चीन के शिंजियांग में जारी “उइगर नरसंहार” के मुद्दे पर अमेरिका का बाइडन प्रशासन बेशक अपने कदम पीछे खींचता दिखाई दे रहा हो, लेकिन Quad देशों का नेतृत्व कर रहा जापान इस मुद्दे पर चीन को राहत देने के पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है। जापानी विदेश मंत्री तोषीमित्सु मोटेगी ने हाल ही में बाइडन प्रशासन को सख्त संदेश देते हुए कहा है कि चीन को Hong-Kong और शिंजियांग में मानवाधिकारों के मामले पर एक जिम्मेदार रुख अपनाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही 12 जापानी कंपनियों ने शिंजियांग में “जबरन मजदूरी” कराने में शामिल चीनी कंपनियों के साथ अपने सभी व्यापारिक संबंध ख़त्म करने का ऐलान किया है। जापान के सख्त रुख के बाद बुधवार को फ्रांस के विदेश मंत्री ने भी ऊईगर के मुद्दे पर चीन को जमकर लताड़ लगाई!
बीते मंगलवार को जापानी विदेश मंत्री तोषीमित्सु मोटेगी ने एक बयान में कहा “Hong-Kong और शिंजियांग में मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर जापान बेहद चिंतित है और चीन से कुछ ठोस कदम उठाने की उम्मीद करता है। अभिव्यक्ति की आज़ादी, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान और वैश्विक नियमों का चीन में भी पालन होना चाहिए।” जापानी विदेश मंत्री के बयान से पहले जापान की करीब 12 कंपनियों ने भी अपने एक फैसले से चीन को एक बड़ा झटका दिया। जापान की इन कंपनियों ने उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही चीनी कंपनियों के साथ अपने रिश्ते तोड़ने का ऐलान किया है। पूर्व में जापानी सरकार और जापानी कंपनियाँ चीन के साथ अपने रिश्ते खराब ना करने के ड़र से शिंजियांग के मुद्दे पर कुछ भी बोलने से पहले दस बार सोचती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जापानी प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा पूर्व प्रधानमंत्री शिंजों आबे की विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं।
ठीक इसी प्रकार अब फ्रांस ने भी ऊईगर मुद्दे पर चीन को घेरने की योजना बनाई है। मंगलवार को मोटेगी के बयान के ठीक एक दिन बाद ही फ्रांस के विदेश मंत्री ने चीन पर “संस्थागत तरीके” से ऊईगरों को प्रताड़ित करने का आरोप लगा डाला। UNHRC के एक सत्र में बोलते हुए Drian ने कहा “चीनी सरकार ने ऊईगरों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से प्रताड़ना करने की नीति अपनाई है और संस्थागत तरीके से उनका शोषण किया है।”
जापानी और फ्रांसीसी विदेश मंत्रियों का एक स्वर में ऊईगर के मुद्दे को उठाना सिर्फ चीन के ही लिए नहीं बल्कि अमेरिका के बाइडन प्रशासन के लिए भी बड़ा संदेश है। दरअसल, शिंजियांग में मानवाधिकारों की स्थिति को लेकर अमेरिका अब चीन पर नर्म रुख दिखाने लगा है। हाल ही में अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेन्ट के वकीलों ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि शिंजियांग में चीनी हरकतों को “नरसंहार” का दर्जा देने के लिए अमेरिका के पास पर्याप्त सबूत है ही नहीं। इसके साथ ही बाइडन प्रशासन ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा उइगर मुस्लिमों के खिलाफ प्रताड़ना को दिये गए “नरसंहार” के दर्जे पर पुनर्विचार करने का भी फैसला किया है। इतना ही नहीं, हाल ही में बाइडन प्रशासन CCP के अत्याचारों को सही ठहराने की कोशिश करते भी नज़र आए थे।
कुछ दिनों पहले सीएनएन टाउन हॉल के Wisconsin में बोलते हुए राष्ट्रपति बाइडन ने कहा था, “चीनी नेता, यदि आप चीनी इतिहास के बारे में कुछ भी जानते हैं, तो यह हमेशा से रहा है – जब वे अपने देश पर एकजुट नहीं थे तभी वे बाहरी दुनिया के शिकार हुए है।” उन्होंने कहा था, “शी जिनपिंग का केंद्रीय सिद्धांत यह है कि चीन को एकजुट रखने के लिए उसपर कड़ा नियंत्रण करना। वह जो करते है उसके लिए अपने तर्क का इस्तेमाल उसी आधार पर करते हैं। मैं उनकी ओर इशारा करता हूं और बताना चाहता हूं की कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति, राष्ट्रपति नहीं है यदि वह अमेरिका के मूल्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता है, और इसलिए मैं इस पर नहीं बोलूंगा कि वे Hong-Kong में क्या कर रहे हैं, या पश्चिमी पहाड़ों में उइगर के साथ कर क्या रहे हैं, या ताइवान में।”
यानी कुल मिलाकर बाइडन यह कहना चाह रहे थे कि चीन को बाहरी दुनिया से खतरा है और वे उस खतरे को अपनी घरेलू गलती के आधार पर ही समझते हैं। बाइडन के अनुसार शिंजियांग के लोग चीनी हान से अलग है इसलिए चीन को लगता है कि वे खतरा है। हालांकि, बाइडन के इस रुख से जापान बिलकुल भी खुश नहीं होगा क्योंकि जापान ही वह देश था जिसने सबसे पहले शिंजियांग में जारी इस नरसंहार के बारे में अमेरिका को खूफिया सूचना प्रदान की थी। ऐसे में अब बाइडन के कमजोर रुख के बाद जापान और फ्रांस ने चीन को सबक सिखाने के लिए और अमेरिका को एक कड़ा संदेश देने के लिए हाथ मिलाने का फैसला लिया है।