ चीन के लिए भी बहुत हानिकारक है। बलोच और सिंधी अपनी भूमि को चीन की बपौती नहीं बनने देना चाहते हैं और पाकिस्तान चाहके भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती है।
इसका असर अब चीनी निवेश पे भी पड़ने लगा है, को पाकिस्तान से अब नए प्रोजेक्ट से पहले 6 बिलियन डॉलर की को गारंटी मांगने लगी है, और यहीं पे रूस ने मौके पर चौका मारने का निर्णय लिया है, क्योंकि चीन के ‘ इलाके ‘ में निवेश माने चीन को स्पष्ट चुनौती देना, और इस समय रूस के पास चीन को चुनौती देने के अनेकों कारण है।